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      Home Media Study Material Graphic Design

      डिजाइन संबंधी पद Design terminology

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Graphic Design
      0

      Design terminology  डिजाइन से सम्बन्धित पद शब्दावली

      Importance of good design

      Elements of design : Points in design

        Design terminology-      Knowledge about various Design terminology are very important for designers. The meaning of design terminology has been given here. One must have good understanding of such design terminology

        डिजाइन अपने आप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। इस विषय की अपनी बहुत ही बृहद् शब्दावली बन चुकी है। वर्तमान में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे शब्द एवं पद हैं जो डिजाइन  क्षेत्र में इस्तेमाल किये जाते हैं। वे सभी व्यक्ति जो कि डिजाइन के क्षेत्र में अपना कैरियर विकसित करना चाहते हैं, उन्हे इस प्रकार के पदों के बारे में जानकारी अवश्य होना चाहिए।  यहाॅ पर डिजाइन के क्षेत्र में इस्तेमाल किये जाने वाले विविध महत्वपूर्ण पदों की सूची उनके अर्थ के साथ प्रस्तुत की जा रही है।

      स्पेस – द्वि या फिर त्रिविमीय ज्यामितीय व्यवस्था जिसके अन्तर्गत किसी रेखीय पक्ष को ध्यान में रख करके त्रिविमीय स्थान बनाते हैं।

      प्वाइंट – यह किसी वस्तु की स्थिति को व्यक्त करने के लिए सर्वाधिक सूक्ष्म विजुअल तत्व है। डिजाइन में प्वाइंट किसी पोजीशन को व्यक्त करता है। जब यह किसी दिषा में बढ़ता है, तो यह रेखा के रूप में व्यक्त होता है। 

      कन्टूर – किसी प्रकार के वस्तु के आकार का आउट लाइन।

      शेप – यह किसी वस्तु का दो आयामी स्वरूप है, जिससे कि उसके कन्टूर की जानकारी मिलती है।

      प्लेन -वस्तु का दो आयामी विस्तार, जिसमें कि लम्बाई व चौड़ाई शामिल है। इस प्रकार के प्लेन में कोई रेखा द्विविमीय विस्तार लिये रहता है।

      फार्म – किसी वस्तु का दृश्य, रूप अथवा संरचना।

      फिगर – किसी वस्तु का आकार, इमैज का कन्टूर । 

      वाल्युम -यह  त्रिविमीय आकार होता है, जिसमें लम्बाई, चैड़ाई एवं मोटाई होती है। वाल्युम में सिरे, किनारे एवं सतह होते हैं।

      मास – मास किसी त्रिविमीय आकार वाले वस्तु  का द्विविमीय प्रस्तुति है। इसमें रेखा कन्टूर, टेक्सचर आदि होते हैं, जो कि किसी ठोस वस्तु में होता है।यहाॅ पर मास को आयतन अथवा वाल्युम को आपस में एक दूसरे के पर्याय के तौर पर उपयोग किया जाता है।

      वाल्युम – किसी वस्तु द्वारा उसके त्रिआयामी आकार के दौरान घेरी गयी जगह जिसमें कि  प्वाइंट, किनारे सतह होते हैं।

      सरफेस एवं टेक्स्चर – किसी सतह के गुण जिसमें उसके चिकनेपन या फिर खुरदरापन सबसे मुख्य है। यह गुण मुख्यतः किसी सतह को छूने पर हुए एहसास से या जुड़कर देखा जाता है।

      टाइप –  इसे टाइपोग्राफी के नाम से भी जाना जाता है। इसे ग्रैफिक निर्माण के एक तत्व के रूप में भी जाना जाता है। यह दृश्य संचार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण साधन है।  इसका इस्तेमाल विविध प्रकार से किया जाता है। 

      टोन – किसी क्षेत्र के गाढ़ेपन या फिर हल्केपन को बताने हेतु उपयोग में लाये जाने वाला शब्द। यह रंग या सफेद काले के सन्दर्भ में लागू होता है। टोन के कन्ट्रास्ट का इस्तेमाल किसी द्विआयामी सतह पर किसी वस्तु के त्रिआयामी स्वरूप को बताने में इस्तेमाल में लाया जाता है।

      वैल्यु – देखें – टोन। डिजाइन के अन्तर्गत  विविध प्रकार के तत्वों को कम या अधिक देना ही उसका भार कहलाता है। इस प्रकार रंग, आकार की मात्रा आदि भार के रूप  में जाने जाते है। सन्तुलन में इसकी भूमिका होती है।

      पैटर्न – किसी प्रकार के विजुअल संचार में इस्तेमाल में लाये जाने वाले एक या एक से अधिक तत्व को एक निश्चितअन्तराल के पश्चात दोहराने से उभकर बना स्वरूप।  इस प्रकार  पैटर्न का सम्बन्ध दोहराये जाने, रिद्म एवं कंसिस्टैंसी से होता है। 

      डेन्सिटी -किसी पदार्थ वस्तु का पारदर्शी या फिर अपारदर्शी का गुण।

      ग्राउंड – वह जो कि वस्तु के पीछे इस प्रकार से है, जिससे कि वह वस्तु से  अलग हट करके न दिखे। या स्वयं में इतने प्रभावी न दिखे कि उसकी तरफ लोगों का ध्यान जाये।

      ह्वाइट स्पेस  – वह स्थान जो कि किसी प्रकार के कंपोजीशन में विभिन्न वस्तुओं के बीच होता है।

      कंसेप्ट – – किसी प्रकार का आइडिया, विचार, सिद्धान्त।

      स्ट्रक्चर – किसी वस्तु के बने होने का तरीका या फिर स्वरूप।

      कन्टेंट, सब्जेक्ट, कैरेक्टर – किसी प्रकार के दृश्य, तथ्यों के वर्णन में दिखने वाला थीम या आइडिया।  

      स्केच -किसी प्रकार के कन्सेप्ट को उतारते हुए  सरसरी तौर पर खीचे जाने वाले लाइन जिसमें कि उस विषय, वस्तु, आइडिया आदि के बारे में आधारभूत तत्वों के माध्यम से जानकारी दी गयी रहती है। 

      बैलेंस -किसी प्रकार के डिजाइन के अन्तर्गत सन्तुलन की व्यवस्था किया जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न तत्वों के विजुअल भार को सन्तुलित किया जाता है। इसमें सममिति, असममिति एवं रेडियल सन्तुलन आते हैं। संतुलित डिजाइन का संबंध असममिति, सममिति एवं रेडियल संतुलन से जुड़ करके  होता है।

      सममित संतुलन – इस प्रकार का संतुलन उस समय होता है, जब डिजाइन में सभी तत्वों को एक समान तरीके से रखा गया रहता है । इसके अंतर्गत  अक्ष के एक तरफ रखे गए विभिन्न तत्व उसकी दूसरी तरफ रखे गए तत्वों के समान होते हैं और इस तरह से उसे दो बराबर भागों में विभाजित किया जा सकता है ।

      असममिति संतुलन – इसके अंतर्गत अक्ष के दोनों तरफ के  असमान तरीके से तत्वों को रखा गया रहता है और इस प्रकार वह देखने में एक प्रकार से तनाव अथवा उलझन पैदा करता है और उसे समानतौर पर रखने की एक चाह उत्पन्न हो सकती है।

      रेडियल सममिति  का सम्बन्ध उस बनावट से होता है जिसमें कि किसी केन्द्र, विन्दु से चारो तरफ विस्तार होता है। जिस प्रकार से किसी षान्त पानी में कंकड़ फेकने पर चारों तरफ एक समान तौर पर तरंगे फैलती जाती हैं, वह रेडियल सममिति का एक उदाहरण है। व्यावहारिक जीवन में हम द्विपक्षीय सन्तुलन ही बहुत देखते हैं। इस प्रकार से दो आंख कान, भुजा आदि इस प्रकार के द्विपक्षीय सममिति के उदाहरण है।  पारम्परिक ढंग से डिजाइन में सन्तुलन, स्थायित्व, क्रम, सामंजस्य जैसे पक्षों पर ध्यान दिया जाता है।   

         बैलेंस – किसी प्रकार के डिजाइन के विविध प्रकार के तत्वों को मिला करके एक डिजाइन तैयार करना।  यूनिटी, प्राक्सिमिटी, वेरायटी एक जुट होने का आभास देना या कराना। किसी डिजाइन में एकता का भाव पैदा करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

      एकता, समीपता एवं विविधता – समश्टि का आषय किसी फार्मेट के सभी दिखने वाले दृष्य तत्वों के बीच एकता एवं सामंजस्य का भाव होना है। यह सिद्धान्त किसी डिजाइन में सतत्ता का भाव पैदा करने के विचार पर केन्द्रित है। यह डिजाइन में लयबद्धता के तौर पर भी माना जा सकता है। विभिन्न आब्जेक्ट के बीच समीपता या किसी भी संयोजन में विभिन्न तत्वों के बीच एक बन्धन का भाव पैदा करता है।  एक दूसरे आब्जेक्ट के  बीच की दूरी उनके बीच सम्बन्धों को व्यक्त करता है। एकता प्राप्त करने के लिए किसी डिजाइन में  ग्रिड का इस्तेमाल किया जाता है।

      सीमिलेरीटी- वह स्थिति जिसमें कि एक समान प्रकार के आकार, फीचर, कन्टूर  या फिर अन्य किसी प्रकार के समानता के आधार पर एक जगह समूह में रखे जाते है।  

      कन्ट्रास्ट  – जब भी किसी प्रकार की वस्तु कही पर दिखाई जाती है, तो उसके विविध गुणों में से एक या एक से अधिक गुरु जैसे स्वरूप, आकार, साइज, रंग, टेक्स्चर में आपस में विपरीत होते हैं। यह इम्फैसिस से जुड़ करके है।

      इम्फैसिस –  इसे डामिनेंस के नाम से भी जाना जाता है। किसी डिजाइन का यह फोकल प्वाइंट होता है। किसी भी डिजाइन के दृष्य में से कोई एक या एक से अधिक तत्व को एक क्रम को प्रस्तुत करके किया जाता है।

      टाइम, मोशन, डायरेक्षन सतत एवं असतत – विस्थापन का दृश्य भ्रम उत्पन्न करने के लिए गति का उपयोग करना। यह सिद्धान्त स्थिति, ओरियंटेशन, दिशा एवं स्थान के बदलाव की प्रक्रिया को दिखाने के लिए किया जाता है। गति को दिखाने के लिए कंपोजीशन में विभिन्न तत्वों को दोहराते हैं। किसी प्रकार का गति का उपयोग विस्थापन के भ्रम को दिखाने के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार के सिद्धान्त का इस्तेमाल दिशा, गति, ओरियंटेशन ,बदलाव, आदि को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इसी प्रकार से इसका उपयोग किसी ऐक्षन को ब्लर करने, आरम्भिक एवं अन्तिम प्वाइंट को दिखाने के लिए किया जाता है।  द्विविमीय डिजाइन में तत्वों को बार बार दोहराने के माध्यम से गति को दिखाया जाता है।

      पोजीशन – वह स्थान जो कि दृष्य क्षेत्र या आकार  के अन्तर्गत किसी प्रकार के वस्तु के  कंपोजीशन के विविध तत्वों को स्थित किया जाता है। इसे सामान्यतया विजुअल क्षेत्र के सीमा के अन्तर्गत आने वाले किसी दूसरे कंपोजिशनल तत्वों के सापेक्ष ही व्यक्त किया जाता है।

      ओरियंटेशन – अन्य वस्तुओं की तुलना में किसी वस्तु आदि के कंपोजिशनल तत्वों की स्थिति। यह स्थिति सभी प्रकार के डिजाइनों में होना आवष्यक नही है।

      स्केल  – किसी प्रकार के वस्तु का साइज या आकार व विस्तार के बारे में जानकारी देता है। यह किसी वस्तु के किसी प्रकार के माप को किसी पैमाने पर बताता है।

      साइज. विभिन्न  प्रकार की आकृतियों की तुलना करने के लिए इस्तेमाल में लाये जाने वाला एक पद। किसी प्रकार की साइज का वर्णन करने के लिए अपेक्षाकृत छोटा या बड़ा शब्द इस्तेमाल में लाया जाता है। इस पद से हम किसी आकृति की विशालता का अन्दाजा लगाते हैं।

      प्रोपोर्शन – -यह द्विविमीय अथवा त्रिविमीय तत्व है, जो कि  किसी डिजाइन के अन्य तत्वों के साथ आपसी सम्बन्धों के आधार पर परिभाषित किया जाता है। मानवीय  पद में स्केल का सम्बन्ध  मानव षरीर से जुड़ करके होता है। इसे अनुपात के रूप में व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए 3ः4, 9ः16, 1ः2 

      दोहराव एवं ताल-  किसी प्रकार के विजुअल फार्मेट में एक या एक से अधिक तत्वों को बार बार दोहराना। यह स्थिरता एवं स्थायित्व का भाव जगाता है। इस प्रकार  किसी दिये डिजाइन में विजुअल तत्व जैसे आकार, इमैज, लेआउट  आदि के दोहराने से उसमें रिद्म या लय की प्राप्ति होती है।

      एलाइनमेन्ट – इसके माध्यम से किसी प्रकार की बिखरी हुई वस्तुओं को एक समान पैटर्न में सेट करते हैं। एक दो या फिर विमीय स्पेस, जिसमें कि किसी कला का निर्माण किया जाता है।

      फार्मेट- द्विविमीय या फिर त्रिविमीय विस्तार जिसमें कि कला के रूप, दृश्य , संदेश, डिजाइन एवं परिवेश का निर्माण किया जाता है। द्विविमीय फार्मेट में लम्बाई एवं चौड़ाई होती है, जबकि त्रिविमीय फार्मेट में लम्बाई, चौड़ाईएवं उॅचाई भी होती है। 

      ग्रैफिक – सामान्यतौर पर ग्रैफिक किसी वस्तु, सूचना, जानकारी आदि का दृश्य प्रस्तुति है। जब कम्प्यूटर ग्रैफिक की बात की जाती है, तो उसका आषय सामान्य तौर पर कम्प्यूटर स्क्रीन पर ग्रैफिक की प्रस्तुति है। इसे टैक्स्ट से अलग रूप में देखा जाता है जिसमें कि इमैज की जगह अक्षर होते हैं।

      लाइन – डिजाइन का वह तत्व जो कि विन्दु की गति से स्थापित होता है। यह दो विमीय एवं त्रिविमीय हो सकता है। इसी प्रकार खास अर्थ काल्पनिक आदि रूपों में हो सकता है।

      शेप- डिजाइन का वह तत्व जो कि द्विविमीय चपटा, ऊॅचाई एवं लम्बाई लिये होता है।

      फार्म  – डिजाइन का वह तत्व जो कि त्रिविमीय होता है और यह एक निश्चित आयतन लिया हुआ होता है। यह स्वतंत्र प्रवाह के रूप में भी हो सकता है।  

      वैल्यु – यह किसी रंग या टोन का हल्कापन या गाढ़ापन बताता है। सफेद सबसे अधिक हल्का या लाइट वैल्यु होता है और काला सबसे अधिक गाढ़ा होता है। इन दोनों के बीच वाला हर्ष भूरा होता है।

      स्पेस – डिजाइन का वह तत्व जिसमें कि सकारात्मक एवं नकारात्मक क्षेत्र परिभाषित किये गये होते हैं। यह किसी के कला कार्य में गहराई के भाव को भी व्यक्त करता है।

      कलर – डिजाइन का एक तत्व रंग है, जो कि वैल्यु एवं तीव्रता से मिल करके बना हुआ होता है।

      ह्यू – रंग विशेष।  

      इंटेसिटी – किसी रंग का चमकीलापन एवं शुद्धता। अधिक तीव्रता वाली वस्तु अधिक चमकीली एवं कम तीव्रता वाली वस्तु कम चमकीली, शांत एवं कमजोर होती है।

      टेक्स्चर -किसी वस्तु की सतह का वह गुण जो कि देखने एवं छूने पर विशेष तौर पर महसूस होता है।

      कला का सिद्धान्त- इसके अन्तर्गत सन्तुलन, जोर, गति, मात्रा, रिद्म , एकता, विविधता, जैसे बातें शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल करके कला का निर्माण किया जाता है।  

      रिद्म -डिजाइन का एक सिद्धान्त जो कि उसमें गति को व्यक्त करता है और  जो किसी आर्ट में  सावधानी के साथ तत्वों को दोहराने पर उसमें एक प्रकार से दृश्य , टेम्पो उत्पन्न होता है।  

      बैलेंस – विविध प्रकार के तत्वों को आपस में जोड़ने का एक तरीका, जिससे कि दर्शक को डिजाइन में सन्तुलन या स्थायित्व का भाव विकसित होता है।

      Know about design terminology

      इम्फेसिस – डिजाइन में विविध तत्वों के बीच संयोजन का तरीका जिससे कि उनके बीच अन्तर या किसी खास पक्ष  को जोर दे करके प्रस्तुत किया जा सके।

      प्रोपोर्शन – डिजाइन का वह सि़द्धान्त जो कि किसी खास तत्व का सम्पूर्ण एवं उनका एक दूसरे के साथ सम्बन्ध को स्पष्ट करती हो। 

      ग्रेडेशन – एक तरीका जिसमें कि धीरे धीरे बदलाव होने के क्रम में ही विविध तत्वों को सुव्यवस्थित किया जाता है। उदाहरण के लिए बड़े आकार की वस्तु से छोटे आकार की वस्तु के क्रम में सेट करना।

      हारमोनी – डिजाइन का वह तरीका जिसमें कि एक प्रकार की वस्तुओं को जोड़ करके एक जगह पर रखा जाता है, जिससे कि उनकी समानता को दिखाया जा सके। इस प्रकार के कार्य  , आब्जेक्ट को दोहरा करके एवं उसमें सूक्ष्म बदलाव को प्रस्तुत किया जाता है।

      वेरायटी – डिजाइन का वह सिद्धान्त जिसमें कि विविधता को सामने लाया जाता है। यह विविधता आकार, रंग, रूप् आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें कला कार्य के माध्यम से आंख को दिशा निर्देश मिलता है कि वह उसे किस  ढंग से देखे एवं महसूस करे।

      यूजर इन्टरफेस – वह स्थान जहां पर कि मानव एवं मशीन के बीच अन्तर्कि्रया होती है। इस इंटरेक्शन का मुख्य उद्देश्य मानव द्वारा मशीन का सही एवं प्रभावी ढंग से नियंत्रण एवं संचालन करना होता है।

      The above are main design terminology. Several new design terminology and words are continuously being developed. one must try to be familiar with these new design terminology.

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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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