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      Home Media Study Material Media Law

      मानहानि कानून Law of Defamation

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      1 year ago
      in Media Law
      0

      Law of defamation is one important press law. Various aspects of this law has been discussed here

               मानहानि कानून Law of defamation 
      
             मानहानि कानून को लेकर के जनमाध्यमों में हमेशा चर्चा होती रहती है। इस कानून के उल्लंघन के किसी न किसी पक्ष के बारे में समाचार भी निकलते रहते हैं। आए दिन ऐसे भी समाचार निकलते हैं जिसमें कि किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति समुदाय, समूह, संस्था के मानहानि करने का आरोप लगता है। इस संदर्भ में समय समय पर मामले अदालत में भी जाते हैं जहां पर उसकी सुनवाई होती है। 
      
      हम जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा, सम्मान उसके अपने एक बहुमूल्य निजी संपत्ति है और इसको बनाए रखना बचाए रखना, इसकी रक्षा करना उसका एक मूलभूत अधिकार है । यदि इस संपत्ति को कोई व्यक्ति किसी भी तरीके से नुकसान करता है तो उस स्थिति में उस व्यक्ति को पूरा अधिकार है कि वह उसके खिलाफ कानूनी रूप से शिकायत करें और वह इस संदर्भ में हुए क्षतिपूर्ति के लिए दावेदारी करें। 
      
              किसी व्यक्ति के मान सम्मान कम होने से सिर्फ उसका मान ही कम नही होता है, वरन् उससे जुड़ करके उसकी सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थिति को भी काफी अधिक नुकसान होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का नुकसान होने से उसके भविष्य को काफी अधिक नुकसान होता है। इसलिए उसके सम्मान की रक्षा करना सरकार एवं समाज का परम् दायित्व है। इसे ध्यान में रख करके मानहानि कानून को बनाया गया है।  

      Media Law
      August 15, 2024

      क्या है मानहानि कानून What is Law of defamation
      डिफेमेशन अथवा मानहानि कानून के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति मौखिक अथवा लिखित रूप से किसी के सम्मान को चोट पहुंचाता है तो फिर यह मानहानि कानून के अंतर्गत आता है। यह कानून लोगों के सम्मान, आत्मसम्मान गौरव आदि को अनावश्यक रूप से चोट पहुंचाने से बचाने के लिए बनाया गया है और जनमाध्यमों के संदर्भ में इस कानून का विशेष महत्व है, क्योंकि जनमाध्यम में लोगों के बारे में हमेशा विभिन्न प्रकार की सूचनाएं, जानकारी दी जाती है। इसके अंतर्गत लोगों द्वारा दूसरे व्यक्ति, समूह, संगठन, संस्थान आदि के बारे में भी बातें कही जाती है । यदि किसी व्यक्ति द्वारा भी तरीके से ऐसी बातें कही जा रही है जो कि उनके सम्मान को चोट पहुंचाती है तो फिर उसकी रक्षा करने के लिए किसी न किसी प्रकार के कानून की आवश्यकता पडती है, ऐसी स्थिति में मानहानि कानून एक सुरक्षा कवच का कार्य करता हैं।

      मानहानि कानून Law of defamation भारतीय दंड संहिता की धारा 499
      कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 499 में वर्णित किया गया है और इसकी भाषा इस तरीके से है –
      जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के आशय से लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्य निरूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता है या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाए या यह जानते हुए या विश्वास करने के कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होती है तो फिर ऐसी स्थिति में, उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है। किन्तु इसमें अपवादित दशाओं को नही लिया जाता है। अर्थात् वे स्थितियां जिसे मानहानि के अपवाद के तौर पर देखा जाता है, उस स्थिति में यह कानून लागू नही होता है।
      अतः मानहानि का आशय यही है कि यदि कोई व्यक्ति किसी भी रूप में कोई ऐसी अभिव्यक्ति करता है या कोई बात कहता है और उसे यह ज्ञात है कि ऐसा कहने से जिसके बारे में वह कह रहा है, उसकी मानहानि होगी, तो फिर वह व्यक्ति मानहानि करने का दोषी होता है। इस स्थिति में उस पर प्रभावित व्यक्ति द्वारा मानहानि का मुकदमा किया जा सकता है।


      अपमान एवं मानहानि में अंतर
      मानहानि एवं अपमान को प्रायः एक भी समझा जाता है। किन्तु इन दोनों में अन्तर है। मानहानि के लिए इसमें किसी व्यक्ति द्वारा कही गयी बातों को तीसरे व्यक्ति तक प्रसारित होना आवष्यक है। यदि कोई व्यक्ति अपने सामने वाले व्यक्ति के बारे में भला बुरा कह रहा है, किन्तु यदि वह तीसरे व्यक्ति तक नही पहुॅच रहा है तो फिर उसे मानहानि नही कहा जायेगा। इस प्रकार के मामले में यह कहा जा सकता है कि पहले वाले व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति का अपमान किया। इस स्थिति में उस पर मानहानि कानून नही लागू किया जा सकता है।


      मानहानि के प्रकार Kinds of defamation- मानहानि किसी व्यक्ति द्वारा दो प्रकार से मानहानि किया जा सकता है। इसके अंतर्गत सिविल या नागरिक अवमानना एवं क्रिमिनल या फौजदारी अवमानना आते हैं। इन दोनों में मानहानि करने वाले व्यक्ति सिर्फ नियति का अन्तर देखा जाता है। इसी को ध्यान में रख करके पीड़ित व्यक्ति मुकदमा भी करता है। यदि कोई मानहानि सम्बन्धी मुकदमा सिविल मानहानि के अंतर्गत किया गया है तो इसमें दोष सिद्धि के लिए मानहानि करने वाले व्यक्ति का इरादा सिद्ध करना अनिवार्य नहीं होता है। अर्थात् उसका इरादा भले ही मानहानि करना नही रहा हो किन्तु यदि उस व्यक्ति के किसी प्रकार की अभिव्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मान मर्यादा, सम्मान को वास्तव में नुकसान पहुंचा है, तो वादी अर्थात् जिसका मानहानि किया गया है, वह न्यायालय द्वारा वास्तव में क्षतिपूर्ति के लिए हकदार करार दिया जा सकता हैं। भले ही मानहानि करने वाले व्यक्ति ने उस व्यक्ति के बारे में जो कुछ भी कहा है, वह मानहानि करने के इरादे से न किया हो। उसके द्वारा ऐसा अनजाने में करने पर भी मानहानि कानून के अन्तर्गत सिविल नागरिक अवमानना किया जा सकता है।


      किन्तु सिविल मानहानि में यह प्रावधान जरूर किया गया है कि यदि मानहानि करने वाले व्यक्ति द्वारा मानहानि वास्तव बगैर इरादे के किया गया है या अनजाने में कर दिया गया है तो अदालत या न्यायालय नरम रुख अपनाकर के इसके लिए निर्धारित क्षतिपूर्ति को कम कर सकते हैं । कुछ खास विशेषाधिकारों को छोडकर के अन्य मामलों में सिविल कार्यवाही के परिणाम से इस आधार पर नहीं बचा जा सकता है कि मानहानि आपत्तिजनक सद्भावनापूर्वक किया गया था। अगर कथन सत्य हो, तो सत्य सिद्ध करना बचाव के लिए काफी है।


      दूसरी तरफ, अपराधिक नागरिक अवमानना के अन्तर्गत दोष को साबित करने के लिए यह आवश्यक है कि जिसका अवमानना किया गया है, वह व्यक्ति इस बात को साबित करें कि मानहानि करने वाले व्यक्ति ने जानबूझ करके ऐसा कार्य किया है। अर्थात् उसे यह ज्ञात था कि इस तरह से बोलने से व्यक्ति की अवमानना होगी, उसके बावजूद उसने यह कार्य किया है। मानहानि के अपराधी कार्यवाही से बचाव के लिए कथन की सत्यता के साथ-साथ उसे लोककल्याण में होना सिद्ध किया जाना आवश्यक है।
      मानहानि के सन्दर्भ में स्पष्टीकरण – मानहानि करने के सन्दर्भ में अवमानना के साथ साथ उसके स्पष्टीकरण भी दिया गया है।

      • मानहानि होने के सन्दर्भ में स्पष्टीकरण
        जब हम यह कहते हैं कि व्यक्ति का मानहानि किया गया है तो यहां यह जानना आवश्यक है कि ऐसी कौन सी स्थितियां या शर्ते हैं जिनमें कि यह माना जाए कि मानहानि हुआ है। इस संदर्भ में भी इस कानून में चार बातें स्पष्ट की गयी हैं, जिनके अनुसार –
        स्पष्टीकरण एक – यदि किसी मृत व्यक्ति के बारे में कोई ऐसी बात कही गयी है या फिर उस पर कोई लॉछन लगाया गया है जो कि उस व्यक्ति की अपहानि करने वाला है और यदि वह व्यक्ति जीवित रहता तो वह अपहानि करता , और इससे उसके परिवार एवं निकट सम्बन्धियों की भावनाओं को चोट पहुंचती है तो फिर वह मानहानि के अंतर्गत आएगा ।
      • स्पष्टीकरण दो – यह भी स्पष्ट कर किया गया है कि जो मानहानि होता है, वह किसी व्यक्ति अथवा एक छोटे समूह के रूप में परिभाषित वर्ग या फिर संगठन आदि का भी हो सकता है। यद्यपि यदि बहुत ही सामान्य ढंग से परिभाषित करते हुए किसी समूह पर इसका आरोप लगाया जाता है, तो उस स्थिति में वह मानहानि नहीं माना जाता है।

      • स्पष्टीकरण तीन – मानहानि कानून के अंतर्गत यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई भी ऐसी अभिव्यक्ति जो कि बोले गए शब्दों अथवा लिखे गए शब्दों से अलग हटकर के है, किंतु वह संबंधित व्यक्ति का मानहानि करता है, तो वह मानहानि कानून के दायरे में आएगा। इस प्रकार से कार्टून किसी प्रकार की मानहानि पर एक स्केचिंग या किसी अन्य प्रकार के प्रतीकों का इस्तेमाल करके किसी व्यक्ति आदि का मानहानि करना इस कानून के अंतर्गत आता है। इस प्रकार से मानहानि के अन्तर्गत उक्त वर्णित शर्तों को अन्तर्गत आने पर कही गई बातें मानहानिपरक होती है।

      • स्पष्टीकरण चार – मानहानि करने की जो दूसरी शर्त है, उसके अनुसार यह कहा गया है कि जो कुछ भी कथन या बयान दिया गया है, वह संबंधित व्यक्ति के सम्मान को आवश्यक रूप से कम करता हो। अर्थात् उस कथन से प्रभावित व्यक्ति का सम्मान कम हुआ अथवा एक ऐसी परिस्थिति बनती है जिसमें कि उसका सम्मान कम होता हो अथवा वह दूसरे की नजर में कम करता हो।
        मानहानि कानून का अपवाद Exceptions of Law of defamation – ऐसी बहुत सी स्थितियां होती हैं जिसके अंतर्गत व्यक्ति को किसी विषय पर या व्यक्ति के बारे में अपने विचार व्यक्त करने की आवश्यकता पड़ती है। किंतु मानहानि कानून को लागू होने की आशंकावष वह उसे नहीं कर सकता है। इस पहलू को ध्यान में रखते हुए ही मानहानि कानून में अपवाद के संदर्भ में कुछ अपवाद भी बनाए गए हैं, जिससे कि यदि कोई व्यक्ति उसके अंतर्गत बात कहता है तो फिर वह मानहानि के दायरे में नहीं आता है। यहॉं पर मानहानि कानून के अपवाद के अंतर्गत कुल 10 बातें बहुत ही सरल शब्दों में स्पष्ट किया गया है।
        अपवाद संख्या 1– मानहानि कानून का पहला अपवाद यह है कि यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर ऐसा बात का आरोप लगाता है जो कि दूसरे व्यक्ति के संदर्भ में सत्य है और यह लोक कल्याण या समाज के हित के भाव से कहा गया है या प्रकाशित किया गया है तो उस स्थिति में यह मानहानि कानून के दायरे में नहीं आता है । किंतु कही गई बात लोक कल्याण के भाव से है अथवा नहीं यह एक विचारणीय प्रश्न है । इसके संदर्भ में पर्याप्त प्रमाण होने चाहिए।
      • अपवाद संख्या 2– मानहानि कानून का दूसरा अपवाद यह है कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक जिम्मेदार पद पर कार्य कर रहा है और अपने कार्य करने के दौरान उसके आचरण से या व्यवहार से कुछ ऐसी बातें प्रकट होती हो जिनके बारे में कि किसी व्यक्ति द्वारा विचार व्यक्त किया जा रहा हो और वह मानहानिपरक हो, भी तो उसे मानहानि कानून से बाहर रखा गया है। किंतु इस दायरे से बाहर के संदर्भ में व्यक्त किए हुए विचार नही होना चाहिए ।

      अपवाद संख्या 3- मानहानि कानून के तीसरे अपवाद के अंतर्गत यह कहा गया है कि यदि कोई सार्वजनिक प्रश्न या मुद्दे के संदर्भ में किसी व्यक्ति के आचरण या शील के बारे में सद्भावनापूर्वक व्यक्त किए गए विचार को मानहानि के अंतर्गत नहीं माना जाएगा। किंतु इसका दायरा यही तक सीमित है। अर्थात् उसके परे जाकर किसी तरह के व्यक्त किए गए विचार, जो कि मानहानिपरक है, वह इसमें नहीं आता है। उसे मानहानिपरक ही माना जायेगा। अपवाद संख्या 4– मानहानि कानून का चौथे अपवाद के अंतर्गत यह कहा गया है कि यदि किसी न्यायालय की कार्यवाही के बारे में सही रिपोर्ट प्रकाशित किया जाए, तो वह मानहानि के अंतर्गत नहीं आता है। भले ही उसमें कही गयी बातों से किसी का मानहानि ही क्यों न होती हो। अपवाद संख्या 5-मानहानि कानून के पांचवें अपवाद में कहा गया है कि यदि कोई न्यायिक फैसला दिया जा चुका है और उसके आधार पर उसके पक्षकारों के शील या चरित्र के बारे में, जो कि उनके आचरण से व्यक्त हुआ है, उसके बारे में व्यक्त किया गया सद्भावनापूर्वक अभिव्यक्ति मानहानि कानून के दायरे में नहीं आता है। अपवाद संख्या 6-मानहानि कानून के छठे अपवाद में बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी कोई ऐसी रचना जनसामान्य के बीच में रखता है, जिसके आधार पर उस रचनाकार के शील के बारे में बातें व्यक्त होती हैं, उसे अभिव्यक्त करना मानहानि के अंतर्गत नहीं आता है। उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति ने किसी प्रकार की पुस्तक की रचना की है। उस रचना के आधार पर लेखक के चरित्र के बारे में जो बातें उभर करके सामने आती हैं, उन कही गयी बातों को मानहानिपरक नही माना जायेगा। अपवाद संख्या 7– मानहानि कानून कानून के सातवें अपवाद के अंतर्गत कहा गया है कि कोई व्यक्ति जो कि दूसरे व्यक्ति को ऊपर यदि कानूनी रूप से अधिकार रखता है या विधि द्वारा उसे ऐसा अधिकार दिया गया है, जिसके अंतर्गत उस व्यक्ति के आचरण के संदर्भ में कहने का अधिकार रखता है, तो इसमें कही गई बातें मानहानि के अंतर्गत नहीं आती है। विभिन्न विभागों में प्रषासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत इस प्रकार की बातें कही जा सकती है। अपवाद संख्या 8-कानून के आठवें अपवाद में कहा गया है कि किसी व्यक्ति के विरुद्ध यदि कोई दूसरा व्यक्ति अभियोग लगाता है, जो कि अभियोग की लगाने के विषयवस्तु के संदर्भ में कानूनी रूप से अधिकार रखता है, तो वह मानहानि के अंतर्गत नहीं माना जाएगा। अपवाद संख्या 9-मानहानि कानून के अपवाद संख्या 9 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति पर लांछन लगाना मानहानि नहीं माना जाएगा, तब तक कि जब तक की मानहानि लगाने वाला व्यक्ति के या अथवा किसी अन्य व्यक्ति के हित की सुरक्षा के लिए या लोक कल्याण के लिए मानहानि पूर्वक आरोप सद्भाव के साथ लगाया गया है। अपवाद संख्या 10– मानहानि कानून के दसवें अपवाद में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध सद्भावना के साथ सावधान करना मानहानि नहीं है । किंतु इसके अंतर्गत शर्त यह है कि ऐसी सावधानी उस व्यक्ति की भलाई के लिए जिसे की सावधान किया गया है या किसी ऐसे व्यक्ति भलाई के लिए जिसके वह हितबद्ध हो या लोक कल्याण के लिए किया गया हो। तो इस प्रकार हमें देखते हैं की मानहानि कानून के अंतर्गत तक काफी पर्याप्त अवसर भी दिए गए हैं जिससे कि व्यक्ति अपने समाज देश के हित को ध्यान में रखकर के वह बातें कर मानहानि के अंतर्गत नहीं माना जाएगा यदि वह सही नियत से कही गई है कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत मिले अधिकार किसे कहा गया है अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर के कहा गया है या फिर समाज के हित को ध्यान में रखकर के कहा गया है। मानहानि कानून Law of defamation की सुनवाई – यदि कोई प्रभावित व्यक्ति मानहानि कानून के अन्तर्गत मुकदमा दायर करना चाहता है तो फिर उसे प्रथम श्रेणी के न्यायाधीष के समक्ष दाखिल किया जाना चाहिए। किन्तु जब यह मामला राज्य के प्रमुख व्यक्तियों या फिर लोकसेवक के खिलाफ होता है, उस स्थिति में यह सुनवाई सेशन न न्यायालय में किया जाता है। इस निर्णय के खिलाफ अपील स्थिति के अनुसार सेषन न्यायालय या हाईकोर्ट में किया जा सकता है। मानहानि मामले में मुकदमा करने की समय सीमा – मानहानि के मामले में किसी प्रकार के मुकदमा करने के सन्दर्भ में यह आवष्यक है कि मानहानि होने के तीन वर्ष के भीतर व्यक्ति को इसे दाखिल किया जाना चाहिए। कुछ मामले में यह अवधि छः माह भी निर्धारित किया गया है। मानहानि कानून Law of defamation उल्लंघन पर सजा – फौजदारी मुकदमें में मानहानि कानून के उल्लंघन में दोष सिद्धि होने पर सजा का प्रावधान किया गया है। इस कानून के धारा 500 में यह व्यवस्था की गयी है कि जब कभी भी कोई व्यक्ति मानहानि कानून का दोषी साबित होता है, तो फिर उसे अधिकतम दो वर्ष की जेल अथवा जुर्माना या फिर दोनों प्रकार की सजा दी जा सकती है। दीवानी कानून के अन्तर्गत पीड़ित व्यक्ति द्वारा मानहानि के कारण उसके सम्मान में हुए नुकसान के एवज में क्षतिपूर्ति की मॉग की जाती है। इस राषि का निर्धारण प्रत्येक मामले में भिन्न भिन्न होता है। वर्तमान में प्रायः यह देखा जाता है कि जिस व्यक्ति की मानहानि की गयी रहती है, वह जब दीवानी मुकदमा दायर करता है तो फिर इसके अन्तर्गत क्षतिपूर्ति के तौर पर करोड़ों रूपये की मॉंग करता रहा है। हालॉंकि इस प्रकार के दावे में मामला आपसी समझौते पर निपटाने का ही प्रयास अधिक किया जाता है। मानहानि के सिविल मामलों में क्षतिपूर्ति की मात्रा मजिस्टेट द्वारा निर्धारण किया जाता है। व्यक्ति की सामाजिक स्थिति के अनुसार इसका क्षति का मुल्यॉकन किया जाता है। वह व्यक्ति जो समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, तो उस स्थिति में जुर्माने की राशि अधिक की जाती है। इसी प्रकार से जब किसी ऐसे मीडिया द्वारा मानहानि की जाती है जो कि व्यापक प्रसार रखता है तो फिर उस स्थिति में उस पर अधिक जुर्माना लगाया जा सकता है। मानहानि कानून की धारा 501 Section 501 of Law of defamation में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी भी प्रकार के कोई व्यक्ति मानहानिपरक् सामग्री उत्कीर्ण करता है अथवा प्रकाषित करता है और उसे इस बात की जानकारी हो कि यह मानहानि परक सामग्री है, तो फिर उसे भी सजा दी जा सकती है। इसके अन्तर्गत अधिकतम दो वर्ष की जेल अथवा जुर्माना या फिर दोनो प्रकार की सजा दी जा सकती है।

      मीडिया का प्रभावhttps://mediastudyworld.in/media-effect/
      Law of defamationमानहानि कानून की धारा 502 में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि किसी भी प्रकार के कोई मानहानिपरक् सामग्री वितरित करता है और उसे इस बात की जानकारी हो कि यह मानहानिपरक सामग्री है तो फिर उसे भी सजा दी जा सकती है। इसके अन्तर्गत अधिकतम दो वर्ष की जेल अथवा जुर्माना या फिर दोनों प्रकार की सजा दी जा सकती है।

      https://www.thehindu.com/news/national/sc-stays-rahul-gandhis-conviction-in-modi-surname-remark-criminal-defamation-case/article67157567.ece
      मानहानि आरोप से बचाव – जब कभी भी किसी व्यक्ति पर मानहानि का आरोप लगता है, तो फिर वह अपने बचाव में दिये गये अपवादों का सहारा ले सकता है। यदि उसके द्वारा लगाया गया आरोप दिये गये अपवाद की किसी श्रेणी के अन्तर्गत आता है, तो फिर उससे उसका बचाव हो सकता है। वह यह भी कह सकता है कि उसके द्वारा दिया बयान एक कमेन्ट है। यह कोई तथ्यात्मक बात नही है और इसे वह लोकहित को ध्यान में रख करके किया है।
      Law of defamation के अंतर्गत सजा के खिलाफ अपील – इस प्रकार की सजा मिलने पर प्रतिवादी अर्थात् जिसे सजा दी गयी है, वह व्यक्ति सेशन अदालत अथवा उच्च न्यायालय में उसके खिलाफ अपील कर सकता है।


      विशेषाधिकार– अब कुछ ऐसी भी स्थितियां है जिसमें कि व्यक्ति को कानून द्वारा विशेष अधिकार दिये गये है। इसके कारण वह इस Law of defamation कानून के गिरफ्त में नहीं आता है । उसके द्वारा कही जाने वाली मानहानिपरक बातें, भले ही वह झूठी ही क्यों न हो, उस पर किसी प्रकार का कोई मुकदमा नही चलाया जा सकता है। संसदीय विशेषाधिकार कानून के अन्तर्गत सांसदों एवं विधायकों को ऐसा ही अधिकार मिला हुआ है। इसी प्रकार से न्यायालय के मामले में न्यायाधीश, गवाह, वकील आदि के कथन पर मानहानि नही की जा सकती है, भले ही वे दुर्भावनापूर्वक ही क्यों न कहे गये हो।

      Law of defamation


      
      
      
      
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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