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    Qualitative analysis example

    Method of Interview Analysis

    News Headlines

    Interview Analysis

    Qualities of a Reporter रिपोर्टर के गुण

      Functions of Reporter रिपोर्टर के कार्य

    Non-Probability Sampling

    Research Design: Meaning, Concept, and Characteristics

    Importance of Research Design

    Kinds of research: different basis

    Kinds of Research

    Meaning of Research रिसर्च का अर्थ

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        Functions of Reporter रिपोर्टर के कार्य

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      कोचिंग संस्थानों के भ्रामक विज्ञापन और गुमराह होता समाज

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      2 months ago
      in Media News & Updates
      0
      कोचिंग संस्थानों के भ्रामक विज्ञापन और गुमराह होता समाज

      कोचिंग संस्थानों के भ्रामक विज्ञापन और गुमराह होता समाज

      आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में शिक्षा और नौकरी की तैयारी एक गंभीर उद्योग बन चुकी है। खासकर सिविल सेवा, इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए देशभर के बड़े शहरों में भारी भरकम फीस लेने वाले कोचिंग संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है। इनमें से कई संस्थान छात्रों के भविष्य को आकार देने का दावा करते हैं, परंतु वास्तविकता में वे केवल “सफलता के भ्रम” का व्यापार कर रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान दृष्टि IAS पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया गया — यह निर्णय केवल एक संस्था के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि शिक्षा जगत में फैले भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध एक चेतावनी है।

      भ्रामक विज्ञापन का मामला

      CCPA ने पाया कि दृष्टि IAS ने वर्ष 2022 के यूपीएससी परिणामों के बाद अपने विज्ञापन में दावा किया कि उसके 216 से अधिक छात्र सफल हुए हैं। विज्ञापन देखकर यह संदेश गया कि इन सभी अभ्यर्थियों की सफलता का श्रेय संस्थान की कोचिंग को जाता है।
      परंतु जांच में स्पष्ट हुआ कि इन 216 में से लगभग 162 छात्र केवल इंटरव्यू गाइडेंस प्रोग्राम से जुड़े थे, न कि मुख्य कोर्स से। फिर भी संस्था ने पूरे परिणाम को अपनी सफलता बताकर एक भ्रामक चित्र प्रस्तुत किया। यह न केवल छात्रों और अभिभावकों को भ्रमित करने वाला था, बल्कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों का भी उल्लंघन था।

      समाज पर भ्रामक विज्ञापनों का प्रभाव

      भ्रामक विज्ञापनों का सबसे गहरा असर छात्रों और उनके अभिभावकों पर पड़ता है। ऐसे विज्ञापनों से उन्हें यह भ्रम होता है कि सफलता का सीधा रास्ता केवल उसी कोचिंग से होकर जाता है।
      इससे वे अपने निर्णय स्वतंत्र सोच के बजाय भ्रमित मानसिकता में लेकर भारी-भरकम फीस भर देते हैं। यह स्थिति उन लाखों परिवारों के लिए आर्थिक और मानसिक दबाव का कारण बनती है, जो अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं।

      कोचिंग उद्योग का बढ़ता व्यापार

      शिक्षा आज ज्ञान का नहीं, बल्कि व्यापार का माध्यम बन गई है।
      हर वर्ष जब UPSC, NEET या JEE जैसी परीक्षाओं के परिणाम घोषित होते हैं, तो अखबारों में पन्नों भर-भरकर कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन छपते हैं।प्रत्येक संस्था दावा करती है कि उनके यहाँ पढ़ने वाले छात्रों ने सफलता प्राप्त की है, चाहे उन छात्रों ने वहां केवल कुछ दिनों की क्लास ही क्यों न ली हो अथवा प्रवेश लेकर के उसे छोड़ दिया हो।

      इन विज्ञापनों में चमक-दमक, सफलता की कहानियाँ और “100% रिजल्ट” जैसे झूठे दावे किए जाते हैं। इसके पीछे उद्देश्य केवल एक होता है — अधिक से अधिक दाखिले कराना और मोटी फीस वसूलना।

      फीस और धोखे का जाल

      भ्रामक विज्ञापनों से आकर्षित होकर छात्र कोचिंग संस्थानों में भारी भरकम फीस देकर दाखिला तो ले लेते हैं, पर कुछ ही दिनों बाद उन्हें यह एहसास होता है कि वे एक व्यवस्थित व्यापारिक जाल में फँस चुके हैं।
      कई संस्थान फीस वापसी की कोई नीति नहीं रखते, और यदि छात्र कोचिंग छोड़ दे, तब भी उसका पैसा वापस नहीं किया जाता। हमारे कई ऐसी परिचित हैं जिनके बच्चों ने लाखों रुपए देकर कोचिंग में प्रवेश तो लिया, एक सप्ताह बाद ही उसे छोड़ भी दिया। किंतु उनका पैसा वापस नहीं किया गया।
      ऐसे संस्थानों की कोई गुणवत्ता मानक या जवाबदेही नहीं होती।
      बस दो मौके पर उनका प्रचार तेज़ हो जाता है — एक जब परिणाम आते हैं, और दूसरा जब एडमिशन शुरू होते हैं।

      कोटा मॉडल: सफलता और त्रासदी दोनों का केंद्र

      राजस्थान का कोटा शहर कोचिंग की राजधानी के रूप में जाना जाता है। हर वर्ष लाखों छात्र वहां मेडिकल और इंजीनियरिंग परीक्षाओं की तैयारी के लिए पहुँचते हैं।परंतु यही कोटा अब परीक्षा तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के आत्महत्या की राजधानी भी बन चुका है। लंबी प्रतिस्पर्धा, अत्यधिक दबाव, और असफलता का डर — इन सबने अनेक छात्रों की जान ले ली है। भ्रामक विज्ञापनों से उत्पन्न “हर कोई सफल हो सकता है” जैसी धारणा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती है।
      जब वास्तविकता में परिणाम नहीं मिलते, तो छात्र आत्मग्लानि और अवसाद के शिकार हो जाते हैं।

      सामाजिक दृष्टि से समस्या का विश्लेषण

      समाज में कोचिंग संस्थानों को “सफलता की गारंटी” मान लिया गया है। अभिभावक सोचते हैं कि यदि उनका बच्चा किसी प्रसिद्ध कोचिंग में दाखिला ले लेगा, तो सफलता निश्चित है। यह सोच स्वयं परिश्रम और आत्मविश्वास की भावना को कमजोर करती है।
      भ्रामक विज्ञापन इस मानसिकता को और गहरा करते हैं, जिससे छात्र अपनी असफलता के लिए स्वयं को दोषी मानने लगते हैं, जबकि असली दोष एक ऐसे तंत्र का होता है जो उन्हें गलत दिशा में मोड़ देता है।

      समस्या के समाधान और सुधार की दिशा
      इस प्रकार की समस्याओं के समाधान के दिशा में निम्न पहल किया जा सकते हैं

      कानूनी और नैतिक पहलू

      उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत किसी भी प्रकार का भ्रामक विज्ञापन अवैध और दंडनीय अपराध है।
      CCPA का यह निर्णय इस बात का प्रतीक है कि अब शिक्षा जगत में भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। हालांकि अभी तक कोचिंग संस्थानों के लिए कोई स्पष्ट आचार संहिता नहीं है, पर इसकी सख्त आवश्यकता है ताकि शिक्षा को व्यवसायिक लाभ के बजाय सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखा जा सके।

      शैक्षणिक संस्थाओं के गिरते स्तर में कोचिंग के कारोबार को लगातार बढ़ावा दिया कई शैक्षिक संस्थान कि इसमें भूमिका भी रही है। कुछ सकारात्मक पहलू है और कुछ लोगों के लिए यह उपयोगी हो सकता है किंतु इसे सार्वभौमिक सत्य बना देना कहां तक उचित है। फिलहाल बात यहां भ्रामक विज्ञापनों की हो रही है।
      कोचिंग संस्थानों के भ्रामक विज्ञापन केवल एक व्यापारिक चाल नहीं, बल्कि समाज के भविष्य से किया जा रहा एक छल हैं।
      छात्रों की मेहनत और आत्मविश्वास को “संस्थान की सफलता” के नाम पर बेच देना नैतिक रूप से निंदनीय है।
      केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा दृष्टि IAS पर लगाया गया जुर्माना शिक्षा जगत में सच्चाई और पारदर्शिता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। अब समय है कि अभिभावक और छात्र दोनों समझें कि सफलता की असली कुंजी उनकी मेहनत, सच्ची लगन,आत्मअनुशासन और सही दिशा में प्रयास है — न कि किसी कोचिंग के चमकदार विज्ञापन।
      जब तक समाज “भ्रम” की जगह “बोध” को नहीं अपनाएगा, तब तक शिक्षा उद्योग की यह चमकदार दुनिया छात्रों के भविष्य को अंधेरे में धकेलती रहेगी।

      1. कोचिंग संस्थानों के लिए नियामक कानून:
        सरकार को कोचिंग संस्थानों के संचालन और विज्ञापनों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने चाहिए।
      2. विज्ञापनों का स्वतंत्र सत्यापन:
        प्रत्येक कोचिंग द्वारा किए गए सफलता के दावों की सत्यता जांचने के लिए स्वतंत्र एजेंसी नियुक्त हो।
      3. फीस की राशि एवं वापसी की नीति:
        छात्रों के हित में फीस की अधिकतम राशि एवं उसके वापसी या आंशिक रिफंड की नीति अनिवार्य की जाए।
      4. मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता:
        छात्रों के लिए काउंसलिंग और तनाव प्रबंधन सत्र नियमित रूप से आयोजित किए जाएं।
      5. मीडिया की जिम्मेदारी:
        समाचार पत्र और डिजिटल प्लेटफॉर्म केवल सत्यापित विज्ञापन ही प्रकाशित करें।

      आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में शिक्षा और नौकरी की तैयारी एक गंभीर उद्योग बन चुकी है। खासकर सिविल सेवा, इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए देशभर के बड़े शहरों में भारी भरकम फीस लेने वाले कोचिंग संस्थानों की बाढ़ सी आ गई है। इनमें से कई संस्थान छात्रों के भविष्य को आकार देने का दावा करते हैं, परंतु वास्तविकता में वे केवल “सफलता के भ्रम” का व्यापार कर रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान दृष्टि IAS पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया गया — यह निर्णय केवल एक संस्था के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि शिक्षा जगत में फैले भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध एक चेतावनी है।

      भ्रामक विज्ञापन का मामला

      CCPA ने पाया कि दृष्टि IAS ने वर्ष 2022 के यूपीएससी परिणामों के बाद अपने विज्ञापन में दावा किया कि उसके 216 से अधिक छात्र सफल हुए हैं। विज्ञापन देखकर यह संदेश गया कि इन सभी अभ्यर्थियों की सफलता का श्रेय संस्थान की कोचिंग को जाता है।
      परंतु जांच में स्पष्ट हुआ कि इन 216 में से लगभग 162 छात्र केवल इंटरव्यू गाइडेंस प्रोग्राम से जुड़े थे, न कि मुख्य कोर्स से। फिर भी संस्था ने पूरे परिणाम को अपनी सफलता बताकर एक भ्रामक चित्र प्रस्तुत किया। यह न केवल छात्रों और अभिभावकों को भ्रमित करने वाला था, बल्कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों का भी उल्लंघन था।

      समाज पर भ्रामक विज्ञापनों का प्रभाव

      भ्रामक विज्ञापनों का सबसे गहरा असर छात्रों और उनके अभिभावकों पर पड़ता है। ऐसे विज्ञापनों से उन्हें यह भ्रम होता है कि सफलता का सीधा रास्ता केवल उसी कोचिंग से होकर जाता है।
      इससे वे अपने निर्णय स्वतंत्र सोच के बजाय भ्रमित मानसिकता में लेकर भारी-भरकम फीस भर देते हैं। यह स्थिति उन लाखों परिवारों के लिए आर्थिक और मानसिक दबाव का कारण बनती है, जो अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सब कुछ दांव पर लगा देते हैं।

      कोचिंग उद्योग का बढ़ता व्यापार

      शिक्षा आज ज्ञान का नहीं, बल्कि व्यापार का माध्यम बन गई है।
      हर वर्ष जब UPSC, NEET या JEE जैसी परीक्षाओं के परिणाम घोषित होते हैं, तो अखबारों में पन्नों भर-भरकर कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन छपते हैं।प्रत्येक संस्था दावा करती है कि उनके यहाँ पढ़ने वाले छात्रों ने सफलता प्राप्त की है, चाहे उन छात्रों ने वहां केवल कुछ दिनों की क्लास ही क्यों न ली हो अथवा प्रवेश लेकर के उसे छोड़ दिया हो।

      इन विज्ञापनों में चमक-दमक, सफलता की कहानियाँ और “100% रिजल्ट” जैसे झूठे दावे किए जाते हैं। इसके पीछे उद्देश्य केवल एक होता है — अधिक से अधिक दाखिले कराना और मोटी फीस वसूलना।

      फीस और धोखे का जाल

      भ्रामक विज्ञापनों से आकर्षित होकर छात्र कोचिंग संस्थानों में भारी भरकम फीस देकर दाखिला तो ले लेते हैं, पर कुछ ही दिनों बाद उन्हें यह एहसास होता है कि वे एक व्यवस्थित व्यापारिक जाल में फँस चुके हैं।
      कई संस्थान फीस वापसी की कोई नीति नहीं रखते, और यदि छात्र कोचिंग छोड़ दे, तब भी उसका पैसा वापस नहीं किया जाता। हमारे कई ऐसी परिचित हैं जिनके बच्चों ने लाखों रुपए देकर कोचिंग में प्रवेश तो लिया, एक सप्ताह बाद ही उसे छोड़ भी दिया। किंतु उनका पैसा वापस नहीं किया गया।
      ऐसे संस्थानों की कोई गुणवत्ता मानक या जवाबदेही नहीं होती।
      बस दो मौके पर उनका प्रचार तेज़ हो जाता है — एक जब परिणाम आते हैं, और दूसरा जब एडमिशन शुरू होते हैं।

      कोटा मॉडल: सफलता और त्रासदी दोनों का केंद्र

      राजस्थान का कोटा शहर कोचिंग की राजधानी के रूप में जाना जाता है। हर वर्ष लाखों छात्र वहां मेडिकल और इंजीनियरिंग परीक्षाओं की तैयारी के लिए पहुँचते हैं।परंतु यही कोटा अब परीक्षा तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के आत्महत्या की राजधानी भी बन चुका है। लंबी प्रतिस्पर्धा, अत्यधिक दबाव, और असफलता का डर — इन सबने अनेक छात्रों की जान ले ली है। भ्रामक विज्ञापनों से उत्पन्न “हर कोई सफल हो सकता है” जैसी धारणा छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती है।
      जब वास्तविकता में परिणाम नहीं मिलते, तो छात्र आत्मग्लानि और अवसाद के शिकार हो जाते हैं।

      सामाजिक दृष्टि से समस्या का विश्लेषण

      समाज में कोचिंग संस्थानों को “सफलता की गारंटी” मान लिया गया है। अभिभावक सोचते हैं कि यदि उनका बच्चा किसी प्रसिद्ध कोचिंग में दाखिला ले लेगा, तो सफलता निश्चित है। यह सोच स्वयं परिश्रम और आत्मविश्वास की भावना को कमजोर करती है।
      भ्रामक विज्ञापन इस मानसिकता को और गहरा करते हैं, जिससे छात्र अपनी असफलता के लिए स्वयं को दोषी मानने लगते हैं, जबकि असली दोष एक ऐसे तंत्र का होता है जो उन्हें गलत दिशा में मोड़ देता है।

      कानूनी और नैतिक पहलू

      उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत किसी भी प्रकार का भ्रामक विज्ञापन अवैध और दंडनीय अपराध है।
      CCPA का यह निर्णय इस बात का प्रतीक है कि अब शिक्षा जगत में भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। हालांकि अभी तक कोचिंग संस्थानों के लिए कोई स्पष्ट आचार संहिता नहीं है, पर इसकी सख्त आवश्यकता है ताकि शिक्षा को व्यवसायिक लाभ के बजाय सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखा जा सके।

      समस्या के समाधान और सुधार की दिशा
      इस प्रकार की समस्याओं के समाधान के दिशा में निम्न पहल किया जा सकते हैं

      1. कोचिंग संस्थानों के लिए नियामक कानून:
        सरकार को कोचिंग संस्थानों के संचालन और विज्ञापनों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने चाहिए।
      2. विज्ञापनों का स्वतंत्र सत्यापन:
        प्रत्येक कोचिंग द्वारा किए गए सफलता के दावों की सत्यता जांचने के लिए स्वतंत्र एजेंसी नियुक्त हो।
      3. फीस की राशि एवं वापसी की नीति:
        छात्रों के हित में फीस की अधिकतम राशि एवं उसके वापसी या आंशिक रिफंड की नीति अनिवार्य की जाए।
      4. मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता:
        छात्रों के लिए काउंसलिंग और तनाव प्रबंधन सत्र नियमित रूप से आयोजित किए जाएं।
      5. मीडिया की जिम्मेदारी:
        समाचार पत्र और डिजिटल प्लेटफॉर्म केवल सत्यापित विज्ञापन ही प्रकाशित करें।

      शैक्षणिक संस्थाओं के गिरते स्तर में कोचिंग के कारोबार को लगातार बढ़ावा दिया कई शैक्षिक संस्थान कि इसमें भूमिका भी रही है। कुछ सकारात्मक पहलू है और कुछ लोगों के लिए यह उपयोगी हो सकता है किंतु इसे सार्वभौमिक सत्य बना देना कहां तक उचित है। फिलहाल बात यहां भ्रामक विज्ञापनों की हो रही है।
      कोचिंग संस्थानों के भ्रामक विज्ञापन केवल एक व्यापारिक चाल नहीं, बल्कि समाज के भविष्य से किया जा रहा एक छल हैं।
      छात्रों की मेहनत और आत्मविश्वास को “संस्थान की सफलता” के नाम पर बेच देना नैतिक रूप से निंदनीय है।
      केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा दृष्टि IAS पर लगाया गया जुर्माना शिक्षा जगत में सच्चाई और पारदर्शिता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। अब समय है कि अभिभावक और छात्र दोनों समझें कि सफलता की असली कुंजी उनकी मेहनत, सच्ची लगन,आत्मअनुशासन और सही दिशा में प्रयास है — न कि किसी कोचिंग के चमकदार विज्ञापन।
      जब तक समाज “भ्रम” की जगह “बोध” को नहीं अपनाएगा, तब तक शिक्षा उद्योग की यह चमकदार दुनिया छात्रों के भविष्य को अंधेरे में धकेलती रहेगी।

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