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      Home Media Study Material Communication

      Spiral of silence theory स्पाइरल आफ साइलेंस सिद्धांत

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Communication
      0

      Spiral of silence theory of media – Spiral of silence theory of media is one important theory in reference to expressing view when it is in minority. The article discusses various aspects of this theory.

      नमस्कार! जैसा कि आप जानते हैं कि जनसंचार के क्षेत्र में संचार के प्रभाव, उपयोग, आदत आदि को ले करके जो विभिन्न शोध एवं अध्ययन किए गए हैं, उसके फलस्वरुप विभिन्न प्रकार के जनसंचार सिद्धांतों का उदय हुआ है। संचार वैज्ञानिकों ने उसे अपने-अपने ढंग से इसे प्रस्तुत किया है। इस प्रकार से विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों माध्यमों आदि को ध्यान में रखकर के जो अध्ययन किए गए हैं उसके परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के जनसंचार सिद्धांत दिए गए हैं।


      तो आज हम उन्हीं संचार सिद्धांतों में से एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं। जनसंचार क्या है सिद्धांत को हम स्पायरल आफ साइलेंस सिद्धांत के नाम से जानते हैं । इसके अंतर्गत हम इस बात की चर्चा करेंगे कि स्पायरल ऑफ साइलेंस कब, कहाॅ एवं किसके द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस सिद्धांत में क्या बातें कही गयी है। इस सिद्धांत के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू क्या है और वर्तमान में यह सिद्धांत कहां तक प्रासंगिक है।Bullet Theory of Mass Communication जनसंचार का बुलेट सिद्धांत


      स्पाइरल ऑफ साइलेंस संचार सिद्धांत को एलिजाबेथ नेवले न्यूमान ने 1960 के दशक में प्रस्तुत किया। वह एक जर्मन राजनीतिक वैज्ञानिक थी। उन्होंने अपने पति के साथ 1947 में पब्लिक ओपिनियन नाम के एक ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की। इस सिद्धांत की पृष्ठभूमि में हम यह कह सकते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजीवाद का जो प्रचार चल रहा था, उसके कारण यहूदियों की स्थिति को देख करके ही एलिजाबेथ नेवले न्यूमान ने उसके संदर्भ में अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र करते हुए इसे प्रस्तुत किया। जर्मन में एडोल्फ हिटलर उस समय जर्मन का शासक था। वह पूरे जर्मन समाज पर अपना आधिपत्य जमाए हुए था। वह एक खास प्रकार की विचारधारा से प्रेरित था। वहाॅ पर और उसे देखते हुए यहूदी जो कि अल्पसंख्यक थे, वे अलग-थलग होने के डर से अपनी बातों को नहीं कहते थे। उनके विचार एवं भावनाएं मीडिया में सामने नही आ पाती थी। उन पर किया गया अत्याचार जगजाहिर है।


      तो पहले हम यह देखते हैं कि स्पाइरल आफ साइलेंस पद का आशय क्या होता है। यह पाया गया कि जब कोई एक विचार बहुत ही प्रभावी तरीके से समाज में प्रसारित कर दिया जाता है तो फिर दूसरे ढंग के या उससे अलग ढंग के विचार रखने वाले व्यक्ति यदि अल्पसंख्यक में हैं, तो फिर वह अपने उन विचारों को सामने नहीं ले जाते हैं और वे शांत ही रहते हैं। अपनी बातों को वे लोगों से कहने में डरते हैं। इसलिए उसे कहने में संकोच करते हैं। उनको यह लगता है कि मुख्यधारा के विचारों से अलग हटकर विचार व्यक्त करने पर वे सबसे अलग अलग हो सकते हैं क्योंकि वह अल्पसंख्यक हैं। इसी प्रक्रिया को स्पाइरल ऑफ साइलेंस कहा जाता है।


      स्पाइरल साइलेंस सिद्धांत की मूलभूत अवधारणाएं Basic concept of Spiral of silence theory


      स्पाइरल आफ साइलेंस सिद्धांत में जो भी बातें कही गई हैं, वे सब कुछ मूलभूत अवधारणाओं पर आश्रित हैं । इसमें से एक प्रमुख बात यह है कि जनमाध्यम उन विचारों को ज्यादा प्रमुखता से प्रकाशित करते हैं जो कि बहुमत के विचार होते हैं और जो विचार अल्पमत के होते हैं उनको कम वरीयता देते हैं। ऐसी स्थिति में अल्पमत विचार रखने वाले लोग अपने बातों को लोगों द्वारा और अस्वीकार कर देने के भय से नहीं कहते हैं , वे अल्पमत में होते हैं, इसलिए उनमें आत्मविश्वास की भी कमी होती है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि वे अपने विचारों कों व्यक्त करने के बाद फिर उन्हें वापस भी ले लेते हैं। अब इस प्रकार से जो विचार ज्यादा अधिक लोगों द्वारा व्यक्त किए जाते हैं, वह ज्यादा स्थान पाते हैं। स्पाइरल ऑफ साइलेंस सिद्धांत में यह माना गया है कि जनमाध्यम बहुमत के विचारों को ज्यादा प्रमुखता से सामने लाते हैं, वे विचार जो कि अल्पमत में होते हैं, उसे वे कम कवरेज देते हैं। जो लोग अल्पमत में होते हैं, वे किसी भी विषय पर अपने विचार इसलिए नहीं व्यक्त करते हैं , क्योंकि उसे कोई भी समर्थन नहीं मिल पा रहा होता है और उसके कारण और लोगों से वे अलग-थलग हो सकते हैं। वह विचार जिसे कि अधिक से अधिक लोगों का समर्थन प्राप्त रहता है, वह जितना ही अधिक दिया जाता है उसकी तुलना में वह विचार जो कि कम लोग रखते हैं, वह और अधिक शांत होते चले जाते हैं।


      स्पाइरल ऑफ साइलेंस सिद्धांत का उदय – Spiral of silence theory स्पाइरल ऑफ साइलेंस सिद्धांत विचार का उदय मुख्य रूप से 1965 के जर्मन संघीय चुनाव अभियान के दौरान किए गए चुनाव अनुसंधान के संबंध में एक किये गये अध्ययन के पश्चात सामने आया। इस सन्दर्भ में चुनाव से पहले एलेन्सबैक इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक ओपिनियन रिसर्च में नोएल-न्यूमैन ने पूरे अभियान में मतदाताओं की राजनीतिक राय को जानने के लिए एक सर्वेक्षणों की एक श्रृंखला शुरू की और इस अध्ययन के बाद स्पायरल ऑफ साइलेंस का सिद्धांत को प्रस्तुत किया।


      स्पाइरल ऑफ साइलेंस सिद्धान्त के सकारात्मक पहलू


      इस सिद्धांत का एक सकारात्मक पहलू तो यही है कि इसने जनसंचार माध्यम की समाज में भूमिका के संदर्भ में अपने ढंग से कुछ बातें बतलाई है। यह सिद्धांत कुछ समय स्थितियों में विशेष रूप से प्रभावी रूप में कार्य करता है। उदाहरण के लिए जब किसी विषय पर कंपेन किया जाता है, उस समय यह सिद्धांत कहीं अधिक प्रभावी ढंग से लागू होता हुआ दिखता है, क्योंकि जिस किसी भी विषय का प्रचार किया जाता है या कंपेन किया जाता है, वह मीडिया में अधिक से अधिक स्थान पाता है, उसकी तुलना में जो जिसके बारे में किसी तरह की कोई बात नहीं कही जाती है वह पीछे रहता है।


      स्पाइरल ऑफ साइलेंस के नकारात्मक पहलू Negative aspects of spiral of silence theory


      इस सिद्धांत के संदर्भ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कुछ व्यक्ति जो कि अल्पसंख्यक में होते हैं, उसके बावजूद अपनी बातों को बहुत ही जोरदार तरीके से प्रस्तुत करते हैं ,उनके बारे में इस सिद्धांत में कुछ भी नहीं कहा गया है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि बहुमत में रखे गए विचार की तुलना में अल्पमत में रखे गए विचार को प्रस्तुत करने वाले अपनी बातों को प्रभावी ढंग से बगैर किसी प्रकार के बाधा के लगातार कहते रहते हैं। वह बहुमत के विचार की तुलना में कहीं ज्यादा अधिक मुखर होकर के सामने आता है। किंतु इस सिद्धांत में इसके बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।


      दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि वर्तमान में संचार तकनीक में जो बदलाव हुए है, उसके परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के ऐसे प्लेटफार्म उपलब्ध हुए हैं, जहाॅं पर कि लोग अपनी बातों को रख सकते हैं और उन पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं है और उन्हें विशेष तरीके से अलग-थलग होने का डर भी नहीं है। इंटरनेट के इस तकनीकी युग में सभी लोगों को अपनी बातों को कहने के लिए एक अवसर मिला हुआ है। किसी भी विषय पर सभी प्रकार के विचारों को सामने आने का खुला आमंत्रण मिला रहता है। इस प्रकार से इसके बारे स्पाइरल ऑफ साइलेंस सिद्धांत जो कभी कम जनमाध्यमों के होने के कारण से ज्यादा सही पर लक्षित होता था, वह अब उस रूप में नहीं है।

      किंतु इस सिद्धांत का नकारात्मक पहलू यह है कि यह अल्पमत के लोगों के किसी विषय पर शांत रहने के अन्य कारणों पर किसी प्रकार का और कोई प्रकाश नहीं डालता है। यह भी संभव है कि अल्पमत वाले लोगअपने विचारों को अन्य कारणों से भी न दे रहे हो, किंतु उसकी किसी प्रकार की कोई चर्चा नहीं की गई हैं। यह सिद्धांत जनमाध्यमों के एक नकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत करता है । इससे यही लगता है कि जनमाध्यम निरपेक्ष हो करके कार्य करने के बजाय बहुमत के दबाव में आकर के कार्य करते हैं।


      स्पाइरल आफ साइलेंस सिद्धांत की प्रासंगिकता


      स्पाइरल आफ साइलेंस सिद्धांत जिस दौर में प्रस्तुत किया गया है, उस समय के मीडिया का परिवेश और वर्तमान मीडिया के परिवेश में बहुत ही अंतर है। इंटरनेट के कारण से मीडिया का लोकव्यापीकरण हुआ है और सोशल मीडिया के अतिरिक्त अन्य प्रकार के विभिन्न मीडिया प्लेटफार्म उपलब्ध है जहाॅं पर कि लोगों को अपनी बातों को कहने सुनने का बहुत ही सहज और अच्छा अवसर उपलब्ध है। इसे देखते हुए मीडिया के बारे में पूर्व में जो सीमाएं थी और माध्यमों की कार्यप्रणाली थी, वह वर्तमान में बिल्कुल बदल गई है। पहले मीडिया एक दिशा या दैशिक् संचार रूप में ही कार्य करती थी। परंतु अब मीडिया का एक बहुत बड़ा भाग लोगों के साथ इंटरएक्टिव रूप में हो करके कार्य करती है। वहां पर वह लोगों के विचारों को आमंत्रित करता है।


      स्पाइरल आफ साइलेंस सिद्धांत को वर्तमान में बहुत ही व्यापक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है। किंतु यदि इस सिद्धांत को यदि पूरी तरीके से हम स्वीकार नहीं करते हैं तो इसे हर प्रकार से इनकार भी नहीं सकते हैं। बहुत बार ऐसे अवसर होते हैं जब किसी विषय पर लोगों के अलग-अलग विचार होते हैं, किंतु बहुमत के विचार को ध्यान में रखकर के वे सारे संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद व्यक्त नहीं करते हैं। इसके पीछे उनके अलग-थलग होने के बजाय अन्य तरह के कारण भी होते हैं । इसी प्रकार, वर्तमान में कई बार कुछ माध्यम बहुमत के विचार को अल्पमत के विचार की तुलना में अधिक मुखर हो करके प्रसारित करते हैं।

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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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