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      Home Media Study Material Communication

      Intrapersonal communication

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Communication, Human Communication
      0

      Intrapersonal communication is a kind of communication in which a person communicates with himself or herself. This article discusses some important aspects of Intrapersonal communication.


      जैसा कि हम जानते हैं कि संचार हमारे जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियाकलाप है। हम यह भी कह सकते हैं कि हमारे जीवन के सभी प्रकार की गतिविधियों को संचालित करने का यह आधार है। यह सभी गतिविधियों के साथ यह जुड़ा हुआ रहता है। यह आवश्यक नहीं है कि जब भी कोई गतिविधि हो उसमें संचार कार्य किया जा रहा है । किंतु किसी गतिविधि की पृष्ठभूमि संचार अवश्य मिलता है। संचार का जो क्रियाकलाप है वह विभिन्न रूपों में होता है। इसे कई प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। आगे हम यहां पर संचार के विभिन्न रूपों पर चर्चा कर रहे हैं।

      आत्मकेन्द्रित संचार Intrapersonal communication
      अंतःव्यक्ति संचार के अंतर्गत संचार का वह रूप आता है जिसमें कि व्यक्ति स्वयं से संचार करता है। अर्थात् उसमें संदेश भेजने वाले और संदेश ग्रहण करने वाले दोनों का कार्य वही करता है। इसे आत्म संचार एवं आत्मकेन्दित संचार एवं स्वसंचार भी कहते है। संचार प्रक्रिया का यह स्वरूप किसी भी व्यक्ति द्वारा सामान्यतौर पर सतत् रूप से किया जाता है। अर्थात् आत्मकेन्दित संचार सबसे अधिक मात्रा में किया जाता है।

      आत्मकेन्दित संचार का स्वरूप Forms of Intrapersonal communication

      आत्मकेन्दित संचार कई रूपों में होता है। सूचना एवं स्वप्न देखना आत्मकेन्दित संचार का ही एक रूप है। स्वप्न भी दो तरीके से होते हैं। दिवास्वप्न एवं स्वप्न भी आत्म संचार का ही रूप हैं। जब हम किसी विषय के बारे में सोचते हैं तो वह एक प्रकार से हम आत्मकेंद्रित संचार में संलग्न हो जाते हैं। इस प्रकार का संचार उस समय विशेष रूप से होता है, जब हम एकाग्रचित्त होते हैं। जब कोई व्यक्ति एकांत में होता है, तब वह विभिन्न प्रकार के विषय पर चिंतन मनन करता है। उसका वह विश्लेषण करता है।

      आत्मकेन्दित संचार का एक अन्य रूप स्वयं से बहुत ही मुखर हो कर के बात करना भी होता है । बहुत से लोगों में इस प्रकार के संचार करते समय उनके चेहरे की भाव भंगिमा एवं शरीर के हाव भाव बहुत ही स्पष्ट तौर पर परीलक्षित होते है। कभी कभी व्यक्ति जब एकांत में होता है तो फिर वह मुखर हो करके आत्मकेन्दित संचार करता है। यह स्थिति उस समय विषेषतौर पर उत्पन्न होता है जब किसी बात पर खिन्न रहता है । उस समय उसे अपने मनोभावों को व्यक्त करने की सख्त आवष्यकता महसूस होती है। विभिन्न अवसरों, भावों और अनुभवों के अनुसार इसकी तीव्रता कम या अधिक होती है। इसी प्रकार से उसके विषय का भी निर्धारण होता है।


      आत्म संचार का एक अन्य तरीका लिखित रूप में भी होता है। इसमें हम जो कुछ भी लिखते हैं उसे स्वयं पढ़ने के लिए लिखते हैं। यह हमारी अपनी व्यक्तिगत डायरी हो सकती है। इसमें कोई खरीदारी का सामान भी लिखा जा सकता है या किसी याद करने की योग्य कोई बात लिखी जा सकती है। अन्य प्रकार के नोट भी लिखे जा सकते हैं । यह सब कुछ आत्म संचार में होता है।


      आत्मकेन्द्रित संचार की प्रक्रिया Process of Intrapersonal communicationWhat is communication ?


      आत्मकेन्द्रित संचार में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को वह उठाता है। उसका जवाब या रिस्पांस भी वही देता है। जिस रुप में रिस्पांस देना होता है, यह बहुत ही सकारात्मक अथवा बहुत ही नकारात्मक अंदाज में भी हो सकता है। इसे अन्य प्रकार के भाव में भी उसे किया जा सकता है। किंतु इसी के साथ जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से संवाद कर रहा होता है, उसमें भी वह आत्मकेन्दित संचार करता है। वह जो कुछ भी संदेश बाहर से ग्रहण करता है, उसके संदर्भ में वह अपने भीतर विश्लेषण करता है। इस प्रकार संचार में एक ही व्यक्ति श्रोता एवं रिसीवर दोनों की भूमिका निभाता है। वही संदेश देता है और वही फीडबैक भी देता है।


      आत्मकेन्दित संचार करने के लिए किसी भी प्रकार का बाहरी अथवा आंतरिक उद्दीपन कारण बन सकता है। जब किसी हमें किसी कारण से उद्वीपन होता है, तो उसी के साथ आत्मकेन्दित संचार आरंभ हो जाता है। यह प्रक्रिया सतत तक चलती रहती है। हम बाहर जो कुछ भी देखते सुनते हैं, उसको लेकर के फिर हम अंतःव्यक्ति संचार करना आरंभ कर देते हैं। कई बार उद्वीपन बहुत करीब अथवा गहराई से जुड़ा हुआ होता है। उस स्थिति में फिर आत्मसंचार प्रक्रिया अधिक मात्रा में होने लगती है। जब हम अपने तौर-तरीके व्यवहार आदि के संदर्भ में ज्यादा संवेदनशील रहते हैं तो उस स्थिति में भी यह अधिक मात्रा में होता है। Touch communication क्या होता है स्पर्श संचार


      आत्मकेन्दित संचार का ढंग Manner of Intrapersonal communication


      सामान्यतौर पर आत्मसंचार बहुत नियोजित तरीके से नहीं होता है। इसकी कोई बहुत ज्यादा निश्चित स्वरूप भी नहीं होता है। यह व्यक्ति के भीतर बेतरतीब ढंग से चलता रहता है । जब वह स्वयं से संवाद करने के संदर्भ में योजना बनाकर संचार करता है तो यह एक व्यवस्थित ढंग से हो सकता है। उदाहरण के लिए यदि वह एकांत में किसी विषय के विभिन्न बिंदुओं पर विचार कर रहा होता है तो वहां पर कुछ हद तक वह अपने अंतर्गत संचार को व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाता है। किंतु इस दौरान भी वह विभिन्न अन्य विषयों पर चिंतन करता रहता है।


      आत्मकेन्दित संचार का उपयोग Use of Intrapersonal communication


      आत्मकेन्दित संचार का उपयोग हम किसी विषय पर चिंतन करने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने हेतु करते है। इसी प्रकार से जो कुछ भी आगे कहना अथवा व्यक्त किया जाना है, इसका अभ्यास करने के लिए भी किया जाता है। अगर सही तरीके से इस संचार को किया जाता है, तो इससे यह एक प्रकार से हमारा मानसिक तौर पर संतुष्टि प्रदान करता है ।
      आत्मकेंद्रित संचार हमें कई बातों को सीखने का अवसर प्रदान करता है। हम एंपैथी एवं दूसरों की स्थितियों को समझने की अवसर पाते हैं। जब हम किसी दूसरे व्यक्ति को किसी खास स्थित में देखते हैं ,उसमें स्वयं अपने को रख करके सोचते हैं तो हमें बहुत कुछ वास्तविकता का ज्ञान होता है। सही ढंग से आत्मकेंद्रित संचार हमें दूसरे के साथ सही ढंग से बात एवं व्यवहार करने में मदद करता है।


      आत्म केंद्रित संचार हमें अच्छी प्रकार से विश्लेषणात्मक क्षमता भी पैदा करता है। उसकी मदद से हम विभिन्न प्रकार की समस्याओं को हल करते हैं। जब हम सही प्रकार से आत्मसंचार करते हैं तो किसी समस्या के समाधान के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान जाता है। उसके विभिन्न विकल्प सामने आते हैं। आत्मकेंद्रित संचार हमें किसी मुद्दे पर या विषय पर सही निर्णय लेने की भी कुशलता विकसित करता है। विश्लेषण के द्वारा हम उस विषय के सभी पहलुओं पर चिंतन करते हैं । इसके परिणामस्वरूप हम विभिन्न प्रकार के निर्णय के परिणाम की भी समझ बन जाती है।


      खुद से संचार करने का अपना एक अलग महत्व है। यह कई प्रकार के उद्देश्यों को पूरा करता है। हम स्वयं से संचार करके अच्छी बातों को अपने भीतर समाहित कर सकते हैं। यह हमारे अपने स्वयं के अवधारणाओं को बनाएं बनाने एवं उसकी पुष्टि करने में भी मदद करता है। हम किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा प्राप्त विभिन्न प्रकार के संदेश के संदर्भ में एक समझ बनाते हैं।


      इसी के साथ एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि आत्मकेन्दित संचार के बारे में हम बहुत कम ध्यान देते हैं। उसके बारे में बहुत कम अध्ययन भी करते हैं। हमें स्वयं इसके उपयोग महत्व और उसके सकारात्मक नकारात्मक पक्षों के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी नहीं रहती है। इन सब के बावजूद य

      Tags: CommunicationfeaturedKinds of communication
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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