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      Home Media Study Material Graphic Design

      Principles of design

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Graphic Design
      0

          Principles in design describes those rules on which the design is prepared in particular manner .This articles discusses those principles of design and explains their importance.

      Principles of Design

      ग्रैफिक डिजाइन के सिद्धांत Principles of design

      Principle of repetition in design डिजाइन में पुनरावृति का सिद्धांत

            डिजाइन सिद्धान्त के अन्तर्गत वे आधारभूत नियम आते हैं जो कि डिजाइन तैयार करते समय उपयोग में लाये जाते हैंअथवा लागू करके डिजाइन को प्रभावी बनाया जाता है। किन्तु यह भी एक बहुत रोचक बात है कि डिजाइन सिद्धान्त कितने हैं, इसके बारे में भिन्न भिन्न डिजाइनर अपने अपने ढंग से इसकी संख्या बताते हैं। इसीलिए यह कहीं पर पाॅच तो कही सात और कही पर यह दस या फिर बारह की संख्या में भी वर्णित किये गये हैं। वास्तव बातें जिससे कि कोई डिजाइन बेहतर हो सकती है, उसे सिद्धान्त के तौर पर मान लिया जाता है। इस दृश्टि से भिन्न भिन्न् डिजाइनर के लिए इसकी संख्या उनके अनुसार भिन्न भिन्न होती है।

      https://www.strate.education/gallery/news/design-definition

            यदि गूगल पर डिजाइन के सिद्धान्त के बारे में ढुढ़ा जाता है तो भिन्न भिन्न जगहों पर भिन्न भिन्न संख्या में इसका वर्णन होता है। यद्यपि समान संख्या होने पर भी यह स्पष्ट नही रहता है कि सबमें एक ही प्रकार के किस सिद्धान्त को शामिल किया जाना चाहिए।  सरसरी तौर पर कुल 12 आधारभूत सिद्धान्त बताये जाते हैं। इसी प्रकार से अन्य लगभग एक दर्जन द्वितीयक डिजाइन सिद्धान्त है। इसमें से कई कई बार आधारभूत सिद्धान्त के तौर पर ही प्रस्तुत किये जाो हैं।

              डिजाइन के सिद्धान्त के सन्दर्भ में किसी प्रकार को कोई एकमत नही है कि कुल मिला करके मुख्य डिजाइन वास्तव में क्या है। इसलिए इसकी संख्या के बारे में भी कुछ निश्चित पूर्वक कहना आसान नही है। डिजाइन के तत्वों को किस प्रकार से आपस में सेट करते है , यह किसी भी ग्रैफिक के प्रभाव को निर्धारित करता है।  डिजाइन के तत्वों की भाॅंति डिजाइन के सिद्धान्त भी कई प्रकार के होते हैं।

         –  सन्तुलन

            – एकता

           -समीपता

           -समानता

           -पुनरावृत्ति

           -बदलाव

      Balance ग्रैफिक सन्तुलन   किसी भी प्रकार के दृश्य सामग्री प्रस्तुत करने में ग्रैफिक सन्तुलन किया जाना बहुत ही आवश्यक है। इसके माध्यम से हम दृश्य को प्रभावी रूप में प्रस्तुत करते हैं। कोई ग्रैफिक सन्तुलित है, यदि उसमें दिखायी गयी वस्तुएं तार्किक ढंग से व्यवस्थित हैं। तार्किक व्यवस्था के अंतर्गत वह प्राकृतिक विज्ञान के नियम पर आधारित हो सकती है। जैसे गुरूत्वाकर्षण का नियम या फिर सामाजिक साॅंस्कृतिक मूल्यों में अपनाये जाने वाले नियम आदि। वास्तव में सन्तुलन प्रकृति का मूलभूत नियम है। यदि किसी भी प्रकार की सन्तुलित व्यवस्था नही है, तो फिर वह देखने में अटपटे रूप में महसूस होगा। सन्तुलन का आशाय किसी एक निर्देशन विन्दु से विविध प्रकार की वस्तुओं को एक समान दूरी पर रखते हैं। किसी पिक्चर में जब ग्रैफिक असन्तुलन दिखाते हैं, तो उसे देख करके तनाव व उलझन होता हैं। किसी भी प्रकार की डिजाइन के अन्तर्गत एक दृष्टि क्षेत्र होता है। उस पर हमारी दृष्टि सबसे पहले जाती है। किसी  जिसमें इस दृष्टि क्षेत्र या निर्देशन विन्दु से विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को उनके रूप, रंग, आकार, घनत्व आदि को ध्यान में रख करके एक निश्चित क्रम में ही रखते हैं। इसके अन्तर्गत सामान्यतया भारी वस्तुओं को रख करके फिर उसके उपर हल्की वस्तुओं को रखते हैं।

      सन्तुलित आकार हमें एक मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक शांति एवं संतोष भी देता है। में यदि सन्तुलन नही है तो फिर इसी प्रकार हमारे परम्परा, रीति रिवाज आदि को ध्यान में रखकर भी इसके व्यवस्थित रूप  को दिखाते है।

      ग्रैफिक सन्तुलन का महत्व

        ग्रैफिक सन्तुलन का निम्न महत्व है।

      -यह दृश्य को एक सुन्दर रूप  प्रदान करता है।

      -यह दृश्य को सरल एवं सहज रूप में प्रस्तुत करता है।

      -इससे दृश्य को समझने में आसानी होती है।

      -इससे विविध प्रकार की वस्तुओं की बोझिलता का एहसास नही होता है।

      -इससे मनोवैज्ञानिक स्तर पर एक शान्त का भाव पैदा होता है।

      -यह प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप  होता है।

      -यह देखने में सहज महसूस होते है।

      -इसमें एक व्यवस्था महसूस होती है।

      इस प्रकार के सन्तुलन मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं।

      सीमेट्रिकल या फिर सममिति सन्तुलन Symmetric balance as Principle of design

       इसे औपचारक सन्तुलन भी कहते हैं। इस वर्ग में ऐसे सन्तुलन आते हैं जिनमें ग्रैफिक के बीच खीची काल्पनिक रेखा के दोनों तरफ दृश्य एक दूसरे के प्रतिबिम्ब के रूप में सामग्री होते हैं। इस प्रकार का सन्तुलन में किसी प्रकार की रेखा खींच देने पर उसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। किन्तु इसके साथ ही वे संख्या, रंग एवं अन्य प्रकार के तत्वों में भी संतुलित होते हैं। यदि दोनो तरफ एक समान किंतु भिन्न भिन्न प्रकार की वस्तुएं हैं, तो उस समय इसे लगभग सममिति कहते हैं।

      नानसीमेट्रिकल या असममिति सन्तुलन Nonsymmetric Balance as Principles of design

             दूसरे प्रकार का सन्तुलन नानसीमेट्रिकल या असममिति सन्तुलन कहलाता है। इसमे सममिति सन्तुलन के विपरीत दृष्यों केन्द्र अक्ष के दोनों तरफ दृश्य एक दूसरे के प्रतिबिम्ब नही होता है , किन्तु दृश्य भार लगभग बराबर होता है। सममिति सन्तुलन की तुलना में यह सन्तुलन ज्यादा प्रभावी एवं आकर्षक माना जाता है। तीसरे प्रकार के सन्तुलन में दो या दो से अधिक एक ही ढंग की वस्तुओं के चारो तरफ इस तरह से विस्तारित करते हैं कि वह सन्तुलित दिखें। चौथे प्रकार के सन्तुलन में असमान ढंग की वस्तुओं को इस ढंग से रखा जाता है कि वह सन्तुलित रूप में दिखे। यह असमानता उसके आकार, प्रकार के अतिरिक्त अन्य विधाओं  में हो सकती है।

      वैल्यु Value as Principles of design

          इसका आशय किसी वस्तु के विविध तत्वों के कम या अधिक अथवा हल्केपन या फिर भारीपन या गाढ़ेपन से है। इस प्रकार से वैल्यु का मापन के लिए कई प्रकार के पैमाने उपलब्ध होते है। डिजाइन साफ्टवेयर में इसके भिन्न भिन्न मान देने के लिए सुविधा  प्रदान की गयी होती है। सफेद के साथ काले का संयोग सबसे अधिक कंटास्ट रखता है। इसके माध्यम से हल्के व गाढ़े रंग के अन्तर्सम्बन्ध को व्यक्त करता है। यह किसी वस्तु के गहराई  व परस्पेक्टिव को व्यक्त करता है।

      परस्पेक्टिव  Perspectives as Principles of design

         इसका आशय विभिन्न वस्तुओं कोे इस ढंग से व्यवस्थित करना है जिससे कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु दृष्य के उस बिन्दु पर दिखे जिसे फोकल सेन्टर या फोकल केन्द्र कहते हैं। इस बिन्दु पर दर्शकों की आंखें सबसे पहले जाकर ठहरती है। अतः जिस वस्तु को सर्वाधिक वरियता के साथ दिखाना रहता है, उसे फोकस सेन्टर पर फे्रम करते हैं। यह बात सजीव से लेकर निर्जीव वस्तुओं पर लागू होती है। इसके बारे में अलग अध्याय में चर्चा की गयी है।

       इम्फेसिस या जोर  Emphasis

      ग्रैफिक में बहुत प्रकार के ऐसे तत्व होते है। जो कि गै्रफिक को उभाकर सामने लाते हैं। इसके अन्तर्गत उसका आकार, रंग, कन्ट्रास्ट, स्थान की स्थिति जैसे कारक आते हैं यह सामान्य बात है कि जो वस्तु चमकीली होती है, वह आॅंख को ज्यादा आकृष्ट करती है। इसी प्रकार, हम रंगों के माध्यम से महत्वपूर्ण वस्तु को दिखा सकते हैं। लाल, पीला, हरा, नीला जैसे रंग षान्त रंग के होते हैं जिसे कम महत्वपूर्ण वस्तुओं को दर्षाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। रंगों की तीव्रता विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार कुछ विषेष प्रकार के चिह्नों एवं रेखाओ का इस्तेमाल भी ध्यान आकृष्ट करने के लिए किया जाता है। इसके बारे में अलग अध्याय में चर्चा की गयीहै।  

      पुनरावृत्ति पैटर्न रिद्म Repetition ,Pattern and Rhythm

               किसी एक या एक से अधिक प्रकार के तत्वों का एक निश्चित अन्तराल के पश्चात दुहराव एक प्रकार के पैटर्न का जन्म देता है। इस प्रकार के दुहरव के दौरान उस तत्व में किसी प्रकार की बदलाव दे देते है जिससे किसी तत्व जैसे रेखा ,रंग, आकार, वैल्यु की पुनरावृत्ति दृष्य की विविधता के पक्ष को कम करता है। इसमें कई बार कुछ बदलाव ला करके पुनरावृत्ति की जाती है।  पुनरावृत्ति डिजाइन का एक महत्वपूर्ण पहलु है। यह करते समय आकार को कम ज्यादा करते है। या फिर उसे विविध प्रकार के कोण पर प्रस्तुत करते है। वास्तव में पुनरावृत्ति के माध्यम से ही किसी प्रकार के सजावट को प्रस्तुत करते है। विभिन्न प्रकार के मन्दिरो में दिवारों आदि पर जा नक्काषी की गयी रहती है, उसमें कुछ विषेष आकार की कलाकृतियों को बार बार दोहराया गया रहता है। इस प्रकार के पुनरावृत्ति के माध्यम से चित्र में उत्पन्न आये एकाएक बदलाव के भाव को कम करता है। इसके बारे में अलग अध्याय में चर्चा की गयी है।

      विविधता Differences as Principles of design 

      इस सिद्धान्त के अनुसार डिजाइन में विविध असमान तत्वों को इस प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है जिससे कि वह देखने में अद्वितीय लगे और लोगों में उत्सुकता पैदा करे। विविधता के माध्यम से किसी मोनोटोनी या एक रसता को कम किया जा सकता है। वह डिजाइन की सुन्दरता को बढ़ देता है। डिजाइन में इस्तेमाल किये जाने वाले विविध तत्वों को सही प्रकार से इस्तेमाल करके सजावट को सुन्दरता व उसे एक विषिष्ट पहचान देते हैं। किसी दिवार पर पेन्टिग लगा देने पर उसका मोनोटोनी कम होती है। इसकी मदद से विभिन्न प्रकार के रंगों को इस्तेमाल किया जा सकता है। 

      समानता

        वस्तुओं एवं उनके आकार में समानता के आधार पर भी ग्रैफिक में उन्हें दिखाया जा सकता है। एक ही रूप, आकार, रंग, विषय आदि के आधार पर वस्तुओं को एक समूह में रखा जा सकता है। इस ढंग की समानता में किसी प्रकार की विभिन्नता से वह वस्तु तुरन्त ध्यान आकृष्ट करती है। यह समानता अन्य प्रकार के आधार लेकर भी बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए किचेन में उपयोग लायी जाने वाली वस्तुओं का समूह, स्टेषनरी का सामान, सगीत वाद्य यन्त्रो का समूह या फिर स्टैषनरी वस्तुओं का समूह। इसी प्रकार ऐतिहासिक वस्तुओं का समूह एक खास मौसम में उगने वाली सब्जियों का समूह। यह समूह वस्तुओं के अतिरिक्त व्यक्तियों का भी हो सकता है।

      समीपता  Closeness as Principles of design

      वे  वस्तुएं जो कि एक दूसरे से करीब में रखी हुई हैं, वे एक समान समूह रूप बनाती हैं। किसी एक विशय से सम्बन्धित वस्तुओं को एक ग्रैफिक में दिखाया चाहिए।  फिलहाल यहाॅं इस बात का ध्यान रखना चाहिए एक ही ग्रैफिक में अत्यधिक वस्तुओं की भीड़ नहीं प्रस्तुत करना चाहिए। उन्हे व्यवस्थित ढंग से रखा जाना चाहिए। वे वस्तुएं जो एक दूसरे से समीप रखी जाती हैं, वे एक समान समूह का रूप धारण करती हैं। वे सूचनाएं जो ग्रैफिक के माध्यम से प्रदर्षित करने का एक तरीका तो यह है कि असमान विजय वाले ग्रैफिक सूचनाओं का एक जगह दिया जाये। कई प्रकार की दूरियाॅं  होने पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को कम या ज्यादा दूरी के हिसाब से ही एक दूसरे के समीप या फिर दूर देखी जाती है।

      कलर अनुरूपता Color similarities

                 दृश्य में रंग की समानता लिए वस्तुएं एक दूसरे से जोड़ करके देखी जाती है। यदि वस्तुओं के एक साथ समूह में दिखाना है, तो उन्हे मिलते जुलते रंग में प्रस्तुत किया जा सकता है। दूसरी तरफ, रंग की विविधता इसे अलग अलग रूप में दिखाती हैं। रंग सिद्धान्त के अन्तर्गत एक दूसरे से मित्रवत सम्बन्ध रखने वाले रंगों को पास पास रखने पर वे वस्तुएं आपस में जुड़ी हुई महसूस होती हैं।

       निष्कर्ष –

      इस प्रकार से हम देखते हैं कि डिजाइन के अन्तर्गत कई महत्वपूर्ण सिद्धान्त विकसित किये गये हैं जो कि किसी डिजाइन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किन्तु किसी डिजाइन में इस बात को ध्यान में रखा जाता है कि इसमें से किन सिद्धान्तों को उपयोग किया जाना उचित होगा, और फिर उसी के अनुसार उसका इस्तेमाल किया जाता है।

      Tags: Element of design
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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