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      Home Media Study Material

      Spoken language

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Media Study Material, Radio
      0

      Spoken language is different from written language. This article explains definition, characteristics and methods to improve spoken language

      स्पोकन लैंग्वेज Spoken language

      इस व्याख्यान में हम चर्चा करेंगे कि स्पोकन लैंग्वेज क्या है, इसकी मुख्य विशेषताएं क्या होती हैं और यह लिखित भाषा से किस प्रकार से भिन्न होता है। इसी के साथ हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि स्पोकेन लैंग्वेज की गति क्या होती है और कौन कौन से कारक है जो स्पोकन लैंग्वेज को प्रभावित करते हैं और इसे कैसे सुधारा जा सकता है।

      Radio Sangeet Rupak रेडियो संगीत रूपक

      Definition of spoken language

      वास्तव में स्पोकन लैंग्वेज हम उस लैंग्वेज को कहते हैं जो कि बोल कर के ध्वनि रूप में उत्पन्न किया जाता है और यह लिखित लैंग्वेज के विपरीत होता है। आज भी बहुत सी भाषाएं ऐसी है जो कि लिखित रूप में नहीं है। वह सिर्फ बोली ही जाती हैं। यहाॅ पर यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि ओरल लैंग्वेज अथवा वोकल लैंग्वेज वोकल ट्रैक से उत्पन्न किए जाते हैं। दूसरी तरफ, साइन लैंग्वेज वह भाषा होती है जो कि चेहरे, हाथ के एवं शरीर के संकेतों से उत्पन्न की जाती है। स्पोकन लैंग्वेज लिखित भाषा से कई प्रकार से भिन्न होती है। यह समयबद्ध और गतिशील होती है । यह लोगों से आमने-सामने हो करके बोली जाती है। यह फीडबैक पर आधारित है। किंतु इस प्रकार की भाषा में वाक्यों की सीमाएं यह बहुत स्पष्ट नहीं होती हैं। इसमें बोलने वाले द्वारा केवल जो विराम लिया जाता है, उससे इसका कुछ रूप दिखता है। इसमें हम उन बातों को विशेष रूप से इस्तेमाल करते हैं जो कि एक दूसरे के साथ भागीदार की गई रहती है।

      Radio drama

      इसी प्रकार से स्पोकन लैंग्वेज की वाक्य संरचना प्रायः काफी आधे अधूरे रूप में होती हैं। इसमें अनौपचारिक एवं बोलचाल की भाषा रहती है। दूसरी तरफ लिखित भाषा में औपचारिकता एवं साहित्यिक अंदाज अधिक होती है। बोलचाल की भाषा की एक बड़ी विशेषता यह भी होती है कि बोलने वाले द्वारा इसकी गति बदलती रहती है। यह लेखन से सामान्यतौर पर तेज होती है। इसमें आवश्यकतानुसार तीव्रता या धीमापन होती है। इस भाषा प्रस्तुत करते समय शरीर बॉडी लैंग्वेज और चेहरे का भी काफी अधिक इस्तेमाल होता है। हम कुछ बातें जोर दे करके कहते हैं । कुछ बातें धीमी तरीके से कहते हैं। हमारे बातचीत की आवाज का उतार-चढ़ाव होता है। इसमें हम आवश्यकतानुसार विराम लेते हैं।

      Simplicity in spoken language

      स्पोकेन भाषा को हम देखे तो ज्ञात होगा कि भाषा के तौर पर यह लिखित भाषा से सरल होती है। इसी प्रकार से व्याकरण की दृष्टि से यह कम जटिल होती है। इसमें विविध विविध प्रकार के उपवाक्य, पूरक वाक्य आदि कम होते हैं। बोलचाल की टेक्स्ट, शाब्दिक रूप में कम घने होते है। इसके वाक्य छोटे एवं सरल होते हैं। इसमें लिखित भाषा की तुलना में अधिक कर्ता प्रधान वाक्य अधिक होते हैं। इसी प्रकार से स्पोकन भाषा में वे शब्द अधिक होते हैं जो कि वक्ता को संदर्भित करते हैं। उसमें सर्वनाम और प्रथम पुरुष अधिक मात्रा में इस्तेमाल किए जाते हैं। जो व्यक्ति बोलता है,उसके द्वारा स्वयं को सन्दर्भित करके अधिक बातें कही जाती है। इसी प्रकार से इसमें दिशा बोधक, संकेतबोधक शब्द अधिक होते इस्तेमाल करते हैं । यहां, वहां,अभी, कभी जैसे शब्द उपयोग किये जाते हैं।

      बोलचाल की भाषा का स्वरूप बेतरतीब एवं असंगठित ढंग से भी होता है। इस प्रकार की भाषा में हाथ और चेहरे के भाव भंगिमा का भी काफी अधिक इस्तेमाल किया जाता है। ये वाक्यों के साथ, पूर्व विभिन्न रूपों में इस्तेमाल होते हैं। कुछ शब्द तो स्पोकन लैंग्वेज में बिल्कुल नहीं इस्तेमाल किए जा सकते हैं। इसी प्रकार से बहुत ही तथ्यात्मक विस्तृत बातें भी नहीं दी जा सकती हैं। संख्यात्मक शब्दों का भी कम से कम इस्तेमाल किया जाता है। स्पोकन लैंग्वेज में जटिल से जटिल बातों की भी अभिव्यक्ति बहुत ही सरल बना करके करना पड़ता है। दूसरी तरफ लिखित भाषा में यह मजबूरी नहीं होती है

      Speed of Spoken language स्पोकन भाषा की अपनी एक गति होती है। हालांकि भिन्न-भिन्न भाषाओं के लोग एक दूसरे की भाषा की गति को अपने अपने नजरिए से गतिशीलता रखते और महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा का व्यक्ति चाइनीज भाषा को अभिव्यक्त को तेज रूप रूप में महसूस करेगा। भाषा प्रस्तुत करने की गति कई कारकों पर भी निर्भर करती है। विषय संदर्भ, बोलने वाला व्यक्ति, बोलने का परिवेश, यह सब कारक भाषा के गति का निर्धारण करते हैं। व्यक्ति द्वारा प्रवाहपूर्ण रूप में तीन शब्द प्रति सेकेड बोलता है। इस प्रकार से एक मिनट में 180 शब्द प्रस्तुत किये जा सकते है। इस दृष्टि सामान्यतौर पर एक सामान्य भाषा 100 से लेकर 150 शब्द प्रति मिनट प्रस्तुत की जाती है। इसे सुनने एवं बोलने दोनों के लिए आरामदायक रूप में देखा जाता है। जब कोई व्यक्ति बातचीत कर रहा होता है। उस स्थिति में सामान्य तौर पर 120 से लेकर के 150 शब्द प्रति मिनट जाते हैं। ऑडियो बुक जो तैयार की गई रहती है, उसमें कम समय में ज्यादा सामग्री देने का एक मिनट में 150 से लेकर 160 शब्द प्रस्तुत प्रस्तुत किए जाते है । यह व्यक्ति द्वारा सुनने की ऊपरी सीमा है । कोई भी व्यक्ति सामान्य तौर पर 150 से लेकर 160 शब्द आराम से सुनते हुए समझ लेता है।

      रेडियो माध्यम पर जो होस्ट होता है या जो पॉडकास्टर होते हैं वह भी 150 से लेकर के 160 शब्द प्रति मिनट प्रस्तुत कर रहे होते हैं। मानव का जो मस्तिष्क होता है, वह 125 से लेकर के 250 शब्द प्रति मिनट सहज तरीके से प्रोसेस कर सकता है। जब उसके समक्ष कोई इस गति से बातें प्रस्तुत है तो वह उसके समझने के दायरे में बातें होती हैं। किंतु जब हम कोई विचार बात सोचते हैं तो उस समय यह गति बहुत ही तीव्र होती है और विचार आदि के दौरान प्रति मिनट बहुत अधिक शब्द प्रति मिनट विचार के रूप में उत्पन्न होते हैं। वैसे हर व्यक्ति की अपनी अपनी बोलने की गति होती है। लेकिन इसमें बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है। किंतु जब कोई व्यक्ति बहुत तीव्र गति से बोल रहा है तो इसका यह कई बातों को इंडिकेट करता है। यह कई बातों के सूचक होते हैं। अर्थात तेज बोलने का आशय यही है कि व्यक्ति बहुत ही उत्तेजित है या भावपूर्ण अवस्था में है या वह पहुंच जल्दबाजी में है।

      दूसरी तरफ, यदि व्यक्ति धीमा बोल रहा है तो वह उसके बातों को गंभीर होने या उसके दुख अवस्था में होने या उसके भ्रमित होने या काफी गंभीर होने का सूचक है। अब यदि हम इस बात पर विचार करें कि व्यक्त की बोलने की गति के ऊपर क्या प्रभावित करता है , तो उसके अंतर्गत व्यक्ति जिस किसी भी इन्वायरमेंट में रहता है पैदा हुआ रहता है, और जिस घर परिवार संस्कृति में वह पला बढ़ा होता है, वह उसके बोलने की गति को प्रभावित करते हैं। इसी प्रकार से नर्वसनेस होने पर भी व्यक्ति जल्दी-जल्दी बोलता है और वह तेजी से सांस लेकर के बातें करता है। यदि कोई बात बहुत ही अर्जेंट है तो उस अवस्था में भी व्यक्ति जल्दी से उस बात को कहता है।

      स्वास्थ्य और मानसिक अवस्था भी व्यक्ति के बोलने की गति को प्रभावित करती है। व्यक्ति यदि थका हुआ है तो हमारे सोचने की प्रक्रिया या प्रोसेस करने की प्रक्रिया धीमी होती है ।उस अवस्था में व्यक्ति किसी बात को तत्काल न कह कर के धीरे-धीरे बोलता है। दूसरी तरफ, यदि बोले जाने वाले शब्द कठिन है तो भी व्यक्ति उस स्थिति में उसे ध्यान देकर के धीरे से बोलता है। उसमें ज्यादा समय लगता है। और भी कई ऐसे कारक हैं जो कि बोलने की गति को प्रभावित करते हैं। यदि कोई व्यक्ति काफी कठिन बातें प्रस्तुत कर रहा है, तो व्यक्ति सामान्य से धीमी गति में बोल करके ऑडियंस को उसे समझने का अवसर देना चाहता है।

      इसी प्रकार से बोलने के दौरान जो हम विराम लेते हैं, वह भी हमारी बातों को कहने के तौर तरीके को निर्धारित करता है। जब हम किसी बात पर ज्यादा जोर देना चाहते हैं तो उस स्थिति में सांस ले कर उसे जोर दे करके बोलते हैं और इसका परिणाम होता है कि हमारे बोलने की गति धीमी हो जाती है। प्रेजेंटेशन के समय जो बोला जा रहा होता है , तो उसकी गति धीमी हो जाती है। स्लाइड परिवर्तन, नोट को देखना एवं उसको दिखाने में अधिक समय लगता है। समूह को संबोधित करते समय सामान्य तौर पर धीमी गति से अर्थात प्रति मिनट कम शब्द बोले जाते हैं । यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति बोलना है तो सामान्य तौर पर अधिक अवधि में बोलता है। वहीं पर युवा व्यक्ति गतिषीलता लिए कम समय में अधिक बातें कहता है।

      स्पोकन लैंग्वेज को बेहतर करने के लिए भी कई तरीके उपाय किए जाते हैं। यदि कोई विषय सामग्री रुचिकर है और आवाज को सही तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है तो वह प्रभावी होती है। सुनने में वह भावनात्मक तरीके से जोड़ कर कंटेंट को इस तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिससे कि श्रोता उसके साथ भावनात्मक तरीके से जुड़े । भिन्न भिन्न प्रकार के स्पोकेन लैंग्वेज को सुनना चाहिए। हमें अपनी बातों को व्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता होती है। स्पोकन लैंग्वेज में हमें अच्छे-अच्छे शब्द बोलना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हम पढ़ने का अभ्यास करें। यह अपनी शब्दावली को बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है। जब हम किसी के द्वारा कही गई बातों की नकल करते हैं, या उसको प्रस्तुत करते हैं, उस स्थित में यह आवश्यक है कि उसके बोलने के तौर-तरीके पर ज्यादा ध्यान दें। इससे हमको किसी बात को खास तरीके से कहने में मदद मिलती है।

      इस प्रकार से स्पोकेन लैंग्वज या बोल चाल की भाषा को हम बेहतर कर सकते है।

      Tags: radio talk
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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