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      Home Media Study Material

      BBC Documentary भारत का विरोध करना बीबीसी की पुरानी आदत

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Media Study Material, TV
      0

      BBC Documentary is now widely discussed among various section of society. This article has thrown light on some broadcasting trends of BBC

      भारत विरोध बीबीसी की पुरानी आदत

      BBC Documentary

                आजकल ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन अर्थात बीबीसी  द्वारा गुजरात के 2002 में हुए दंगों पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री काफी अधिक चर्चा में है। देश के कुछ विश्वविद्यालयों में अपने खास विचारधारा के लिए जान पहचान रखने वाली राजनीतिक दलों के छात्र संगठनों द्वारा इसकी स्क्रीनिंग को लेकर के परिसर के माहौल को तथाकथित रूप से खराब करने का प्रयास किया गया, जबकि सरकार द्वारा पहले से ही इस डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगा दी गई है। एक शैक्षणिक जगह पर इस प्रकार के क्रियाकलाप करने पक्ष विपक्ष में अपने अपने ढंग से तर्क दिए जा सकते हैं, किंतु बीबीसी के इस डॉक्यूमेंट्री BBC Documentary के संदर्भ में भी विचार करना आवश्यक है।

                पहले इस बात पर विचार कर लेना आवश्यक है कि सूचना की दुनिया में वर्तमान में सूचनाएं इतनी बड़ी मात्रा में लगातार प्रसारित की जा रही हैं कि किसी भी दर्शक, पाठक, श्रोता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है कि वह किसे देखे, सुने और पढ़े और किसे न देखे, सुने । इस सन्दर्भ में अब मीडिया साक्षरता बहुत ही महत्वपूर्ण विषय होता  जा रहा है जो कि इस बात पर जोर देता है कि जब भी किसी प्रकार की कोई सूचना या कार्यक्रम दिखाया जाता है, तो इस बात पर विचार कर लेना चाहिए कि इसको बनाने वाले कौन लोग हैं, उसे बनाने का समय क्या है और वे इसे किसलिए बनाए हैं। इसी प्रकार से इन प्रश्नों के भी उत्तर जानने का प्रयास करना चाहिए कि इसे बनाने वालों का लक्षित समूहए व्यक्ति, पाठक और दर्शक कौन लोग हैं और उनके अपने संभावित उद्देश्य क्या हैं । इस प्रकार की जानकारी के अभाव में एक सामान्य पाठक जन माध्यमों के अपने निर्धारित किए गए एजेंडे का शिकार होता रहता है।

                 उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य में यदि गुजरात में हुए दंगे पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि बीबीसी भारत में कोई शांति और सौहार्द बनाने के लिए तो कार्य कर नहीं रहा है। हाॅलाॅकि वह इस बात की दावेदारी करता है कि उसका उद्देश्य बिल्कुल निष्पक्ष हो करके समाचार को प्रसारित करना है और लोगों के समक्ष सत्य ले आना है। किन्तु जब उसके समाचारों के विषय वस्तु पर नजर डाला जाए तो वे खुद अपने आप में इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि उसका अपना कुछ खास नीति और एजेंडा होता है जिनको कि वह ध्यान में रखकर वह लगातार अपने समाचारों एवं अन्य प्रकार के कार्यक्रमों को प्रसारित करता रहा है।

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              बीबीसी के प्रसारण के इतिहास को देखें तो फिर यही ज्ञात होगा कि वह हमेशा भारत विरोधी विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को बहुत ही व्यापक तौर पर प्रसारित करता रहा है। उसके प्रसारण के विषय सामग्री का अध्ययन करने पर इस बात की स्पष्ट जानकारी मिलती है। बीबीसी द्वारा किये गये प्रसारण के विषय सामग्री का सूक्ष्म विश्लेषण से मिलने वाली जानकारी इस बात की गवाह हैं कि उसने भारत में जो भी एवं जिस किसी भी प्रकार के अलगाववादी आंदोलन हुए और उपद्रव हुए, उनमें शामिल व्यक्ति , समूह की  बातों एवं विचारों को वह हमेशा प्राथमिकता के तौर पर प्रसारित करता रहा है। कश्मीर के आतंकवादी को उसने कभी भी आतंकवादी न कह करके उन्हे चरमपंथी कहते रहे हैं। इसके पक्ष में वह हमेशा अपने ढंग से तर्क भी देता रहा है। उनसे जुड़े राजनीतिज्ञों को भी खूब पब्लिसिटी करता रहा है। यही नही, विभिन्न प्रकार के अंतरराष्ट्रीय मुद्दों एवं विषयों पर समाचार देते समय भी वह अमेंरिका एवं यूरोपीय देशों के हितों की ही बातों को सामने रखा एवं उसे प्रचारित किया। 

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                इसमें बहुत मजेदार बात यह भी है कि एक लंबे समय तक भारत में वॉइस आफ अमेरिका, बीबीसी एवं अन्य भारत विरोधी  प्रसारण संगठन भारत के खिलाफ किये जाने वाले इस प्रकार की विषय सामग्री को भारत का एक बहुत बड़ा प्रबुद्ध वर्ग बहुत ही ध्यानपूर्वक न केवल सुनते थे, वरन वे एवं आपस में उसके पक्ष में चर्चा बहस करते थे । 70 और 80 के दशक में तो भारत में ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक बहुत बड़ा समूह बन गया था , उधर इसके लिए बीबीसी तो देश के विभिन्न शहरों में समय समय पर संगोष्ठी आदि भी करता था और उसमें उस शहर के उन प्रबुद्ध जनों को आमंत्रित करता रहा जो कि बीबीसी प्रसारण को सत्य एवं आदर्श बातों को प्रसारित करने वाले प्रसारण का प्रतीक समझते रहे। इसमें भाग लेना तथाकथित भारतीय प्रबुद्धजनों के लिए एक बहुत ही गौरव की बात होती थी।  

                  वर्तमान में यदि बीबीसी के पुराने श्रोता उसके द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों को याद करें तो ज्ञात होगा कि बीबीसी के सभी प्रकार के कार्यक्रमों के विषय चयन में उनके अपने खास एजेंडा होते थे और उसी को ध्यान में रख करके उसे तैयार किये जाते रहे है। यह बात न सिर्फ राजनीतिक विषयों व अन्य विषयों के संदर्भ में भी सत्य साबित होती है । यहाॅं तक कि जब वह किसी भी प्रकार के कलाकार , साहित्यकार आदि को आमंत्रित करता था तो उसमें भी ऐसे ही लोग अधिक रहते रहे हैं, जो कि कलाकार एवं साहित्यकार होने के साथ साथ भारत विरोधी मानसिकता रखते रहे हैं।

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      यदि बीबीसी भारत एवं दुनिया को किसी घटना की वास्तविकता के बारे में ही बताना चाहती है, तो ऐसे विषयों की कमी नही है, जिन पर डाक्यूमेन्ट्री आदि बना कर वास्तव में सत्य दिखाया जा सकता है। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान के ऐसी तमाम दुःखद एवं दर्दनाक घटनाएं हुई हैं, जिनके बारे में वह फिल्में बना सकती है। किन्तु ऐसा नही किया जाता है , क्योंकि ऐसे विषय उनके ऐजेंडे के अनुकूल नही होते हैं। गुजरात दंगे जैसे विषयों पर आधे अधूरे रूप  में बनी डाॅंक्यूमेंन्ट्री उनके ऐजेडें को पूरा करती है। पहले लोगों के समक्ष अधिक जनमाध्यम उपलब्ध नहीं थी अतः सत्य समाचार के नाम पर बीबीसी पर अधिक निर्भर रहते रहे । किन्तु अच्छी बात यह है कि भारत के लोग अब जागरूक हो चुके हैं और आज के सूचना के युग में वे गुमराह नही होते हैं। वैसे यह भ्रम 90 के दशक से ही टूटना आरंभ हुआ, जब भारत में भारतीयों द्वारा प्राइवेट चैनल आरंभ किए गए । स्थिति यह हो गई कि बीबीसी को अपना रेडियो प्रसारण बंद करना पड़ा । इसलिए अब लोगों को गुमराह करने का उसका मंसूबा पूरा नही होता है क्योंकि वे बीबीसी डॉक्युमेंट्री BBC Documentary के मूल मंतव्य को समझते हैं  ।

      Tags: featuredradio documentary
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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