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      Home Media Study Material

      Video editing – Basic principles

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Media Study Material, TV
      0

      Video editing is post production process in video production programme. This article discusses basic principles of video production

      वीडियो संपादन का मूलभूत सिद्धांत Basic principles of video editing


      किसी भी प्रकार की वीडियों रिकार्डिंग करने के बाद उसका सम्पादन एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। यहॉ पर यह बता देना उचित होगा कि वीडियो संपादित करने का कोई एक ही तरीका नहीं है। इसे कैसे करना है, वह कार्यक्रम बनाने के उद्देश्य और कार्यक्रम बनाने वाले के नजरिया तथा परियोजना और रचनात्मक प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं, जिन्हे कि सभी प्रकार के सम्पादन में करने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की आधारभूत बातों की यहॉ पर आगे चर्चा की गयी है।


      प्रिव्यू करना -Preview in video editing

      वीडियो सम्पादन करने के लिए सबसे पहले जो कुछ भी रिकार्ड किया गया रहता है, उसका प्रिव्यू किया जाता है। इस दौरान जो कुछ भी रिकार्ड किया गये रहते हैं, उसे ध्यानपूर्वक देख करके इस बात का निर्धारण किया जाता है कि किस प्रकार के वीडियो सामग्री को रखना है और किसे नही रखना है।


      फुटेज व्यवस्थित करना – Arrangement of footage in video editing

      रिकार्डिग के दौरान प्राप्त किये गये सभी प्रकार के फुटेज को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकताहोती है। वर्तमान में कैमरे के सामने फुटेज को सुव्यवस्थित करने की सुविधा होती है। इस प्रकार की व्यवस्था करने से किसी भी वीडियो क्लिप को पाने में सहुलियत होती है। इस कार्य को अच्छे प्रकार से करने के लिए सभी वीडियो को फोल्डर एवं उपफोल्डर में रखना चाहिए।


      महत्वपूर्ण क्लिप चुनना- Selection of important clips video editing

      रिकार्डिंग के दौरान बहुत बड़ी मात्रा में ऐसे फुटेज होते है जो कि उपयोग में नही लाये जाते है। इसे हटाने की आवश्यकता होती है। लेकिन संपादन के लिए यह निर्णय लिया जाना आवष्यक है। इसके लिए ट्रिम टूल का उपयोग किया जाता है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आवश्यक भागों के ही वीडियो क्लिप लिया जाये। इसके लिए सम्पादक को कहानी के मूलभूत बातों की समझ रखना आवष्यक है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि कहानी में किस प्रकार के दृश्य होने चाहिए। यहॉ पर इस पर ध्यान देना है कि कहानी में सब कुछ न तो कहा जा सकता है और न कहने की आवष्यकता होती है। यद्यपि रिकार्ड किये गये प्रत्येक फुट का अपना उपयोग हो सकता है। किन्तु निर्माण किये जाने वाले कहानी के अनुसार ही फुटेज का चयन किया जाता है।


      सही प्रारूप में चयन – किसी भी वीडियो को सम्पादन से पहले उसे सही सही प्रोजेक्ट प्रारूप में शुरू किया जाना चाहिए। इसमें वीडियो का सही पहलू अनुपात चुनना शामिल है। वर्ततान में किसी भी वीडियो सम्पादन आरम्भ करने के पर सबसे पहले विकल्प के तौर पर उपलब्ध विविध प्रकार के स्क्रीन अनुपात में से सही अनुपात को चयन किया जाना चाहिए।


      एक योजना बनाना- वीडियो कार्यक्रम बनाने के लिए एक अच्छा प्रकार का कार्ययोजना बनाना आवश्यक है। प्रत्येक दृश्य के दृश्य और श्रव्य घटकों का विवरण देते हुए एक शॉट सूची तैयार करनी चाहिए। इसमें बनाये जाने वाले बातों को सामने लाते है। कुल मिला करके कार्यक्रम कैसा होगा , उसके बारे में अपनी एक समझ बना लेनी चाहिए। इसमें इस बात का निर्धारण किया जाता है कि रिकार्ड किये गये विविध शाट का क्रम क्या होगा, उसकी एक सूची तैयार पहले ही कर लिया जाता है। उसी के अनुसार फिर उसे व्यवस्थित किया जाता है। यदि इसमें वॉयस-ओवर या कथन शामिल करना रहता हैं तो फिर इसे ऐसे लिखा जाता है जिससे कि वह स्वाभाविक लगे। अपने लेखन को संक्षिप्त रखा जाता है। इसे समायोजित करके तक तक सुधार किया जाता है जिससे कि यह बिल्कुल सही हो जाय। इस प्रकार की स्क्रिप्ट के लिए सही एवं पर्याप्त अभ्यास किया जाना चाहिए।


      स्थापना शॉट्स का प्रयोग-Use of establishment shots in video editing

      किसी भी कथा प्लॉट को दिखाने के सन्दर्भ में यह आवश्यक है कि सबसे पहले इस्टैब्लिश शाट का इस्तेमाल किया जाये। इससे दर्शन को इस बात की समझ बन जाती है कि कुल मिला करके कोई घटना क्रम कहॉ पर आरम्भ हो रहा है। इससे बाद में क्लोज अप एवं मिड शाट का इस्तेमाल किया जाता है। क्लोज अप शाट के दौरान घटना को भौतिक परिवेश नही दिखता है। किन्तु इसे इस्टैब्लिश शाट में दिखा देने पर पर दर्शक को घटना के बारे में स्पष्टता बन जाती है। उसे उसके बारे में किसी प्रकार का कोई भ्रम नही रहता है।


      मैच कट्स का उपयोग – Use of match cut video editing

      मैच कट तब होता है जब वीडियो फ्रेम के दृश्य हितों से मेल खाते हुए एक क्लिप से दूसरे क्लिप में कटौती करते हैं। सम्पादन में मैच कट का उपयोग विविध दृश्य को स्पष्ट एवं सतत्ता बनाने के लिए यह आवश्यक है। दो क्लिप को एक साथ काटने के लिए समान फ्रेमिंग, समान आकृतियों या समान गतियों का उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अपनी पहली क्लिप में एक हाथ की गति का उपयोग उसी हाथ की गति के साथ अगली क्लिप में स्थानांतरित करने के लिए कर सकते हैं, या यदि चरित्र या विषय फ्रेम में केंद्रित है, तो उसी या समान फ्रेमिंग के साथ दूसरी क्लिप में कट कर सकते हैं। हालांकि दो क्लिप अलग हैं, वे ऐसे तत्व साझा करते हैं जो आपको उनके बीच एक दृश्य मिलान करने की सहुलियत प्रदान करते हैं।
      सही ट्रांजिशन का उपयोग – Use of correct transition in video editing

      सामान्य तौर पर कहानी के आगे बढ़ने के साथ ही दृश्य बदलता जाता है। इन्हे आपस में जोड़ने की आवश्यकता होती है। सही ढंग से उपयोग किया गया ट्रॉजिषन या बदलाव न केवल दृश्यों को जोड़ते हैं, बल्कि वीडियो में कहानी के प्रवाह को एक सहज गति को आकार देने में मदद कर सकते हैं। दर्षक को मनोवैज्ञानिक तौर पर उसके लिए तैयार भी करते है। एक ही दृश्य में एक क्लिप से दूसरी क्लिप पर जाने पर सामान्यतः ट्रांजिशन लागू करने की आवश्यकता होती है। वही पर जब दृष्य में बदलाव नही होता है और एक ही दृष्य के कई क्लिप होते हैं तो फिर उन्हे बस एक साथ रखा जाता है। वीडियो में एक से अधिक दृश्य शामिल होते हैं, तब इसका उपयोग किया जाता है। किन्तु इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अनावष्यक प्रकार के संक्रमण का उपयोग न हो। अन्यथा यही दृष्य पर हावी हो जाते है।

      सही पेसिंग का उपयोग करना- Use of correct pacing in video editing

      किसी भी कहानी की अपनी एक सहज गति होती है। इसलिए वीडियो में दिखाये जाने वाले दृष्य की पेसिंग पर ध्यान देना आवष्यक होता है। यह किसी दृश्य की लय एवं गति को बताता है। इसमें आवष्यकतानुसार बदलाव भी किया जाता है। वीडियो क्लिप की लंबाई को बदलकर इसका निर्धारित होता है। भिन्न भिन्न पेसिंग से भिन्न भिन्न भाव का एहसास होता है। कुछ दृश्य, तीव्रता का एहसास देने के लिए होते है । इसमें तेज पेसिंग का उपयोग करते हैं। साक्षात्कार या संवाद दृश्य, धीमा, अधिक आराम और विचारशील दृष्य होते है। इसमें लम्बी क्लिप की जरूरत होती है। इसमें अधिक समय लगता है। तेज गति वाले दृश्य आमतौर पर छोटी क्लिप से बने होते हैं। कभी-कभी केवल एक ही क्लिप होती है। किन्तु इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि किसी वीडियो की पेसिंग लगातार बदलती है, तो यह दर्शकों के लिए झुॅझलाहट पैदा कर सकती है। दृश्यों में निरंतरता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।


      सही रंग योजना बनाना – Planning for correct color in video editing

      वीडियो दृश्य मे सब कुछ अपने स्वाभविक रंग में दिखना चाहिए। अतः सम्पादन में आवश्यकतानुसार फुटेज को प्राकृतिक रूप देने के लिए रंग सुधार टूल का उपयोग होता है। कई संपादन टूल अपने फुटेज को कलर ग्रेड करने देते हैं। इसका उपयोग सुधारात्मक उद्देश्यों के बजाय रचनात्मक ढंग से दृश्य को प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग दृश्य के रंग और कंट्रास्ट में बदलाव करने के लिए किया जाता हैं। वीडियो में रंग ग्रेडिंग का जो विकल्प होता है, इसका उपयोग दृश्य एवं कहानी का मूड और चरित्र को दर्शाने के लिए भी किया जाता है। रंग ग्रेडिंग कहानी के टोन को सेट करने में भी उपयोग होता है।


      ध्वनि को सही करना – Correction of audio in video editing

      सही सम्पादन में ध्वनि की भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अच्छे वीडियो के साथ अच्छा एक उच्च-गुणवत्ता ऑडियो भी होना चाहिए। अगर ऑडियो गुणवत्ता अच्छी है तो खराब वीडियो को भी लोग देख लेते है। किन्तु ऑडियो की गुणवत्ता के खराब होने पर फिर अच्छी वीडियो गुणवत्ता वाली वीडियो भी बेकार हो जाती है। अपने ऑडियो ट्रैक्स के बीच आडियो के स्तरों को संतुलित किया जाता ळे ताकि संवाद में वॉल्यूम में अचानक परिवर्तन न लगे। स्प्लिट एडिट जैसे जे-कट, जहां छवि से पहले ध्वनि बदल जाती है दो अलग-अलग क्लिप या दृश्यों के बीच ऑडियो को ब्रिज करने के लिए बहुत बढ़िया हैं।


      संगीत को जोड़ना-Adding music in video editing

      वीडियों में संगीत को बहुत ही सावधानी से डिजाइन करना करने की आवष्यकता होती है। यह दर्षकों को कार्यक्रम से जोड़ता है। किन्तु संगीत को अपने दृष्य पर हावी नही होने देना चाहिए। वैसे कार्यक्रम में कई बार किसी दृष्य में मौन का भी महत्व होता है। इससे दर्शकों का ध्यान स्क्रीन की ओर आकर्षित करके जोड़ा जा सकता है, किन्तु यह अंतराल भी पैदा कर सकता है। जब तक मौन सहज न हो , उसे नही दिया जाना चाहिए। यहॉ पर इस बात का भी ध्यान रखने की आवष्यकता होती है कि जो संगीत उपयोग किया जा रहा है वह रॉयल्टी-मुक्त हैं। यदि कोई वीडियो को सार्वजनिक रूप से प्रसारित किया जा रहा है तो फिर उसकी कॉपीराइट की मंजूरी प्राप्त कर ली जानी चाहिए।

      सही प्रारूप में निर्यात करना – Export in correct format in video editing

      संपादन पूर्ण हो जाने के बाद वीडियो का निर्यात किया जाता है। विभिन्न संपादन प्लेटफॉर्म विभिन्न निर्यात सेटिंग्स प्रदान करते हैं। इसमें वीडियो प्रारूप और बिट रेट जैसे अन्य प्रीसेट शामिल हैं। इससे वीडियो के गुणवत्ता स्तर का निर्धारण किया जाता हैं। वीडियो प्रारूप यह निर्धारित करता है कि वीडियो फाइल ऑडियो और वीडियो डेटा कैसे संग्रहीत करती है और साथ ही प्लेबैक के लिए उस डेटा का उपयोग कैसे किया जाता है। लोकप्रिय वीडियो प्रारूपों में अधिकांश मुख्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म द्वारा समर्थित हैं। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि जिस प्लेटफॉर्म पर वीडियो अपलोड हो रहा हैं वह निर्यात प्रारूप के अनुकूल हो।


      अन्य प्रभाव का उपयोग – Other effect in video editing

      वीडियो सम्पादन के अन्तर्गत विविध प्रकार के सम्पादन की सुविधा उपलब्ध होती है। वीडियो की गति बदलने से ले करके अन्य प्रकार के प्रभाव दर्षाये जा सकते है। इसके बारे में अन्य लेक्चर में चर्चा की गयी है।
      इस प्रकार से वीडियो सम्पादन के दौरान इन आधारभूत बातों को ध्यान दे करके कार्य किया जाता है तो फिर एक अच्छा वीडियो तैयार होता है।TV news बदल गया टीवी माध्यम पर समाचारों के प्रस्तुति का अंदाज

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Tags: Use of Photography
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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