Second Press Commission Recommendation भारत में द्वितीय प्रेस आयोग दो चरणों में गठित हुआ। पहली बार 1978 में मोरारजी देसाई सरकार ने इसे बनाया, इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति पीके गोस्वामी थे ।लेकिन सरकार बदलने के बाद आयोग को पुनः 1980 में इंदिरा गांधी सरकार ने पुनर्गठित किया। इस आयोग की अध्यक्षता जस्टिस के.के. मैथ्यू ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य था – बदलते सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी परिदृश्य में भारतीय प्रेस की स्थिति का मूल्यांकन करना और उसकी कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी, जिम्मेदार और जनहितकारी बनाने हेतु सुझाव देना। आयोग ने 1982 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता, स्वनियमन, पत्रकारिता शिक्षा, विज्ञापन नीति, और प्रेस परिषद के सशक्तिकरण से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण सिफारिशें दी गईं।

मुख्य सिफारिश Second Press Commission Recommendation
- प्रेस की स्वतंत्रता और ज़िम्मेदारी
- प्रेस काउंसिल का सशक्तिकरण
- पत्रकारों की सेवा शर्तें और वेतन
- अख़बारों में एकाधिकार पर नियंत्रण
- सरकारी विज्ञापनों का निष्पक्ष वितरण
- प्रेस के पंजीकरण की प्रक्रिया में सुधार
- मीडिया शिक्षा और प्रशिक्षण
- स्थानीय भाषाओं के समाचार पत्रों को प्रोत्साहन
- निजी समाचार एजेंसियों का विनियमन
- अन्य सिफारिश
- जनसंचार में विविधता और लोकतांत्रिक स्वर
- फर्जी समाचार और अफवाहों पर रोक
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को क़ानूनी ढांचे में लाना
- प्रेस की आंतरिक संरचना में लोकतंत्र
- प्रेस में महिलाओं और कमजोर वर्गों की भागीदारी
- अखबारों के कॉन्टेंट में विविधता और संतुलन
- स्वैच्छिक आचार संहिता (Code of Conduct)
- पत्रकारों के लिए पेंशन और बीमा योजना
- प्रेस से संबंधित अपराधों के लिए विशेष न्याय प्रक्रिया
- प्रिंट मीडिया में सामग्री की गुणवत्ता पर जोर
- प्रेस और सिविल सोसाइटी के बीच संवाद
- मीडिया नीति का निर्माण
- न्यूज़पेपर मैनेजमेंट और श्रमिक अधिकार
- अखबारों की सामग्री की निगरानी
1. प्रेस की स्वतंत्रता और ज़िम्मेदारी
द्वितीय प्रेस आयोग ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता को हर हाल में बनाए रखना जरूरी है। लेकिन इसके साथ उसकी सामाजिक ज़िम्मेदारी भी सुनिश्चित होनी चाहिए। प्रेस को जनता की आकांक्षाओं, समस्याओं और लोकतांत्रिक व्यवस्था की रक्षा के प्रति जवाबदेह रहना चाहिए। आयोग ने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता तभी सार्थक है जब वह उत्तरदायित्व के साथ हो। इसलिए समाचार संस्थानों को सत्य, निष्पक्ष और संतुलित जानकारी देने पर ध्यान देना चाहिए।
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2. प्रेस काउंसिल का सशक्तिकरण
second-press-commission-recommendation आयोग ने सुझाव दिया कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को अधिक अधिकार दिए जाएं। इससे वह मीडिया में नैतिकता और आचार संहिता का पालन करवा सके। आयोग ने कहा कि प्रेस काउंसिल को प्रिंट के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी अधिकार देना चाहिए। साथ ही उसे अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का भी अधिकार मिले ताकि फेक न्यूज़ और पक्षपात को रोका जा सके।
3. पत्रकारों की सेवा शर्तें और वेतन
पत्रकारों और गैर-पत्रकार कर्मचारियों के लिए उचित वेतनमान तय होना चाहिए। उन्हें काम की सुरक्षा और अच्छी सेवा शर्तें मिलनी चाहिए। आयोग ने एक नए वेतन बोर्ड (Wage Board) की अनुशंसा की। इसका उद्देश्य मीडिया कर्मियों के आर्थिक और पेशेवर जीवन को स्थिरता और सम्मान देना था।
4. अख़बारों में एकाधिकार पर नियंत्रण
द्वितीय प्रेस आयोग ने कहा कि बड़े मीडिया हाउस के बढ़ते वर्चस्व पर रोक जरूरी है। क्रॉस मीडिया ओनरशिप पर नियंत्रण की सिफारिश की गई। इससे छोटे और मध्यम समाचार पत्रों को संरक्षण मिलेगा। आयोग ने छोटे अख़बारों को बढ़ावा देने और उनकी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए विशेष नीति की अनुशंसा की।
5. सरकारी विज्ञापनों का निष्पक्ष वितरण
आयोग ने कहा कि सरकारी विज्ञापनों का वितरण भेदभाव रहित होना चाहिए। विज्ञापन नीति पारदर्शी हो और उसका दुरुपयोग न हो। इससे सरकार प्रेस पर दबाव नहीं बना पाएगी। यह कदम प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को मजबूत करेगा।
6. प्रेस के पंजीकरण की प्रक्रिया में सुधार
आयोग ने सुझाव दिया कि RNI (Registrar of Newspapers for India) की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और गति लाई जाए। फर्जी अख़बार और नाम के अख़बार चलाने वालों पर नियंत्रण किया जाए। इससे असली पत्रकारिता को बढ़ावा मिलेगा और फर्जी प्रकाशनों पर रोक लगेगी।
7. मीडिया शिक्षा और प्रशिक्षण
आयोग ने पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना की सिफारिश की। पाठ्यक्रम को आधुनिक बनाया जाए। पत्रकारों के लिए पुनःप्रशिक्षण (री-ट्रेनिंग) कार्यक्रम चलाए जाएं। इससे मीडिया पेशेवरों की गुणवत्ता और नैतिकता दोनों मजबूत होंगी।
8. स्थानीय भाषाओं के समाचार पत्रों को प्रोत्साहन
द्वितीय प्रेस आयोग ने क्षेत्रीय और ग्रामीण भाषा के समाचार पत्रों को विकास निधि देने की बात कही। समाचार एजेंसी सेवा और कागज पर रियायतें मिलनी चाहिए। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विकास के लिए विशेष नीति जरूरी है। इससे ग्रामीण और आम जनता की आवाज़ को मंच मिलेगा।
9. निजी समाचार एजेंसियों का विनियमन
निजी समाचार एजेंसियों की कार्यप्रणाली और विश्वसनीयता पर निगरानी के लिए नियामक ढांचा बनाया जाए। आयोग ने कहा कि PTI और UNI जैसी एजेंसियों में जनहित प्राथमिकता होनी चाहिए। इससे एजेंसियों की खबरों की गुणवत्ता और निष्पक्षता बनी रहेगी।
10. जनसंचार में विविधता और लोकतांत्रिक स्वर
आयोग ने कहा कि मीडिया में सभी वर्गों और समुदायों की अभिव्यक्ति सुनिश्चित की जाए। हाशिए पर रह गए समुदायों की आवाज़ को मुख्यधारा मीडिया में स्थान मिले। इससे लोकतंत्र और समावेशिता दोनों मजबूत होंगे।
11. फर्जी समाचार और अफवाहों पर रोक
द्वितीय प्रेस आयोग ने मीडिया को बिना पुष्टि के भ्रामक या फेक न्यूज़ प्रकाशित करने से रोकने की सिफारिश की। प्रेस काउंसिल और अन्य संस्थानों को ऐसी रिपोर्टिंग पर दंडात्मक कार्रवाई का अधिकार दिया जाए। इससे गलत सूचना फैलाने की प्रवृत्ति कम होगी।
12. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को क़ानूनी ढांचे में लाना
आयोग ने सुझाव दिया कि रेडियो और टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी प्रेस काउंसिल या नए नियामक निकाय के अंतर्गत लाया जाए। इसके लिए एक स्वतंत्र नियामक प्राधिकरण की स्थापना की सिफारिश की गई। इससे टीवी और रेडियो में भी नैतिकता और पारदर्शिता आएगी।
यहाँ कुछ अतिरिक्त सुझाव दिए जा रहे हैं जिन्हें अक्सर मुख्य सिफारिशों में शामिल नहीं किया जाता, लेकिन वे आयोग की रिपोर्ट का अहम हिस्सा थे:
13. प्रेस की आंतरिक संरचना में लोकतंत्र
अखबारों के संपादकीय और प्रबंधन विभाग के बीच स्पष्ट अंतर हो। संपादक को स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति मिले ताकि वह व्यावसायिक दबाव में न आए। संपादकीय नीति को कंपनी की व्यावसायिक नीति से अलग रखा जाए। इससे पत्रकारिता की गुणवत्ता और स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी।
14. प्रेस में महिलाओं और कमजोर वर्गों की भागीदारी
पत्रकारिता में महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों की भागीदारी बढ़ाई जाए। अखबारों को ऐसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए जो इन समुदायों को प्रभावित करते हैं। इससे मीडिया अधिक प्रतिनिधिक और संवेदनशील बनेगा।
15. अखबारों के कॉन्टेंट में विविधता और संतुलन
अखबारों को सांस्कृतिक, सामाजिक, ग्रामीण और विकास से जुड़े विषयों को उचित स्थान देना चाहिए। शहरी और एलीट वर्ग की खबरों का वर्चस्व रोका जाए। इससे समाज के हर हिस्से की खबरें सामने आएंगी।
16. स्वैच्छिक आचार संहिता (Code of Conduct)
मीडिया संस्थानों को स्वैच्छिक आचार संहिता अपनानी चाहिए। इसमें तथ्य-जांच, संतुलित रिपोर्टिंग और स्रोतों की गोपनीयता को सुनिश्चित किया जाए। इससे पत्रकारिता का स्तर और भरोसा दोनों बढ़ेगा।
17. पत्रकारों के लिए पेंशन और बीमा योजना
स्वतंत्र पत्रकारों के लिए भी पेंशन, बीमा और सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। पत्रकारों के लिए कल्याण कोष (Welfare Fund) की स्थापना की जाए। इससे मीडिया पेशेवरों की आर्थिक सुरक्षा बढ़ेगी।Copyright Act
18. प्रेस से संबंधित अपराधों के लिए विशेष न्याय प्रक्रिया
पत्रकारों के खिलाफ दायर मामलों की तेजी से सुनवाई हो। प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला न हो। प्रेस से जुड़े मामलों में गिरफ्तारी के पहले न्यायिक जांच आवश्यक हो। इससे पत्रकार सुरक्षित और स्वतंत्र रहेंगे।
19. प्रिंट मीडिया में सामग्री की गुणवत्ता पर जोर
समाचारों में तथ्यों की पुष्टि, निष्पक्षता और संतुलन अनिवार्य हो। पीत पत्रकारिता (Yellow Journalism) और सनसनीखेजी से परहेज किया जाए। इससे अखबारों की विश्वसनीयता और जिम्मेदारी बढ़ेगी।
20. प्रेस और सिविल सोसाइटी के बीच संवाद
प्रेस को जन संगठनों, आंदोलनों और सिविल सोसाइटी के मुद्दों को कवरेज देना चाहिए। लोगों की आवाज़ को प्राथमिकता मिले न कि केवल सत्ता प्रतिष्ठान की। इससे लोकतांत्रिक संवाद को मजबूती मिलेगी।
21. मीडिया नीति का निर्माण
भारत में एक राष्ट्रीय संचार नीति बनाई जाए। यह नीति मीडिया, संचार और सूचना के क्षेत्र को व्यापक दृष्टिकोण से देखे। इससे भविष्य के लिए एक स्पष्ट दिशा तय होगी।
22. न्यूज़पेपर मैनेजमेंट और श्रमिक अधिकार
समाचार पत्रों के गैर-पत्रकार कर्मचारियों (तकनीकी स्टाफ, प्रिंटर आदि) के श्रमिक अधिकार सुनिश्चित हों। उन्हें यूनियन बनाने की स्वतंत्रता मिले और श्रम कानूनों का पालन हो। इससे मीडिया संस्थानों में न्याय और समानता बढ़ेगी।
23. अखबारों की सामग्री की निगरानी
आयोग ने सुझाव दिया कि अखबारों में “Reader’s Ombudsman” या “जनसंपर्क अधिकारी” की नियुक्ति हो। वह पाठकों की शिकायतों का निपटारा करे। मीडिया संस्थान अपने अंदर निगरानी तंत्र विकसित करें। इससे पारदर्शिता और पाठकों का भरोसा दोनों बढ़ेंगे। Second Press Commission Recommendation
द्वितीय प्रेस आयोग (1980–82) ने भारतीय प्रेस की स्वतंत्रता, उत्तरदायित्व, स्वनियमन, पत्रकारिता शिक्षा, विज्ञापन नीति और मीडिया में व्यावसायिकता से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण सिफारिशें दी थीं। किंतु इन सिफारिशों पर व्यावहारिक रूप से बहुत कम कार्यान्वयन हुआ। आयोग द्वारा सुझाए गए विधायी और नीतिगत सुधारों को सरकारों ने गंभीरता से नहीं अपनाया। परिणामस्वरूप प्रेस की आर्थिक निर्भरता, राजनीतिक प्रभाव और विज्ञापन आधारित नियंत्रण की समस्या बनी रही। इस प्रकार द्वितीय प्रेस आयोग की अधिकांश सिफारिशें केवल दस्तावेजों तक सीमित रह गईं, जबकि उनका उद्देश्य भारतीय मीडिया को अधिक स्वतंत्र और जवाबदेह बनाना था।