Development of Press laws in India भारत में प्रेस कानून का विकास उपनिवेश काल से लेकर आज़ाद भारत तक एक लम्बी यात्रा है। शुरुआत में प्रेस ब्रिटिश सत्ता की आलोचना करने का साधन बना, इसलिए अंग्रेज़ सरकार ने प्रेस पर लगातार नियंत्रण लगाए। हिक्की का Bengal Gazette (1780) से लेकर वॉरेन हेस्टिंग्स के आदेशों और वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट (1878) तक, प्रेस स्वतंत्रता पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए। स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेस ने जनता को जागरूक करने और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में अहम भूमिका निभाई। आज़ादी के बाद संविधान ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी, लेकिन जिम्मेदारी और संतुलन बनाए रखने के लिए भी कई कानून बनाए गए।
Development of Press laws in India –Points at a Glance
- हिक्की का बंगाल गजट (1780) और प्रारंभिक प्रेस
- वॉरेन हेस्टिंग्स का प्रेस पर पहला नियंत्रण (1799)
- 1818 का गवर्नमेंट सर्कुलर
- मेटकाफ का प्रेस एक्ट, 1835
- लाइसेंसिंग एक्ट, 1857
- प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ़ बुक्स एक्ट, 1867
- वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट, 1878
- भारतीय प्रेस एक्ट, 1910
- प्रेस एक्ट, 1931 (सिविल नाफरमानी आंदोलन के दौरान)
- डिफेंस ऑफ़ इंडिया एक्ट और नियम, 1939
- भारतीय संविधान और प्रेस की स्वतंत्रता, 1950
- 1951 से आगे के संशोधन और प्रेस कानून
1. हिक्की का बंगाल गजट (1780) और प्रारंभिक प्रेस
Development of Press laws in India
भारत में प्रेस का वास्तविक इतिहास 1780 में Bengal Gazette से शुरू हुआ, जिसे जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने प्रकाशित किया। यह भारत का पहला समाचार पत्र था। हिक्की ने इसमें ब्रिटिश अधिकारियों और ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों की आलोचना की। उनके व्यंग्य और खुलासों से अंग्रेज़ शासक असहज हो गए। परिणामस्वरूप, हिक्की पर मुकदमा चलाया गया और उनका प्रेस जब्त कर लिया गया। यहीं से अंग्रेज़ों ने समझ लिया कि प्रेस आम जनता को जागरूक करने और सत्ता की पोल खोलने का साधन बन सकता है। इसलिए उन्होंने प्रेस को नियंत्रित करने के लिए कानून और आदेश बनाने शुरू किए। यह घटना भारतीय प्रेस स्वतंत्रता की नींव भी बनी क्योंकि इससे साबित हुआ कि प्रेस सत्ता को चुनौती देने की ताकत रखता है।
2. वॉरेन हेस्टिंग्स का प्रेस पर पहला नियंत्रण (1799)
1799 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने भारत में प्रेस पर पहली बार औपचारिक नियंत्रण लगाया। उस समय ब्रिटेन और फ्रांस के बीच युद्ध चल रहा था और अंग्रेज़ों को डर था कि भारत में फ्रांसीसी विचार फैल सकते हैं। इसलिए प्रेस को आदेश दिया गया कि कोई भी समाचार प्रकाशित करने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति (Pre-Censorship) लेनी होगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि समाचार पत्र ब्रिटिश नीतियों या युद्ध रणनीति की आलोचना न करें। इस कानून ने प्रेस की स्वतंत्रता को बहुत सीमित कर दिया और पत्रकारिता केवल वही लिख सकती थी जो सरकार अनुमति दे। यह औपनिवेशिक काल का पहला औपचारिक प्रेस नियंत्रण था, जिसने आगे आने वाले कठोर कानूनों का मार्ग प्रशस्त किया।
3. 1818 का गवर्नमेंट सर्कुलर
1818 में ब्रिटिश सरकार ने एक गवर्नमेंट सर्कुलर जारी किया, जिसके तहत किसी भी समाचार पत्र को बिना कारण बताए बंद किया जा सकता था। सरकार के पास प्रेस को निलंबित करने का पूर्ण अधिकार था। इस सर्कुलर का बहाना “सुरक्षा कारण” था, लेकिन वास्तविक उद्देश्य भारतीय बुद्धिजीवियों और स्वतंत्र विचारधाराओं को दबाना था। इसने प्रेस स्वतंत्रता को और कम कर दिया और पत्रकारों को सरकार विरोधी लेखन से डरने पर मजबूर किया। इस समय तक भारतीय समाज में अंग्रेज़ी शिक्षा और जागरूकता फैल रही थी, और प्रेस जनता की आवाज़ बनने लगा था। इसलिए अंग्रेज़ सत्ता प्रेस को अपनी स्थिरता के लिए खतरा मानने लगी। यह सर्कुलर दिखाता है कि किस प्रकार अंग्रेज़ सरकार प्रेस को हथियार की तरह देख रही थी और उसे नियंत्रित करने के उपाय करती रही। Development of Press laws in India
4. मेटकाफ का प्रेस एक्ट, 1835
1835 में लॉर्ड मेटकाफ ने प्रेस को कुछ राहत दी। इस एक्ट में कहा गया कि कोई भी व्यक्ति समाचार पत्र प्रकाशित कर सकता है, बशर्ते वह सरकार को अपना नाम और पते का पंजीकरण कराए। इसे भारतीय प्रेस की आज़ादी का पहला कदम माना गया। भारतीय नेताओं ने इसे प्रेस का “Magna Carta” कहा क्योंकि इससे प्रेस को पहली बार कुछ हद तक स्वतंत्रता मिली। हालांकि सरकार ने निगरानी की शक्ति अपने पास रखी थी और किसी भी अखबार को बंद करने का अधिकार सुरक्षित रखा। फिर भी इस कानून ने भारतीयों में प्रेस की ताकत के प्रति विश्वास जगाया। धीरे-धीरे भारतीय भाषा के समाचार पत्र भी सामने आने लगे, जिन्होंने जनता में राष्ट्रवादी चेतना जगाने का काम किया।
5. लाइसेंसिंग एक्ट, 1857
1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ों ने प्रेस पर कड़ा नियंत्रण लगाया। Licensing Act, 1857 के तहत हर प्रेस को सरकार से लाइसेंस लेना अनिवार्य हो गया। यदि कोई प्रेस सरकार विरोधी सामग्री छापता तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता। इस कानून का उद्देश्य 1857 जैसी क्रांतियों को रोकना था। इसने प्रेस स्वतंत्रता पर गहरी चोट की। इस समय तक भारतीय अखबार जनता में विद्रोह और असंतोष की भावना फैला रहे थे। अंग्रेज़ सरकार ने इसे खतरे के रूप में देखा और प्रेस को पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। इससे भारतीय पत्रकारों को समझ आया कि प्रेस केवल सूचना का माध्यम नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का हथियार है।
6. प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ़ बुक्स एक्ट, 1867
1867 का Press and Registration of Books Act भारतीय प्रेस इतिहास में एक अहम मोड़ था। इस अधिनियम ने प्रेस के लिए एक स्थायी ढांचा तैयार किया। इसमें यह प्रावधान किया गया कि हर समाचार पत्र और पुस्तक का पंजीकरण अनिवार्य होगा। प्रकाशक और संपादक का नाम व पता स्पष्ट करना भी जरूरी बनाया गया। इस कानून से सरकार को किसी भी समय यह पता लगाना आसान हो गया कि किसने क्या प्रकाशित किया है। यद्यपि यह कानून औपचारिक रूप से प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाता था, लेकिन यह प्रेस पर सरकारी निगरानी का स्थायी साधन बन गया। इसने सरकार को पत्रकारों की पहचान और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने का अधिकार दिया। भारतीय प्रेस ने इसे निगरानी का साधन माना, जबकि अंग्रेज़ सरकार ने इसे प्रशासनिक सुविधा के रूप में प्रस्तुत किया। यह अधिनियम आज़ाद भारत में भी जारी रहा और प्रेस पंजीकरण प्रणाली का आधार बना।
7. वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट, 1878
लॉर्ड लिटन ने 1878 में यह अत्यंत कठोर कानून लागू किया। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों को नियंत्रित करना था, क्योंकि ये सीधे आम जनता तक पहुँचते थे और राष्ट्रवादी चेतना जगाने में अधिक प्रभावी थे। इस कानून के अनुसार यदि कोई भारतीय भाषा का अखबार सरकार-विरोधी सामग्री छापता, तो उसे तुरंत बंद किया जा सकता था। संपादकों पर मुकदमे चलाए जाते और जुर्माना लगाया जाता। दिलचस्प यह है कि अंग्रेज़ी अखबारों को इस कानून से छूट दी गई थी, क्योंकि वे अधिकतर यूरोपीय समुदाय के लिए थे। इससे स्पष्ट हुआ कि यह कानून भारतीयों को दबाने के लिए बनाया गया था। इस एक्ट के खिलाफ भारतीय प्रेस और नेताओं ने तीव्र विरोध किया। बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने इस अधिनियम की कड़ी आलोचना की। अंततः इसने भारतीयों में स्वतंत्रता संग्राम के लिए और अधिक आक्रोश व एकता पैदा की।
8. भारतीय प्रेस एक्ट, 1910
1910 में लॉर्ड मिन्टो ने Indian Press Act पारित किया। इस कानून के तहत किसी भी समाचार पत्र को प्रारंभ करने के लिए भारी-भरकम सुरक्षा जमा (Security Deposit) जमा करना आवश्यक हो गया। यदि अखबार सरकार विरोधी सामग्री छापता तो यह जमा राशि ज़ब्त कर ली जाती। यह कानून विशेष रूप से राष्ट्रवादी प्रेस को निशाना बनाने के लिए बनाया गया था, क्योंकि उस समय स्वतंत्रता आंदोलन तेज़ हो रहा था और अखबार जनता को जागरूक करने में बड़ी भूमिका निभा रहे थे। इस अधिनियम का उपयोग Kesari, The Hindu, Amrita Bazar Patrika जैसे कई अखबारों को दबाने के लिए किया गया। भारतीय नेताओं और प्रेस ने इसका व्यापक विरोध किया और इसे स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने का औजार माना। लेकिन इस दमन ने जनता के भीतर राष्ट्रवादी भावनाएँ और प्रबल कर दीं।
9. प्रेस एक्ट, 1931 (सिविल नाफरमानी आंदोलन के दौरान) ASCI CODE
1930-31 में जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) चल रहा था, ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर और भी कठोर कानून लागू किए। 1931 का Press Act इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत सरकार को यह अधिकार दिया गया कि वह किसी भी समाचार पत्र को जब्त कर सकती है और संपादकों को दंडित कर सकती है। इस अधिनियम का उपयोग गांधीजी के Young India और Harijan जैसे प्रकाशनों पर दबाव डालने के लिए किया गया। इसका स्पष्ट उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम की आवाज़ को दबाना और जनता तक विचारों के प्रसार को रोकना था। हालांकि, इसने भारतीयों में और गुस्सा पैदा किया तथा सत्य और अहिंसा के आंदोलन को और मज़बूत किया। यह कानून प्रेस और स्वतंत्रता आंदोलन के टकराव का स्पष्ट उदाहरण है।
10. डिफेंस ऑफ़ इंडिया एक्ट और नियम, 1939
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में Defense of India Act और उसके नियम लागू किए। इसके अंतर्गत प्रेस पर कठोर सेंसरशिप लगा दी गई। कोई भी युद्ध संबंधी समाचार या सरकार की आलोचना प्रकाशित करने से पहले सरकारी अनुमति आवश्यक हो गई। पत्रकारिता का हर लेख सरकार की निगरानी में था। यह नियम स्वतंत्रता सेनानियों और कांग्रेस जैसे संगठनों की गतिविधियों को रोकने के लिए भी इस्तेमाल किए गए। यदि कोई समाचार पत्र ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ लिखता, तो उसे जब्त कर लिया जाता। इस काल में प्रेस स्वतंत्रता लगभग समाप्त हो गई थी। लेकिन इसी समय भूमिगत अखबार और गुप्त पर्चे प्रकाशित हुए, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की चेतना को ज़िंदा रखा। यह कानून दिखाता है कि कैसे युद्ध को बहाना बनाकर अंग्रेज़ों ने स्वतंत्र विचारों को दबाया।
11. भारतीय संविधान और प्रेस की स्वतंत्रता, 1950
भारत की आज़ादी के बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) ने नागरिकों को “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का मौलिक अधिकार दिया। हालांकि इसमें प्रेस की स्वतंत्रता का अलग से उल्लेख नहीं किया गया, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार अपने निर्णयों में कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लगाए गए, जैसे कि — राज्य की सुरक्षा, शालीनता, नैतिकता, न्यायालय की अवमानना और जन-शांति। इसका मतलब यह था कि प्रेस स्वतंत्र है, लेकिन उसे जिम्मेदार भी रहना होगा। संविधान ने प्रेस को स्वतंत्रता तो दी, लेकिन साथ ही उसे समाज और राष्ट्र के प्रति उत्तरदायी भी बनाया। यह स्वतंत्र भारत के प्रेस कानून का आधार बन गया।
12. 1951 से आगे के संशोधन और प्रेस कानून
संविधान लागू होने के बाद भारत सरकार ने प्रेस से जुड़े कई सुधार और नए कानून बनाए। 1951 में प्रथम संविधान संशोधन के जरिए प्रेस पर कुछ नए प्रतिबंध जोड़े गए। 1952 में Cinematograph Act बना जिसने फिल्मों और ऑडियोविज़ुअल सामग्री पर नियंत्रण किया। 1966 में Press Council of India Act आया जिसने पत्रकारिता की आचार संहिता तय की और प्रेस की स्वतंत्रता तथा जिम्मेदारी दोनों पर जोर दिया। 1995 में Cable Television Regulation Act लाया गया ताकि टीवी चैनलों की सामग्री नियंत्रित की जा सके। हाल के वर्षों में Information Technology Rules और डिजिटल मीडिया संबंधी कानून बने हैं। इन सबका उद्देश्य स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखना है। इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर डिजिटल युग तक, भारतीय प्रेस कानून लगातार विकसित होते रहे हैं।
Development of Press laws in India- Conclusion
भारत में प्रेस कानून का इतिहास आज़ादी से पहले और बाद, दोनों दौरों में अलग-अलग रूप में सामने आता है। औपनिवेशिक काल में प्रेस पर लगातार दमनकारी कानून थोपे गए ताकि जनता स्वतंत्र विचार व्यक्त न कर सके और अंग्रेज़ी सत्ता की आलोचना दबाई जा सके। वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट (1878) और प्रेस एक्ट (1910, 1931) जैसे कानून जनता की आवाज़ को कुचलने के औजार बने। लेकिन इन्हीं दमनकारी उपायों ने प्रेस को स्वतंत्रता संग्राम का सशक्त हथियार बना दिया। आज़ादी के बाद संविधान ने प्रेस को स्वतंत्रता तो दी, लेकिन जिम्मेदारी और संतुलन भी अनिवार्य किए। Press Council Act (1966), Cinematograph Act (1952) और IT Rules जैसे आधुनिक कानून इस स्वतंत्रता को सामाजिक उत्तरदायित्व से जोड़ते हैं।
Timeline – Historical Development of Press Law in India
1780 – हिक्की का बंगाल गजट
– भारत का पहला समाचार पत्र; अंग्रेज़ सरकार की आलोचना; प्रेस स्वतंत्रता की नींव।
1799 – वॉरेन हेस्टिंग्स का नियंत्रण
-पहली बार Pre-Censorship लागू; समाचार छापने से पहले सरकारी अनुमति अनिवार्य।
1818 – गवर्नमेंट सर्कुलर
– सरकार को प्रेस बंद करने का अधिकार; “सुरक्षा कारणों” के नाम पर सेंसरशिप।
1835 – मेटकाफ प्रेस एक्ट
– पंजीकरण आवश्यक; इसे प्रेस का Magna Carta कहा गया।
1857 – लाइसेंसिंग एक्ट
– विद्रोह के बाद सख्ती; हर प्रेस को सरकार से लाइसेंस लेना अनिवार्य।
1867 – प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ़ बुक्स एक्ट
– हर प्रकाशन का पंजीकरण अनिवार्य; संपादक और प्रकाशक का नाम स्पष्ट होना चाहिए।
1878 – वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट
-भारतीय भाषा के अखबारों को निशाना बनाया गया; सरकार विरोधी सामग्री पर त्वरित कार्रवाई।
1910 – भारतीय प्रेस एक्ट
– समाचार पत्रों पर भारी Security Deposit; राष्ट्रवादी प्रेस को दबाने का प्रयास।
1931 – प्रेस एक्ट (सविनय अवज्ञा आंदोलन)
– सरकार को अखबार जब्त करने और संपादकों को दंडित करने का अधिकार।
1939 – डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट और नियम
– द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कठोर सेंसरशिप; सरकार की पूर्व अनुमति अनिवार्य।
1950 – भारतीय संविधान
– अनुच्छेद 19(1)(a) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता; अनुच्छेद 19(2) में यथोचित प्रतिबंध।
1951 से आगे – आधुनिक कानून
– Press Council Act (1966), Cinematograph Act (1952), Cable Act (1995) और IT Rules ने प्रेस की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी में संतुलन कायम किया।
Development of Press laws in India