Digital Arrest: New Age Robbery “स्क्रीन के पीछे छिपी गिरफ्तारी — डिजिटल अरेस्ट का जाल और जागरूकता ही बचाव”
आज का दौर डिजिटल है — पैसा, पहचान, रिश्ते, सब मोबाइल और कंप्यूटर की स्क्रीन पर सिमट चुके हैं। पर इसी स्क्रीन के पीछे अब अपराध का एक नया चेहरा जन्म ले चुका है — “डिजिटल अरेस्ट”। यह ऐसा छल है जो न बंदूक से डराता है, न मुखौटे से; बल्कि एक कॉल, मैसेज या लिंक के ज़रिए आपको डर, भ्रम और झूठे भरोसे में फँसाकर आपकी मेहनत की कमाई छीन लेता है। देश के कई शहरों में इस अपराध की चपेट में आने वाले लोग शिक्षित, सम्मानित और अनुभवी हैं — डॉक्टर, व्यापारी, शिक्षक, इंजीनियर — जो समाज में जागरूक माने जाते हैं। लेकिन यही वर्ग आज सबसे बड़ा निशाना बन रहा है। अब समय है कि हम केवल डिजिटल न रहें, बल्कि डिजिटल रूप से सतर्क भी बनें।
अपराध का बढ़ता दायरा — हर शहर में, हर वर्ग में खतरा
पिछले कुछ दिनों में देशभर में डिजिटल अरेस्ट के मामले भयावह रूप से बढ़े हैं। लखनऊ में एक माँ-बेटे को टेलीग्राम निवेश ग्रुप के ज़रिए ₹23 लाख का नुकसान हुआ। मुंबई में छह लोगों ने खुद को एटीएस और एनआईए अधिकारी बताकर एक वरिष्ठ नागरिक से ₹70 लाख ठग लिए। अहमदाबाद में एक सौर-ऊर्जा कंपनी के कर्मचारी से व्हाट्सऐप पर पहचान बदलकर ₹90 लाख ऐंठ लिए गए, वहीं नाशिक में दो अपराधियों को ₹3 करोड़ की ठगी में गिरफ्तार किया गया। ये घटनाएँ अब अपवाद नहीं रहीं — ये हर शहर के समाचारों में आम होती जा रही हैं। स्थिति यह हो गई है कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से जवाब मांगा है ।
यह स्पष्ट संकेत है कि साइबर अपराधी अब किसी विशेष वर्ग को नहीं, बल्कि हर नागरिक को निशाना बना रहे हैं।
अपराधियों के नए तौर-तरीके — भरोसे से धोखे तक का सफर
डिजिटल अरेस्ट का तरीका जितना तकनीकी है, उतना ही मनोवैज्ञानिक भी। अपराधी पहले किसी सरकारी अधिकारी या बैंक प्रतिनिधि के रूप में सामने आते हैं। वे कहते हैं कि “आपका आधार संदिग्ध गतिविधियों में मिला है” या “आपका बैंक खाता फ्रीज़ किया जा रहा है”। इसके बाद डर और भ्रम का माहौल बनाकर व्यक्ति से वीडियो कॉल पर “जांच” करवाते हैं। फिर उसे डिजिटल अरेस्ट बताकर अलग-अलग खातों में पैसे ट्रांसफर करवाते हैं। कभी-कभी अपराधी पहले छोटे निवेश पर अच्छा लाभ दिखाकर भरोसा जीत लेते हैं, फिर धीरे-धीरे बड़ी रकम निकलवाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में शिकार व्यक्ति को यह एहसास ही नहीं होता कि वह किसी जाल में फँस चुका है।
कौन हैं इनका निशाना — सम्मानित लेकिन असावधान लोग
साइबर अपराधियों की नजर उस वर्ग पर होती है जो शिक्षित और आर्थिक रूप से सक्षम है, लेकिन तकनीकी सतर्कता में कमजोर है। यह वर्ग मानता है कि “हम इतने अनुभवी हैं, हमारे साथ कुछ नहीं हो सकता।” यही आत्मविश्वास उन्हें असावधानी की ओर धकेल देता है। अक्सर डॉक्टर, प्रोफेसर, व्यवसायी, सेवानिवृत्त अधिकारी — जो समाज के आदर्श माने जाते हैं — इनके शिकार बन रहे हैं। उनके पास पैसा भी है, भरोसा भी और समाज में प्रतिष्ठा भी — यही तीन बातें अपराधी अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
जागरूकता की कमी — अपराधियों का सबसे बड़ा हथियार
इन घटनाओं का सबसे चिंताजनक पहलू है जागरूकता की कमी। बहुत से लोग न तो अख़बार पढ़ते हैं, न ही साइबर अपराध से संबंधित समाचारों को गंभीरता से लेते हैं। यही लापरवाही अपराधियों के लिए मौका बन जाती है।
कई पीड़ित तो घटना के बाद भी शर्म या संकोच के कारण शिकायत नहीं करते। पुलिस और बैंक अधिकारी बार-बार चेतावनी देते हैं कि “सरकारी संस्थाएँ कभी फोन या संदेश पर व्यक्तिगत जानकारी नहीं मांगतीं”, फिर भी लोग भरोसा कर बैठते हैं। अगर हर व्यक्ति थोड़ा-सा सतर्क हो जाए, तो ये अपराध आधे हो सकते हैं।
जागरूकता ही सबसे बड़ी सुरक्षा — परिवार और समाज दोनों को शिक्षित करें – Fake call एआई फेक कॉल, कैसे बचें
आज सबसे बड़ा हथियार बंदूक नहीं, बल्कि जानकारी है। हर व्यक्ति को अपने परिवार में साइबर जागरूकता पर चर्चा करनी चाहिए — बुजुर्गों को यह समझाना चाहिए कि किसी भी कॉल या मैसेज में न तो पैसे भेजें, न ही अपनी जानकारी दें। बच्चों को बताना चाहिए कि लिंक या ऐप डाउनलोड करने से पहले सोचें। यदि कोई संदिग्ध कॉल या संदेश आए, तो तुरंत 1930 हेल्पलाइन पर या cybercrime.gov.in पर शिकायत करें। सरकार और पुलिस लगातार जागरूकता अभियान चला रही है, लेकिन जब तक समाज खुद नहीं बदलेगा, तब तक ये अपराध रुकेंगे नहीं। जागरूकता केवल सुरक्षा नहीं — यह जिम्मेदारी है। जिस व्यक्ति ने खुद सीखा और अपने आसपास के लोगों को सिखाया, उसने समाज को अपराध से बचाने का कार्य किया।
शासन और व्यवस्था — रोकथाम की नई दिशा
सरकार और पुलिस अब साइबर अपराधों पर तेजी से कार्रवाई कर रही है। राज्यों में विशेष “साइबर ठगी नियंत्रण केंद्र” स्थापित किए जा रहे हैं ताकि शिकायत मिलते ही खातों को फ्रीज़ किया जा सके। नया नियम यह है कि बैंक केवल विवादित राशि को ही रोकें, ताकि पीड़ित को बाकी धन का उपयोग मिल सके। फिर भी तंत्र अपराधियों से एक कदम पीछे है। इसलिए व्यवस्था के साथ-साथ नागरिक सहभागिता भी आवश्यक है — जन-सहयोग ही जन-सुरक्षा है। How to check fake news
जागरूकता ही बचाव, जानकारी ही शक्ति Digital Arrest: New Age Robbery
डिजिटल अरेस्ट का खतरा केवल तकनीकी नहीं, यह सामाजिक और मानसिक चुनौती भी है। यह हमारे भरोसे, हमारी सावधानी और हमारी सामूहिक जिम्मेदारी की परीक्षा है। आज अगर हम चुप रहे तो कल कोई और फँसेगा। इसलिए अब वक्त है सतर्क होने का — खुद भी और दूसरों को भी। बात करें, बताएं, समझाएं और चेताएं
क्योंकि हर जागरूक नागरिक एक सुरक्षा कवच है। Digital Arrest: New Age Robbery What is Deepfake डीप फेक क्या है


