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      Home Media Study Material

      Art of Picture Composition

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      2 months ago
      in Media Study Material, TV
      0

      Art of Picture Composition टीवी पिक्चर कम्पोज़िशन कला

      Content विषय सूची

      1. रूल ऑफ थर्ड (Rule of Third)
      2. हेड रूम (Head Room)
      3. नोज़ रूम (Nose Room)
      4. लीड रूम (Lead Room)
      5. बैलेंस (Balance)
      6. फोकस और डेप्थ ऑफ फील्ड (Focus and Depth of Field)
      7. फ्रेमिंग (Framing)
      8. पृष्ठभूमि (Background)
      9. अग्रभूमि (Foreground)
      10. प्रकाश व्यवस्था (Lighting)
      11. रंग संयोजन (Color Composition)
      12. दृष्टिकोण (Perspective)
      13. दृश्य केन्द्र (Visual Center)
      14. दिशा और गति (Direction and Motion)
      15. सादगी (Simplicity)
      16. समरूपता और असमरूपता (Symmetry and Asymmetry)
      17. रेखाएँ और आकार (Lines and Shapes)
      18. दृष्टि रेखा (Eye Line)
      19. गहराई और परिप्रेक्ष्य (Depth and Perspective)
      20. पैटर्न और बनावट (Pattern and Texture)
      21. छाया (Shadow)
      22. दूरी और स्केल (Distance and Scale)
      23. कैमरा कोण (Camera Angle)
      24. स्थानिक गहराई (Spatial Depth)
      25. दिशा परिवर्तन और निरंतरता (Continuity and Direction)
      26. फ्रेम की सीमा (Frame Boundary)
      27. दृश्य लय (Visual Rhythm)
      28. कंट्रास्ट (Contrast)
      29. ओवरलैप (Overlap)
      30. ग्राफिक सामंजस्य (Graphic Harmony)

      Art of Picture Composition टीवी पिक्चर कम्पोज़िशन के सभी महत्वपूर्ण बिंदु

      टीवी पिक्चर कंपोजिशन एक कला है एक कुशल कैमरा पर्सन को यह कंपोजिशन कल को जानना समझना अति आवश्यक होता है अन्यथा अच्छा कैमरा एवं समय मेहनत के बावजूद सहित पिक्चर प्राप्त नहीं होती है कंपोजिशन कल के कुछ महत्वपूर्ण पहलू हैं इसके बारे में फोटोग्राफर एवं वीडियोग्राफर को अपनी एक समझ रखनी चाहिए यहां पर आगे उन सभी पहलुओं के बारे में चर्चा की गई है

      1. रूल ऑफ थर्ड (Rule of Third)

      यह टीवी चित्र-रचना का सबसे मूल नियम है। स्क्रीन को तीन समान भागों में क्षैतिज और तीन में ऊर्ध्वाधर विभाजित मानकर दृश्य का केंद्र विषय किसी एक क्रॉस पॉइंट पर रखा जाता है। इससे चित्र में संतुलन, आकर्षण और स्वाभाविक गहराई उत्पन्न होती है। यह दर्शक की दृष्टि को सही दिशा में ले जाता है।

      2. हेड रूम (Head Room)

      जब किसी व्यक्ति का चेहरा या शरीर फ्रेम में दिखाया जाता है तो उसके सिर और फ्रेम की ऊपरी सीमा के बीच थोड़ा खाली स्थान रखा जाता है, इसे हेड रूम कहते हैं। यह स्थान दृश्य को संतुलित बनाता है और दर्शक को मानसिक रूप से “दबाव” का अनुभव नहीं होने देता।

      3. नोज़ रूम (Nose Room)

      यदि कोई पात्र किसी दिशा में देख रहा है, तो उस दिशा में कुछ खाली स्थान दिया जाता है जिसे नोज़ रूम कहते हैं। यह संतुलन और दृश्य प्रवाह के लिए आवश्यक है। इससे दर्शक को लगता है कि पात्र के सामने “स्पेस” है और दृश्य खुला तथा स्वाभाविक लगने लगता है।

      4. लीड रूम (Lead Room)

      चलते हुए व्यक्ति, वाहन या वस्तु के आगे कुछ स्थान खाली छोड़ना लीड रूम कहलाता है। यह दृश्य में गति और दिशा का बोध कराता है। यदि लीड रूम न दिया जाए तो गति रुकावट जैसी लगेगी। यह गतिशील शॉट्स में संतुलन और प्रवाह के लिए आवश्यक होता है।

      Art of Picture CompositionTV Picture Composition – Meaning, Importance, and Applications


      5. बैलेंस (Balance)

      चित्र में सभी दृश्य तत्वों—वस्तुएँ, रंग, प्रकाश और पात्र—का समानुपातिक वितरण ही बैलेंस कहलाता है। असंतुलन दर्शक को असहज करता है। सही संतुलन से दृश्य का सौंदर्य बढ़ता है और दर्शक का ध्यान मुख्य विषय पर केंद्रित रहता है।


      6. फोकस और डेप्थ ऑफ फील्ड (Focus and Depth of Field)

      किस वस्तु को स्पष्ट दिखाना है और कौन-सी पृष्ठभूमि धुंधली रखनी है, यह कम्पोज़िशन का हिस्सा है। फोकस दर्शक का ध्यान सही स्थान पर रखता है, जबकि गहराई (Depth) दृश्य को वास्तविक और त्रिआयामी बनाती है।

      7. फ्रेमिंग (Framing)

      किसी विषय को फ्रेम में किस प्रकार घेरा जाए, उसे फ्रेमिंग कहते हैं। यह दृश्य को सीमा, रूप और दिशा देता है। उचित फ्रेमिंग दृश्य को व्यवस्थित, संतुलित और कलात्मक बनाती है। फ्रेमिंग से ही तय होता है कि दर्शक क्या देखेगा और क्या नहीं।

      8. पृष्ठभूमि (Background)

      हर दृश्य में पृष्ठभूमि का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह मुख्य विषय को उभारती है या कभी-कभी भटका भी सकती है। सरल, विषयानुकूल और प्रकाशानुसार पृष्ठभूमि दृश्य को गहराई और भावनात्मक प्रभाव देती है।

      9. अग्रभूमि (Foreground)

      दृश्य के सामने का भाग अग्रभूमि कहलाता है। यदि इसे सही रूप से प्रयोग किया जाए तो यह दृश्य में गहराई और यथार्थता बढ़ाता है। अग्रभूमि में हल्की वस्तुएँ रखकर निर्देशक “स्पेस” और “परिप्रेक्ष्य” को प्रभावशाली बनाता है।

      10. प्रकाश व्यवस्था (Lighting)

      प्रकाश चित्र का मनोभाव निर्धारित करता है। उजला प्रकाश उत्साह, ऊर्जा और खुलापन दर्शाता है जबकि मंद प्रकाश रहस्य, दुख या गंभीरता का संकेत देता है। संतुलित प्रकाश न केवल सौंदर्य बढ़ाता है बल्कि दृश्य के भाव को सटीक रूप से व्यक्त करता है।

      11. रंग संयोजन (Color Composition)

      टीवी दृश्य में रंग केवल सजावट नहीं बल्कि अर्थ के वाहक होते हैं। गर्म रंग जैसे लाल, नारंगी उत्साह और शक्ति का भाव देते हैं, जबकि ठंडे रंग जैसे नीला और हरा शांति का। सही रंग संयोजन से दृश्य में भावनात्मक संतुलन और गहराई आती है।

      12. दृष्टिकोण (Perspective)

      यह दृश्य को गहराई और त्रिविमीयता देता है। उचित दृष्टिकोण से छोटा बड़ा, पास दूर और ऊँचाई का बोध होता है। निर्देशक इस सिद्धांत से दृश्य को प्राकृतिक और जीवंत बनाता है। यह यथार्थ बोध के लिए अनिवार्य है।

      13. दृश्य केन्द्र (Visual Center)

      हर चित्र का एक दृश्य केन्द्र होता है जहाँ दर्शक की नजर सबसे पहले जाती है। यह केन्द्र ही दृश्य का भाव और अर्थ तय करता है। सही कम्पोज़िशन में विषय को उसी केन्द्र के आसपास व्यवस्थित किया जाता है ताकि संदेश स्पष्ट रहे।

      14. दिशा और गति (Direction and Motion)

      टीवी कम्पोज़िशन में गति और दिशा का बड़ा महत्व है। यदि पात्र दाएँ से बाएँ जा रहा है, तो दर्शक उसकी दिशा में “गति” महसूस करता है। कैमरे की मूवमेंट और पात्र की चाल में तालमेल दृश्य को जीवंत रखता है।

      15. सादगी (Simplicity)

      जटिल कम्पोज़िशन दर्शक को भ्रमित कर देती है। साधारण और साफ़ दृश्य अधिक प्रभावी होता है। सादगी दृश्य के अर्थ को स्पष्ट करती है और दर्शक को मुख्य विषय पर केंद्रित रखती है। यह दृश्य संप्रेषण का स्वर्ण नियम है।

      16. समरूपता और असमरूपता (Symmetry and Asymmetry)

      कुछ दृश्य पूर्ण संतुलित होते हैं जिन्हें समरूप कहा जाता है, जैसे मंदिर का प्रवेशद्वार या कोई मंच दृश्य। असमरूपता में हल्का असंतुलन भी आकर्षक लगता है यदि वह भावनात्मक संतुलन पैदा करे। दोनों रूप दृश्य के प्रभाव को दिशा देते हैं।

      17. रेखाएँ और आकार (Lines and Shapes)

      क्षैतिज रेखाएँ स्थिरता और शांति का भाव देती हैं, जबकि ऊर्ध्वाधर रेखाएँ शक्ति और गंभीरता का। तिरछी रेखाएँ गति का संकेत देती हैं। आकार और आकृतियाँ दृश्य की संरचना को मजबूत बनाती हैं और दर्शक की दृष्टि को नियंत्रित करती हैं।

      18. दृष्टि रेखा (Eye Line)

      जब पात्र एक-दूसरे से बात कर रहे हों या कुछ देख रहे हों, तो कैमरे का एंगल इस प्रकार होना चाहिए कि उनकी दृष्टि रेखा वास्तविक लगे। यदि दृष्टि गलत दिशा में दिखे तो दृश्य बनावटी लगता है। यह यथार्थता का महत्त्वपूर्ण तत्व है।

      19. गहराई और परिप्रेक्ष्य (Depth and Perspective)

      गहराई दृश्य को त्रिआयामी बनाती है। अग्रभूमि, मध्यभूमि और पृष्ठभूमि का संयोजन करके दृश्य में दूरी और स्थान का आभास कराया जाता है। इससे चित्र में यथार्थता और विस्तार का अनुभव होता है।

      20. पैटर्न और बनावट (Pattern and Texture)

      किसी वस्तु की सतह या दोहराए जाने वाले आकार दृश्य को रोचक बनाते हैं। बनावट (Texture) चित्र को जीवंत और वास्तविक बनाती है, जबकि पैटर्न (Pattern) उसे लयात्मक रूप देता है। इनका प्रयोग दृश्य की कलात्मकता बढ़ाता है।

      21. छाया (Shadow)

      छाया केवल अंधेरा नहीं, बल्कि गहराई और रहस्य का माध्यम है। सही ढंग से प्रयोग की गई छाया दृश्य में भावनात्मक गहराई और नाटकीयता जोड़ती है। यह प्रकाश का साथी तत्व है जो फ्रेम को जीवंत बनाता है।

      22. दूरी और स्केल (Distance and Scale)

      किसी वस्तु या पात्र को फ्रेम में कितना बड़ा या छोटा दिखाया जाए, यह दृश्य के अर्थ को प्रभावित करता है। पास के शॉट में भावनाएँ प्रकट होती हैं, जबकि वाइड शॉट वातावरण दिखाता है। स्केल दर्शक की अनुभूति तय करता है।

      23. कैमरा कोण (Camera Angle)

      ऊपर से लिया गया शॉट विषय को कमजोर दिखा सकता है, जबकि नीचे से लिया गया शॉट शक्ति और प्रभुत्व का भाव देता है। सटीक एंगल दृश्य की मनोवैज्ञानिक गहराई बढ़ाता है और संदेश को प्रभावशाली बनाता है।

      24. स्थानिक गहराई (Spatial Depth)

      तीन स्तरों—अग्रभूमि, मध्यभूमि और पृष्ठभूमि—का संतुलित प्रयोग दृश्य को परिपूर्ण बनाता है। इससे दर्शक को दृश्य के भीतर “स्थान” का अनुभव होता है। यह चित्र में यथार्थता और आयाम जोड़ता है।

      25. दिशा परिवर्तन और निरंतरता (Continuity and Direction)

      दृश्य क्रम में दिशा का निरंतर रहना आवश्यक है। यदि पात्र एक दृश्य में दाएँ जा रहा है तो अगले में भी उसी दिशा में बढ़ना चाहिए। यह निरंतरता दर्शक को भ्रमित होने से बचाती है और दृश्य प्रवाह बनाए रखती है।

      26. फ्रेम की सीमा (Frame Boundary)

      किस वस्तु को फ्रेम में रखा जाए और किसे बाहर छोड़ा जाए, यह कम्पोज़िशन का महत्वपूर्ण निर्णय है। यदि कोई वस्तु आधी कट जाए तो दृश्य का प्रभाव घटता है। उचित सीमांकन से फ्रेम संतुलित और पूर्ण लगता है।

      27. दृश्य लय (Visual Rhythm)

      जब दृश्य में गति, रंग, प्रकाश और रेखाएँ सामंजस्य से दोहराई जाती हैं, तो उसमें लय पैदा होती है। यह लय दर्शक को आनंद देती है और दृश्य को स्मरणीय बनाती है। लय ही दृश्य की “संगीतात्मकता” है।

      28. कंट्रास्ट (Contrast)

      अंधकार और प्रकाश, छोटा और बड़ा, स्थिर और गतिशील — इन विरोधों से दृश्य में जीवंतता आती है। कंट्रास्ट चित्र को उभारता है और मुख्य विषय को प्रमुख बनाता है। यह दृश्य में गहराई और शक्ति का तत्व जोड़ता है।

      29. ओवरलैप (Overlap)

      जब एक वस्तु दूसरी के आगे दिखाई देती है, तो दर्शक को दूरी और गहराई का बोध होता है। यह दृश्य में परिप्रेक्ष्य बनाता है। ओवरलैप का प्रयोग दृश्य को अधिक वास्तविक और त्रिविमीय बनाता है।

      30. ग्राफिक सामंजस्य (Graphic Harmony)

      दृश्य के सभी तत्व—रेखाएँ, आकार, रंग, प्रकाश—जब एक साझा उद्देश्य के अनुसार व्यवस्थित हों, तो उसे ग्राफिक सामंजस्य कहते हैं। यह दृश्य की एकता, सौंदर्य और संप्रेषणीयता का आधार बनता है।

      निष्कर्ष Art of Picture Composition

      टीवी पिक्चर कम्पोज़िशन केवल तकनीकी प्रक्रिया नहीं बल्कि एक दृश्य भाषा है जो दर्शक की भावनाओं, दृष्टि और अनुभव को नियंत्रित करती है।
      रूल ऑफ थर्ड से लेकर लीड रूम तक, हर नियम दृश्य को अर्थ, संतुलन और आकर्षण प्रदान करता है।
      सफल कम्पोज़िशन वही है जो दर्शक को दृश्य के भीतर खींच ले और संदेश को बिना शब्दों के स्पष्ट कर दे। Art of Picture Composition

      Tags: Film
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      Dr. Arvind Kumar Singh

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