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      Home Media Study Material Communication

      Bullet Theory of Mass Communication जनसंचार का बुलेट सिद्धांत

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Communication, Communication Theory & Models
      0

      Bullet theory of mass media is one important theory about media effect. This article describes about various aspects and relevance of theory.

      Bullet theory of Communication जनसंचार का बुलेट सिद्धांत

            Theory of two-step flow of communication संचार का दो-चरण प्रवाह का सिद्धांत      


      नमस्कार ! अपने जीवन मे ंहम विविध प्रकार के जनसंचार माध्यमों का इस्तेमाल करते है। इसमें समाचारपत्र से ले करके रेडियों टीवी डिजिटल माध्यम शामिल है। ये संचार माध्यम हम पर अपने ढंग से प्रभाव भी डालते है। इस सन्दर्भ में विभिन्न प्रकार के सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं। इन सिद्धांतों के द्वारा समाज पर जनसंचार के कार्यों, प्रभाव, आदत आदि के बारे में सैद्धान्तिक ढंग से बातें बतायी गयी है। जनसंचार के विभिन्न साधन जैसे रेडियो, टीवी, प्रिंट माध्यम के साथ साथ जो नए माध्यम या न्यू मीडिया आदि आ गये हैं, उन सबसे लोगों की सामाजिक अंतक्र्रिया होती है । इस संदर्भ में आरम्भ से ही शोध कार्य भी किए जाते रहे हैं इसके बारे में हमेशाअध्ययन भी होते रहे है। समय पर विभिन्न प्रकार के सिद्धांत भी प्रस्तुत किए गए है। इसी के अंतर्गत आगे हम जनसंचार के प्रभाव के सन्दर्भ एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बुलेट सिद्धान्त की चर्चा करने जा रहे हैं।


      बुलेट सिद्धांत के अंतर्गत हम जिन मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करेंगे उसमें बुलेट सिद्धांत क्या है इसके बारे में जानकारी देंगे और इसी के साथ ही इसके मुख्य विषेषताओं एवं खामियों की साथ ही वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह सिद्धांत कहां तक प्रासंगिक है, उसका विष्लेषण करेंगें। तो आइएं फिर हम जनसंचार के बुलेट सिद्धांत के विभिन्न पहलुओं के बारे में चर्चा आरंभ करते हैं।
      जनसंचार के प्रभाव के अंतर्गत बुलेट सिद्धांत को बहुत पहले दिया गया है। इस सिद्धान्त को देने का श्रेय हेरोल्ड डी लासवेल को जाता है। इन्होने इसे 1927 में में प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत हमारे समाज में पिछली सदी बीसवीं सदी के 30 एवं 40 के दशक में विशेष रूप से चर्चित रहा।

      Other name of Bullet theory
      बुलेट सिद्धांत को कई अन्य नामों से भी जानते हैं। बुलेट सिद्धांत का अन्य जो नाम हैं उसमें हाइपोडर्मिक नीडल सिद्धांत, हाइपोडर्मिक सीरिंज सिद्धांत, नीडल सिद्धांत, ट्रांसमिशन बेल्ट सिद्धांत और मैजिक बुलेट सिद्धांत जैसे पदों का भी इस्तेमाल किया जाता है । और जब इसमें से किसी भी पद का इस्तेमाल किया जाए तो इसका आशय यही है कि वह बुलेट सिद्धांत के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा होता है। किन्तु बुलेट सिद्धान्त सबसे अधिक बोला जाता है। जब इस सिद्धान्त का उदय हुआ उस समय में रेडियो और प्रिंट मुख्य जनमाध्यम रहे और इसमें से भी रेडियो जनमाध्यम एक तात्कालिक माध्यम रहा है। इसका आषय यही है कि इसके सन्देष लोगों तक तत्काल पहुॅचता रहा है। इस तात्कालिकता के कारण इसका समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए बुलेट सिद्धांत काफी महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में माना जाने लगा है।

      Important events in background of the bullet theory
      पिछली सदी के आरम्भिक दौर में विश्व के विभिन्न भागों में कुछ ऐसी घटनाएं हुई जो कि इस सिद्धांत को और अधिक पुष्टि किया। उदाहरण के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एडोल्फ हिटलर ने माध्यम का इस्तेमाल करके नाजीवाद का प्रचार किया। उसमें रेडियो माध्यम विशेष रूप से इस्तेमाल किया गया था। नाजीवाद के प्रचार हेतु हिटलर रेडियो द्वारा कराये गये प्रचार की भी विषेष भूमिका रही। इसी प्रकार से 30 के दषक में अमेरिका में हॉलीवुड फिल्म का समाज पर जिस तरह से प्रभाव पढ़ रहा था, उसे देखते हुए भी बुलेट सिद्धांत काफी चर्चा में आ गया और इस सिद्धांत की पूरी तरह से सत्य माना जाने लगा।


      आइए अब हम मैजिक बुलेट सिद्धांत नाम की थोड़ी व्याख्या करते हैं और देखते है कि क्या इससे उभर करके सामने आता है। मैजिक बुलेट सिद्धांत के अंतर्गत बुलेट शब्द का इस्तेमाल किया गया है। जिस प्रकार से बन्दूक से गोली निकलती है उसी प्रकार से इसका आषय बुलेट कहीं न कहीं से निकलती है जैसे उसको चलाया जाता है। यहां पर मीडिया एक बंदूक के रूप में कार्य कर रही है और उससे निकलने वाले जो सन्देष या मैसेज हैं, वह गोली या फिर यह कहे कि नीडल सुई के रूप में माने जा सकते हैं जिनके माध्यम से मैसेज को दिया जाता है। इनका मुख्य लक्ष्य या टारगेट वे व्यक्ति है जिन्हे ऑडियंस कहते हैं। इसके अंतर्गत श्रोता, पाठक, दर्शक आदि शामिल हैं। इसी प्रकार से एक अन्य शब्द मैजिक बुलेट इस्तेमाल किया जाता है। मैजिक का आशय जादू ही होता है । यहाॅं पर मीडिया के द्वारा मैसेज के रूप में जो बुलेट चलाई जाती है। वह जादू की तरह अपना प्रभाव डालती है। इसी बात को कहने के लिए मैजिक बुलेट शब्द इस्तेमाल किया जाता है।

      बुलेट सिद्धांत के संदर्भ में विभिन्न प्रकार के ग्रैफिक बना कर उसे दर्शाया जाता है। एक पिक्चर में मानव मस्तिष्क में संदेश का सीरिंज लगाते हुए दिखाया गया है। यह सीरिंज जनमाध्यम का प्रतीक है और उसमें जो दवा है वह जन माध्यमों के विषय सामग्री के रूप में हम मान सकते हैं। इस तरीके से जनमाध्यम द्वारा जो भी सूचना सामग्री लोगों को दी जाती है, वह सीधे उनके मस्तिष्क में पहुंचती है। इसी बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है । एक अन्य पिक्चर में यह दिखाया गया है कि जो ऑडियंस है वह एक तरीके से जनमाध्यमों द्वारा जो कुछ भी परोसा जाता है, उसे ग्रहण कर लेते हैं । वह इसमें किसी प्रकार की अपनी तरफ से कोई फिल्टर नहीं करते हैं। अर्थात संदेश में जो कुछ बातें कही जाती है उसे वे सीधे ले लेते है। उसमें प्रकार का कोई छॅंटनी नही करते हैं।

      Hypodermic theory / Bullet theory
      इसी प्रकार से एक अन्य शब्द हाइपोडर्मिक भी इस्तेमाल किया जाता है। हाइपोडर्मिक त्वचा का निचला भाग होता है। जब हम हाइपोडर्मिक नीडल अथवा सीरिंज कहते हैं तो इसका आशय त्वचा के निचले भाग तक सुई या नीडल ले जाना होता है। अर्थात संदेश को सूई के माध्यम से अन्दर तक प्रवेश कराया जाता है।
      Main points of Bullet theory

      संचार के बुलेट सिद्धांत की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार से हैं
      – यह एक रेखीय संचार सिद्धांत अथवा मॉडल है ।
      – इसमें संदेश सीधे अपने लक्ष्य पर पहुॅचता है।
      – इसे लोग सीधे ग्रहण कर लेते है।
      -यह सिद्धांत लोगों पर संचार के प्रभाव के संदर्भ में चर्चा करता है
      हम जानते हैं कि अलग-अलग सिद्धांत संचार के अलग-अलग पहलुओं के बारे में चर्चा करते हैं ।

      इस प्रकार से जनमाध्यम लोगों पर तत्काल प्रत्यक्ष रुप से बहुत ही शक्तिशाली ढंग से अपना प्रभाव डालता है। यहाॅं पर हम जनसंचार की बात कर रहे हैं। इसका प्रसार क्षेत्र काफी अधिक है। निश्चित रूप से जो संदेश कहे जाते हैं, वे काफी लोगों तक पहुंचता है । इस तरह बुलेट सिद्धान्त कहता है कि से जनसंचार काफी अधिक लोगों के बीच में या उन पर एक समान तरीके से अपना सीधा प्रभाव डालता है।


      हम देखते हैं कि जनसंचार का जो बुलेट सिद्धांत संचार माध्यमों के प्रभाव को काफी अधिक मानता है। इसके अनुसार संचार के विभिन्न साधनों द्वारा लोगों को जो कुछ भी बातें सुनाई या बताई जाती है, उसे सभी लोग सीधे-सीधे स्वीकार कर लेते हैं और उसमें वह किसी प्रकार की कोई प्रश्न नहीं करते हैं और शायद यही मूल अवधारणा ने बुलेट और सिरींज या नीडल जैसे शब्दों को जन्म भी दिया।


      अब प्रश्न है कि क्या इस सिद्धान्त को सीधे स्वीकार कर लिया गया। क्या इसकी कोई सीमा नही है। बात ऐसी नही है। जैसा कि आगे चलकर कि हम देखेंगे कि इस सिद्धांत की कई तरीके की सीमाएं भी हैं और इसकी काफी आलोचना भी की गई है। एक लंबे समय तक तो इसको अप्रासंगिक मान करके अस्वीकार भी कर दिया गया था। वर्तमान में इस सिद्धांत को एक नए तरीके से चर्चा में लाया गया हैं।


      इस प्रकार से हम यह देखते हैं कि बुलेट सिद्धांत मीडिया के संदेशों को मुख्य रूप से बुलेट द्वारा छोड़े गए गोली के रूप में देखता है जिसका टारगेट मीडिया का उपयोग करने वाले व्यक्ति हैं और इसे उनके मस्तिष्क में सीधे पहुंचाया जाता है और वे सभी निष्क्रिय होकर के इसे सीधे ग्रहण करते हैं । उसका कोई वह किसी प्रकार की ओर से कोई विरोध नहीं करते हैं । ऐसा लगता है जैसे कि वे मीडिया में जो कुछ भी समय संदर्भ सामग्री दी गई है, उसकी दया पर रहते हैं ।

      इस सिद्धांत में माना गया है कि यह एक समान रूप से प्रभाव डालते हैं , इसलिए यह एक समान रूप से सोच भी लोगों के भीतर उत्पन्न करते हैं । इस प्रकार से लोगों का मानसिक और अवधारणा भी एक निश्चित स्वरूप में ही विकसित होती हैं । यह पूर्व में लोगों द्वारा धारण किए गए किसी भी प्रकार के विचार को बदलने की क्षमता रखता है । इस प्रकार से मीडिया के द्वारा दिए गए कोई भी सूचना लोगों के मस्तिष्क में बदलाव उत्पन्न करती है ।

      Bullet theory given by developed countries
      संचार का बुलेट सिद्धांत विकसित देशों की ही देन है। वहीं पर कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए थे जो कि इस सिद्धांत को जन्म देने और उसकी पुष्टि करने के लिए नजीर बने थे। उदाहरण के लिए 1938 में अमेरिका में एवर ऑफ वर्ल्ड रेडियो प्रोग्राम प्रसारित किया गया था और उसमें यह दिखाया गया था कि मंगल ग्रह से कुछ प्राणी न्यूजर्सी में लोगों पर हमला कर रहे हैं। इस कार्यक्रम को लोग वास्तविक मान लिया । उसे सत्य मानते हुए लोगों ने पुलिस को फोन किया। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि बहुत से लोग तो आपातकाल स्थित समझते हुए सामानों के स्टोर पर पहुंचकर के ढेर सा सामान भी खरीदने लगे । कई तरीके की अन्य घटनाएं भी हुई। लोगों में एक डर भय पैदा हो गया। यह रेडियो कार्यक्रम ब्रॉडकास्ट के नाम से जाना जाता है और इस कार्यक्रम में हाइपोडर्मिक नीडल अवधारणा या विचार को आगे बढ़ाया ।

      Limitations of bullet theory
      बुलेट सिद्धान्त की कई प्रकार की सीमाएं भी हैं और इसीलिए शायद यह एक लंबे समय तक है निष्क्रिय रूप में भी देखा गया । यह एक अवधारणा है और इसे कोई बहुत व्यावहारिक या व्यापक रूप से अध्ययन करके नहीं निष्कर्ष निकाला गया है । यह उसी समय ज्यादा सही रूप में माना जा सकता है जबकि लोगों के पास है जन माध्यमों के चयन की कोई अधिक सुविधा नहीं होती है। लोग किसी खास जनमाध्यम पर ही निर्भर करते हैं


      किन्तु कुछ अवसरों पर तो यह वास्तव में बुलेट सिद्धांत के रूप में ही काम करता है । खास करके जब किसी प्रकार के आपातकाल की स्थिति उत्पन्न होती है । इसमें संदेश से हमेशा ऊपर से नीचे जाने के रूप में ही देखा गया है। यह भी एक सीमा है कि इस सिद्धांत में ऑडियंस को बिल्कुल निष्क्रिय रूप में माना गया है जो कि सही नहीं है । लोगों की प्रतिक्रियाएं भी काफी जबरदस्त होती हैं ।


      यही कारण है कि इस सिद्धांत की काफी आलोचना भी की गई है और कई ऐसे अध्ययन किए गए जिसमें की यह सिद्धांत सत्य नहीं पाया गया। 1940 में पाॅल लेजरफल्ड द्वारा फ्रैक रूजवेल्ट द्वारा किये जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के कम्पेन के दौरान जनमाध्यमों के प्रभाव को ले करके एक अध्ययन किया गया जिसमें कि इस सिद्धान्त को गलत माना गया और यह पाया गया कि माध्यमों की तुलना में लोगों एवं ओपीनियन नेताबओं की भूमिका अधिक प्रभावपूर्ण रही।


      बुलेट सिद्धान्त की इसलिए भी आलोचना की जाती है कि इसमें लोगों की सोच प्रतिक्रिया को कोई स्थान नहीं दिया गया है। लोगों के विश्वास विश्लेषणात्मक कार्य को भी कोई स्थान नहीं दिया गया। इसमें सिर्फ एक अवधारणा निश्चित किया कि लोग मीडिया के सन्देष को सीधे ग्रहण कर लेते हैं। किंतु समय के साथ लोगों के समक्ष विभिन्न प्रकार के जन माध्यमों के विकल्प भी बन गये हैं और जब लोग कोई बात एक जगह देखते हैं सुनते हैं तो उसे फिर अपने स्तर से अन्य जगहों से उसकी पुष्टि भी करते हैं और जनमाध्यमों के जो विभिन्न विकल्प हैं उस पर उसे भी देखते हैं।

      Bullet theory in present scenario
      इस प्रकार बुलेट सिद्धांत वर्तमान में कुछ खास स्थितियों में ही सत्य कहा जा सकता है। यदि हम वर्तमान संदर्भ में बुलेट सिद्धांत की समीक्षा करें तो पाएंगे कि यह बहुत सही एवं व्यावहारिक सिद्धांत नहीं है। बुलेट सिद्धांत में कही गई मुख्य बातों का कोई औचित्य नहीं रह गया है, क्योंकि वर्तमान में लोग किसी भी तरीके से निष्क्रिय श्रोता के रूप में नहीं है और मीडिया के साथ इंटरेक्शन की जो सुविधा न्यू मीडिया ने उपलब्ध कराती है, उसके कारण से जब भी वह किसी प्रकार की कोई बात एक जगह सुनते हैं और उनको कोई भी आशंका होती है तो तुरंत उसकी पुष्टि के लिए अन्य माध्यमों पर जाते हैं या अन्य स्रोतों से उसकी पुष्टि करते हैं।


      इस प्रकार से बुलेट सिद्धांत की मूल बात कि पाठक निष्क्रिय है, अब सही नही है। वह अपने तरीके से सक्रिय रहते हैं। किंतु इसके बावजूद बुलेट सिद्धांत का अपना एक अलग महत्व है और इसे हर तरीके से नकारा भी नहीं जा सकता है। समाज के विविध क्षेत्रों में एवं विविध स्थितियों में कई बार यह सिद्धांत सत्य साबित प्रतीत होता है। कुल मिलाकर हम यह कर सकते हैं कि मीडिया के प्रभाव के संदर्भ में बुलेट सिद्धांत एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में कभी दिया गया था और उसका एक अपना महत्व था। किंतु यह सिर्फअवधारणाओं पर टिका हुआ था। उसकी शोधपरक तरीके से पुष्टि कभी नहीं हो पाई और खास प्रकार के स्थितियों में यह सिद्धांत भले ही आज भी यह सत्य प्रतीत होती हो, किंतु कुल मिलाकर के बुलेट सिद्धांत में कही गई बातें आज के संदर्भ में एक सीमा के भीतर ही सत्य रह गई है।

      Tags: Hypodermic needle theoryMagic bullet theoryneedle theory
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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