Children and Cyber Crime
Children and Cyber Crime “बच्चों को साइबर अपराध से बचाना – अभिभावकों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी”
वर्तमान समय में जब समाज तेजी से डिजिटल होता जा रहा है, तब साइबर अपराध भी उसी रफ्तार से बढ़ता चला जा रहा है। यह अपराध अब केवल बड़ों तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि बच्चों को लक्ष्य करके किए जाने वाले साइबर अपराधों की संख्या भी चिंताजनक रूप से बढ़ रही है। मोबाइल और इंटरनेट बच्चों के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं — शिक्षा, मनोरंजन और खेल सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। लेकिन यही डिजिटल सुविधा अब बच्चों के लिए खतरे का कारण बनती जा रही है।
आज जरूरत इस बात की है कि अभिभावक स्वयं जागरूक हों, क्योंकि जब तक वे साइबर अपराधों की सच्चाई और उसके तौर-तरीकों को नहीं समझेंगे, तब तक वे अपने बच्चों को भी सुरक्षित नहीं रख पाएंगे। वे स्वयं ही बच्चों को साइबर अपराध में जाने अनजाने में पहुंचा सकते हैं क्योंकि बच्चा घर में मोबाइल अपने माता-पिता से सहज अथवा जिद करके प्राप्त कर लेता है और फिर वह उसमें क्या देख रहा है, कितनी देर देख रहा है ,किस रूप में देख रहा है , इसके प्रति अभिभावक माता-पिता बहुत कम ही ध्यान दे पाते हैं और यही से समस्या शुरू होती है । इसलिए उनको यहां पर बताए गए आगे की बातों को भी जानना जरूरी है।
बच्चों पर बढ़ता साइबर अपराध का जाल
साइबर अपराधी बहुत योजनाबद्ध तरीके से बच्चों को निशाना बनाते हैं। वे जानते हैं कि बच्चे जिज्ञासु होते हैं, जल्दी विश्वास कर लेते हैं, और तकनीकी चीजों को रोमांच के रूप में लेते हैं। बच्चों के इसी बालमनोविज्ञान का अपराधी फायदा उठाते हैं।
साइबर अपराधियों द्वारा पहले बच्चों को ऑनलाइन गेम, कार्टून, या सोशल मीडिया चैटिंग के माध्यम से जोड़ा जाता है। धीरे-धीरे उनसे बातें की जाती हैं, उनके शौक, उम्र, परिवार की स्थिति, और रुचियों की जानकारी ली जाती है। फिर अपराधी उन्हीं रुचियों के आधार पर ऐसे लिंक या सामग्री भेजते हैं, जिन्हें देखकर बच्चा उत्साहित हो जाता है और क्लिक कर देता है। बस, यही वह पल होता है , जब बच्चा साइबर अपराध के जाल में फँस जाता है। साइबर अपराधियों का यह कार्य बहुत ही संगठित तरीके से किया जाता है।
कई बार अपराधी उन्हें “इनाम” या “रिवार्ड” देने का लालच देते हैं, जैसे —
“गेम जीतने पर तुम्हें पैसे मिलेंगे”,
“यह लिंक खोलो, तुम्हें नया मोबाइल मिलेगा”,
या “तुम्हारा वीडियो वायरल कर देंगे।”
बच्चे खेल या मज़ाक समझकर कदम उठाते हैं, और धीरे-धीरे उनका शोषण शुरू हो जाता है।
बच्चों के खिलाफ प्रमुख साइबर अपराध – एक बार जब बच्चा मोबाइल के माध्यम से साइबर अपराधियों के गिरफ्त में आ जाता है तो वह उनको विभिन्न तरीके से शिकार करते हैं । अब चलिए यह देखते हैं कि साइबर अपराधी बच्चों को किस-किस तरीके से साइबर अपराध के शिकार बनाते हैं –
- ऑनलाइन गेमिंग फ्रॉड – अपराधी नकली गेमिंग साइट्स बनाकर बच्चों से पैसे वसूलते हैं या उनकी निजी जानकारी चुरा लेते हैं।
- साइबर बुलिंग – सोशल मीडिया पर बच्चों को गाली देना, धमकाना या उनका मजाक उड़ाना, जिससे वे मानसिक रूप से टूट जाते हैं।
- मॉर्फिंग और फोटो मैनिपुलेशन – बच्चों की तस्वीरों को गलत ढंग से एडिट कर ब्लैकमेल किया जाता है ।
- ऑनलाइन ग्रूमिंग – किसी अनजान व्यक्ति का बच्चे से दोस्ती कर धीरे-धीरे अश्लील या गलत दिशा में ले जाया जाता है।
- फिशिंग लिंक – गेम या वीडियो के बहाने ऐसे लिंक भेजे जाते हैं , जो बच्चे का डेटा और पासवर्ड चुरा लेते हैं।
- मनी ट्रांजैक्शन अपराध – कई बच्चे अपराधियों के कहने पर घर से पैसे निकालकर ऑनलाइन भेज देते हैं।
- आत्महत्या प्रेरणा – ब्लू व्हेल, मोमो जैसे गेम बच्चों को खतरनाक टास्क कराते हैं, जिससे कई बच्चों ने जान तक गंवा दी दी है ।
कुछ वास्तविक घटनाएँ जो समाज को झकझोर गईं Children and Cyber Crime
वैसे तो लगातार साइबर की दुनिया में बाल अपराध की घटनाएं घटित हो रही हैं , यहां पर उदाहरण के तौर पर कुछ की चर्चा की जा रही है –
• दिल्ली का मामला (2023): एक 14 वर्षीय लड़का “ऑनलाइन गेम” के बहाने एक ऐप पर जुड़ा। अपराधियों ने उससे बैंक अकाउंट से पैसे ट्रांसफर करवाए और फिर उसकी वीडियो रिकॉर्ड कर ब्लैकमेल किया। डर के कारण वह बच्चा अवसाद में चला गया।
• महाराष्ट्र का मामला: एक 12 वर्षीय बच्ची सोशल मीडिया पर “फ्रेंड” बने व्यक्ति से रोज चैट करती थी। वह व्यक्ति बाद में उसकी तस्वीरों को एडिट कर ब्लैकमेल करने लगा। बच्ची कई दिनों तक चुप रही और अंततः आत्महत्या कर ली।
• लखनऊ का मामला: एक छात्र को गेम में “फ्री डायमंड” का झांसा दिया गया। उसने लिंक पर क्लिक किया और कुछ ही मिनटों में उसके पिता के बैंक अकाउंट से ₹50,000 गायब हो गए।
- लखनऊ, उत्तर प्रदेश (2025): एक 14 वर्षीय लड़के ने मोबाइल गेम खेलने के दौरान माँ के बैंक खाते की जानकारी एवं OTP साझा कर दी—और परिणामस्वरूप ₹1.5 लाख की धनराशि चोरी हो गई। Patrika News
- दिल्ली (2024–25): “लोटस स्टार किड्स” नामक फर्जी चाइल्ड मॉडलिंग स्कैम में लगभग 197 अभिभावकों को करोड़ों रूपये की ठगी हुई। The Economic Times
- बेंगलुरु (2025): एक बच्ची की फोटो “3D आर्ट पोर्ट्रेट” का झूठा ऑफर दिया गया, ₹37,500 की धोखाधड़ी की गई। The Times of India
- राष्ट्रीय स्तर पर: साइबर अपराधी अब अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क चला रहे हैं, और CBI ने ऐसे नेटवर्कों को तोड़ा है जो विशेष रूप से नाबालिगों को ऑनलाइन यौन शोषण के लिए लक्ष्य करते थे। newsonair.gov.in+1
Children and Cyber Crime
नीचे लखनऊ से सत्यापित कुछ समाचार दिए जा रहे हैं जो यह दिखाते हैं कि कैसे बच्चे या युवा साइबर अपराधों के शिकार बने हैं:
- 14 वर्ष के बच्चे ने आत्महत्या की — ₹14 लाख की ऑनलाइन गेमिंग ठगी के कारण
लखनऊ के मोहनलालगंज में एक 14 वर्षीय छात्र ने फ्री फायर गेम में लगभग ₹14 लाख खो देने के बाद आत्महत्या कर ली। आरोपी “Sanat Gorai” नामक युवक को झारखण्ड से गिरफ्तार किया गया है। The Times of India - गेम के दौरान 14 वर्ष के बच्चे से ₹1.5 लाख की धोखाधड़ी
विभूतिकां इलाके से एक 14 वर्षीय लड़के को गेम के दौरान झांसे में लिया गया। अपराधियों ने उसकी मां के बैंक खाते की जानकारी और OTP ले ली, और लगभग ₹1.5 लाख काट लिए। Patrika News - लखनऊ में छह साइबर ठग गिरफ्तार
बीबीडी पुलिस द्वारा ऐसे छह जालसाजों को पकड़ा गया, जो निवेश के नाम पर लोगों को ठगते थे, डिजिटल अरेस्ट की धमकी देते थे और बैंक अधिकारी बनकर शिकार बनाते थे। उनसे ₹26 लाख नकदी व बड़ी मात्रा में क्रिप्टो वॉलेट्स बरामद हुई। Amar Ujala - “म्यूल अकाउंट्स” का खतरा – युवा खाते होते हथियार
लखनऊ में अनेक युवा अपने बैंक खातों को अपराधियों को किराए पर देते हैं। ये खाते साइबर अपराध के धन को धोने में इस्तेमाल होते हैं। The Economic Times - साइबर बुलिंग का दर – हर 8 मिनट में 1 मामला (यूपी में)
उत्तर प्रदेश में 2024 में लगभग 66,854 साइबर अपराध दर्ज किए गए। इसका अर्थ है कि लगभग हर 8 मिनट में कम-से-कम एक साइबर अपराध का मामला सामने आता है। इसमें बहुत से मामले बच्चों और युवाओं से जुड़े हैं। Children and Cyber Crime
ये घटनाएँ बताती हैं कि सिर्फ एक शहर में ही इतने अपराध हो रहे हैं तो पूरे देश के क्या स्थिति होगी और इसका शिकार किसी भी परिवार का कोई भी बच्चा हो सकता है । सामान्य तौर पर बच्चे घर की चारदीवारी में सुरक्षित दिखते हैं, पर डिजिटल दुनिया में वे सबसे असुरक्षित -जगह बन चुके हैं।
Children and Cyber Crime
अभिभावकों की अनजाने में की गई भूलें
आज अधिकांश अभिभावक बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं ताकि वे व्यस्त रहें। उन्हें यह सुकून होता है कि बच्चा घर में है, बाहर नहीं जा रहा। लेकिन वे यह नहीं समझते कि मोबाइल की स्क्रीन के भीतर भी अपराध की एक पूरी दुनिया है।
कई माता-पिता स्वयं तकनीक नहीं समझते, इसलिए बच्चों के ऑनलाइन व्यवहार की निगरानी नहीं कर पाते। बच्चे क्या देख रहे हैं, किससे बात कर रहे हैं, कौन-से ऐप उपयोग कर रहे हैं — यह सब जानना जरूरी है।
अक्सर माता-पिता खुद सोशल मीडिया पर अनजान लोगों से जुड़ते हैं और बच्चों को भी वही सिखाते हैं। यह प्रवृत्ति खतरनाक है।
क्या करें अभिभावक? –कुछ जरूरी कदम-यह भी पढ़ेंDigital arrest किसे कहते हैं डिजिटल अरेस्ट
- स्वयं जागरूक बनें:
इंटरनेट और साइबर अपराध के प्रकारों को समझें। सरकार की वेबसाइट जैसे cybercrime.gov.in से जानकारी लें। - बच्चों से संवाद रखें:
बच्चों से उनकी ऑनलाइन गतिविधियों पर खुले दिल से बातचीत करें। उन्हें यह भरोसा दें कि वे किसी भी परेशानी में आपसे बात कर सकते हैं। - डिवाइस पर निगरानी रखें:
पैरेंटल कंट्रोल ऐप्स का उपयोग करें। बच्चों की उम्र के अनुसार कंटेंट सीमित करें। - गलत लिंक और संदेशों से सतर्क करें:
बच्चों को सिखाएँ कि किसी अजनबी का मैसेज, फोटो या लिंक न खोलें। - ऑनलाइन दोस्ती पर नजर रखें:
बच्चों को समझाएँ कि ऑनलाइन दुनिया में हर व्यक्ति असली नहीं होता। - आर्थिक लेन-देन पर रोक:
बच्चों को कभी भी ऑनलाइन पेमेंट या ओटीपी से जुड़ी जानकारी न दें। - जरूरत पड़ने पर तुरंत शिकायत करें:
अगर कोई संदिग्ध गतिविधि दिखे, तो तुरंत साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 या वेबसाइट पर रिपोर्ट करें।
बच्चों को क्या सिखाएँ Children and Cyber Crime
- “हर लिंक सुरक्षित नहीं होता।”
- “कोई भी ऑनलाइन दोस्त असली नहीं मानना चाहिए।”
- “अगर कोई डराए या लालच दे तो तुरंत माता-पिता को बताना चाहिए।”
- “तुम्हारी तस्वीरें या निजी बातें कभी किसी को ऑनलाइन नहीं देनी चाहिए।”
- “गेम या ऐप इंस्टॉल करने से पहले माता-पिता से पूछना चाहिए।”
सामाजिक जिम्मेदारी
साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई केवल पुलिस या सरकार की नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। स्कूलों में साइबर सुरक्षा की शिक्षा अनिवार्य की जानी चाहिए। मोहल्लों में, समाजिक मंचों पर और अभिभावक बैठकों में साइबर अपराध से जुड़ी जानकारी साझा की जानी चाहिए।
अभिभावकों को यह समझना होगा कि मोबाइल देना जिम्मेदारी से अधिक सतर्कता मांगता है। बच्चा इंटरनेट से शिक्षा ले सकता है, लेकिन गलत दिशा में गया तो वही इंटरनेट उसके लिए जाल बन सकता है।
निष्कर्ष –आज के समय में साइबर अपराध बच्चों की मासूमियत को शिकार बना रहा है। अपराधी तकनीकी नहीं, भावनात्मक हथियारों से हमला करते हैं। वे बच्चों के मनोविज्ञान को समझकर धीरे-धीरे उन्हें अपने जाल में फँसाते हैं।
इसलिए, अभिभावकों को स्वयं सीखना और बच्चों को सिखाना दोनों जरूरी है।
मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया अब जीवन का हिस्सा हैं — इन्हें रोकना संभव नहीं, पर सुरक्षित उपयोग सिखाना हमारी जिम्मेदारी है।
अगर हर माता-पिता अपने बच्चों को यह सिखा दें कि —
“ऑनलाइन दुनिया में सबसे जरूरी है सतर्कता।”
“हर क्लिक सोच-समझकर करो।”
तो निश्चित रूप से आने वाले समय में बच्चों पर साइबर अपराधियों का जाल कमजोर पड़ेगा, और हमारा समाज एक सुरक्षित डिजिटल भविष्य की ओर बढ़ेगा। Children and Cyber Crime
