कॉपीराइट अधिनियम
प्रेस कानून के अंतर्गत कॉपीराइट एक्ट एक बहुत ही महत्वपूर्ण कानून है जो कि किसी भी प्रकार की कृति रचना करने वाले को उस कृति के उपयोग करने के सन्दर्भ में अधिकार प्रदान करता है। स्वतंत्र भारत में कॉपीराइट कानून 1957 में बना था और यह 21 जनवरी 1958 से लागू किया गया। आजादी से पहले भारत में वर्ष 1914 में कॉपीराइट के संदर्भ में बनाया गया कानून लागू होता था । यह कानून ब्रिटेन में वर्ष 1911 में बनाए गए कॉपीराइट कानून पर आधारित था। इस प्रकार कॉपीराइट के संदर्भ में भारत में पहले कॉपीराइट कानून कहा जा सकता है। किंतु समय-समय पर इसमें संशोधन भी किए गए हैं जिससे इसे समयानुकूल बनाया जा सके। कॉपीराइट के क्षेत्र में समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन भी किए गए हैं और इन सम्मेलनों में जो भी निर्णय लिए गए हैं, उन सभी निर्णय को भारत ने भी स्वीकार किया है और अपने देश में कॉपीराइट कानून के अंतर्गत उन्हें शामिल किया है।
कॉपीराइट कानून का महत्व –
1. कानूनी संरक्षण – कॉपीराइट कानून लेखकों, कलाकारों और रचनात्मक कार्यों से जुड़े लोगों को उनकी मौलिक कृतियों पर कानूनी अधिकार और संरक्षण प्रदान करता है। इससे उनके कार्यों की नकल या अनुचित उपयोग रोका जाता है।
- व्यावसायिक उपयोग का अधिकार – रचनाकार अपनी कृतियों का व्यावसायिक उपयोग कर सकते हैं तथा अपनी इच्छा के अनुसार दूसरों को उपयोग की अनुमति भी दे सकते हैं। इससे उन्हें अपने कार्य का आर्थिक लाभ मिल पाता है।
- रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा – यह कानून रचनाकारों को नई रचनाएँ करने के लिए प्रेरित करता है। उनकी मौलिक कृतियों की सुरक्षा और उनके बौद्धिक श्रम का सम्मान उनके आत्मविश्वास को मजबूत बनाता है।
- चोरी और पायरेसी पर रोक – कॉपीराइट कानून बिना अनुमति कृति की नकल, वितरण या व्यावसायिक उपयोग करने से रोकता है। इससे पायरेसी, चोरी और अनुचित उपयोग जैसी समस्याएँ कम होती हैं।
- पहचान और श्रेय की रक्षा – यह कानून रचनाकार की मौलिक पहचान और श्रेय की रक्षा करता है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और साख बनी रहती है।
- सांस्कृतिक और शैक्षिक विकास में योगदान – कॉपीराइट कानून साहित्य, कला, संगीत और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सांस्कृतिक व शैक्षिक विकास के लिए सुरक्षित और प्रेरक माहौल उपलब्ध कराता है।
कॉपीराइट का अर्थ -कॉपीराइट किसी भी प्रकार के साहित्यिक कलात्मक कार्य करने के लिए उसके मूल रचनाकार को दिया गया वह अधिकार है, जिससे वह अपनी कला, साहित्य का अपने ढंग से उपयोग कर सकता है। इस प्रकार इसे हम साहित्यिक, नाटकीय, संगीतमय और कलात्मक कार्यों के रचनाकारों और सिनेमैटोग्राफ फिल्मों और ध्वनि रिकॉर्डिंग के निर्माताओं को कानून द्वारा दिए गए अधिकारों का एक समूह कह सकते हैं। यह कानून रचनाकार को उसे अपनी रचना को दोबारा प्रकाशित, करने, उसे सार्वजनिक स्तर पर जनता तक पहुँचाने, कार्य का अनुकूलन करने और अनुवाद करने का अधिकार प्रदान करता हैं। किंतु यहां पर यह बात ध्यान में रखने की है कि कॉपीराइट कानून के तहत प्रदान की गई सुरक्षा का दायरा और अवधि संरक्षित कार्य की प्रकृति के अनुसार बदलती रहती है।
कापीराइट के सन्दर्भ में एक फैसले में यह भी कहा गया है कि कॉपीराइट कोई अपरिहार्य, दैवीय या प्राकृतिक अधिकार नहीं है जो लेखकों को उनकी रचनाओं का पूर्ण स्वामित्व प्रदान करता है। बल्कि इसे जनता के बौद्धिक संवर्धन के लिए कला में गतिविधि और प्रगति को प्रोत्साहित करने के लिए बनाया गया है। कॉपीराइट का उद्देश्य ज्ञान के दायरे को बढ़ाना है, न कि उसे बाधित करना है। इसका उद्देश्य जनता को लाभ पहुँचाने के लिए लेखकों और आविष्कारकों की रचनात्मक गतिविधि को प्रेरित करना है।
कापीराइट संरक्षित कार्यों का दायरा – भारतीय कॉपीराइट कानून के दायरे में मुख्य रूप से साहित्यिक, नाटकीय संगीत, एवं कलात्मक कार्य आते हैं। इसमें सिनेमैटोग्राफ फिल्में और ध्वनि रिकॉर्डिंग भी शामिल है। इससे उनकी रक्षा करता है।
कापीराइट के अन्तर्गत प्राप्त अधिकार – जब किसी कृति के सन्दर्भ में कापीराइट की बात कही जाती है तो फिर उस व्यक्ति के पास जो अधिकार होता है उसके अन्तर्गत निम्न बातें आती हैं।
वह कापीराइट सामग्री के अन्तर्गत साहित्य, नाट्य या संगीत कार्यक्रम की –
-प्रतिलिपि बना सकता है।
– उसको सारवान रूप में दोबारा प्रकाशित कर सकता है
– उसका वह अनुवाद करके प्रस्तुत कर सकता है।
-यदि कोई साहित्यिक कृति है, तो फिर उस पर फिल्म आदि बना सकता है।
– उस पर रेडियो या अन्य प्रकार का आडियो कार्यक्रम बना सकता है।
-उसका किसी प्रकार का अनुकूलन कर सकता है।
– उसका अनुवाद करके प्रस्तुत कर सकता है।
– उस कृति को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कर सकता है।
उक्त वर्णित सब कार्य कापीराइट धारक स्वयं कर सकता है या फिर इसके लिए वह किसी को शर्तानुसार अधिकार प्रदान कर सकता है। इस प्रकार से कापीराइट धारक को न केवल उसकी कृति पर, वरन् उसके अनुकूलन, भाषान्तर अथवा अन्य प्रकार से सार प्रस्तुत करने पर भी कापीराइट दिया गया है। यदि कोई अन्य व्यक्ति इसमें किसी प्रकार से बदलाव करके इसे दूसरी कृति के तौर पर प्रस्तुत करता है तो फिर यह कापीराइट कानून का उल्लघन माना जायेगा।
कापीराइट की दावेदारी – किसी प्रकार की कोई कृति के निर्माण के साथ ही उसके निर्माता को इसके कापीराइट का स्वतः ही अधिकार मिल जाता है। इसके लिए कहीं से कोई लाइसेंस प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नही होती है। किन्तु इसके लिए कापीराइट बोर्ड भी है। इसमें कोई भी व्यक्ति अपनी कृति का पंजीकरण करा सकता है। इसके लिए उसे निर्धारित प्रपत्र में आवेदन करना होता है।
कॉपीराइट संरक्षण की अवधि – साहित्यिक, नाटकीय, संगीतमय और कलाकारी के काम लेखक का जीवनकाल तक होती है । इसके बाद उसके वारिस के पास, लेखक की जिस वर्ष मृत्यु होती है, उसके अगले साठ वर्ष तक होती है। वर्ष की गणना लेखक की मृत्यु वर्ष के बाद कैलेंडर वर्ष की आरम्भ से लिया जाता है। यदि किसी कृति के एक से अधिक लेखक है और कृति पर सभी का कापीराइट है तो फिर उस स्थिति में उन सभी के जीवनकाल तक उनके पास कापीराइट तो होती है। फिर उनमें से सबसे आखिर में जिस लेखक की मृत्यु होती है, उससे साठ वर्ष की अवधि तक उनके उत्तराधिकारी के पास कापीराइट माना जाता है। यदि कोई प्रकाषित कृति किसी लेखक द्वारा छद्म नाम से किया जाता है, तो फिर उस स्थिति मे यह कापीराइट उसके प्रकाशन के तिथि से साठ वर्ष बाद तक होगा। किन्तु जब इस बीच उसके वास्तविक लेखक का परिचय प्राप्त हो जायेगा तो फिर उस लेखक की मृत्यु के साठ वर्ष बाद तक उसके परिवार के पास कापीराइट होता है। सरकारी और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रकाषन में यह अवधि उनके प्रकाषन के साठ वर्ष बाद तक होता है। इसी प्रकार से अनाम और छद्मनाम से लिखी गई रचनाएँ, सिनेमैटोग्राफ, फिल्में, ध्वनि रिकॉर्ड, सरकारी काम, सार्वजनिक उपक्रम, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के प्रशासन ,फोटो के सन्दर्भ में उसके प्रकाषन के बाद साठ वर्ष तक की अवधि तक होता है। इन सब मामलों में अवधि की गणना प्रकाषित वर्ष के बाद आरम्भ होने वाले कैलेंडर वर्ष से की जाती है। यदि किसी रचना का प्रकाशन लेखक की मृत्यु से पहले हो गयी है तो फिर उस स्थिति में उसके प्रकाशन तिथि से 60 वर्ष तक उसके वारिस के पास होती है।
विदेशी कार्य – भारत में कॉपीराइट के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय कॉपीराइट कानून के अंतर्गत आवश्यक प्रावधान किए गए हैं । इसके अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय कॉपीराइट आदेश में उल्लिखित देशों के कार्यों के कॉपीराइट भारत में उसे प्रकार से सुरक्षित हैं, जैसे कि वे कार्य भारतीय कार्य हैं। कार्य में कॉपीराइट की अवधि उस अवधि के बराबर ही होगी क्योंकि उसके अपने मूल देश में दिया गया है। media law
कॉपीराइट कानून का स्वामित्व – सामान्य तौर पर किसी भी प्रकार के रचना होने पर उसका पहला मालिक उस रचना के रचयिता को माना जाता है। कॉपीराइट अधिनियम 1957 में यही प्रावधान किया गया है। इसके लिए उसे किसी भी प्रकार की कोई प्रमाण लेने की आवश्यकता नहीं होती है। किन्तु यह कार्य किसी प्रकार की सेवा-अनुबंध या प्रशिक्षुता के तहत लेखक के रोजगार के दौरान किए गए कार्यों के लिए उस कार्य को कराने वाले नियोक्ता को ही कॉपीराइट का पहला मालिक माना जाता है। किन्तु किसी भी विपरीत समझौते की स्थिति में यह उसी के अनुसार होगा। जब किसी भी प्रकार के रचना के दो या दो से अधिक रचयिता होते हैं ,उसे स्थिति में यह माना जाता है कि दो या दो से अधिक लेखकों के सहयोग से निर्मित कोई कार्य, जिसमें एक लेखक का योगदान दूसरे लेखक या लेखकों के योगदान से अलग नहीं है। संयुक्त लेखकत्व की स्थिति में कॉपीराइट का अधिकार सभी लेखकों के पास होता है। इसी प्रकार से अन्य प्रकार की कृति के कई निर्माता होने की स्थिति में उसका कापीराइट उन सबके पास होता है।
कॉपीराइट अधिनियम 1957 की धारा 19 भारत में कॉपीराइट के असाइनमेंट के तरीके निर्धारित करती है। असाइनमेंट केवल लिखित रूप में हो सकता है और इसमें कार्य, असाइनमेंट की अवधि और वह क्षेत्र निर्दिष्ट होना चाहिए जिसके लिए असाइनमेंट किया जा रहा है। यदि असाइनमेंट की अवधि समझौते में निर्दिष्ट नहीं है, तो इसे पांच साल माना जाएगा । इसी प्रकार से यदि असाइनमेंट में कापीराईट की क्षेत्रीय सीमा निर्दिष्ट नहीं है, तो इसे भारत के क्षेत्रों तक सीमित माना जाएगा। इस संदर्भ में न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार यह कहा गया है कि जिन मामलों में असाइनमेंट की अवधि निर्दिष्ट नहीं है, अवधि पांच साल मानी जाएगी और कॉपीराइट पांच साल बाद लेखक को वापस कर दिया जाएगा।
कापीराइट के सन्दर्भ में कुछ अन्य स्थितियां
यदि एक रचयिता ने किसी समाचारपत्र पत्रिका या किसी अन्य स्थान पर उसके मालिक के अधीन कार्य करते हुए प्रकाशित हुई है तो फिर वही उसका पहला मालिक होता है, किन्तु जब यह प्रकाशन उस पत्रिका तक ही सीमित रहता है तो फिर अन्य सम्बन्ध में उस लेख आदि का स्वामित्व लेखक के पास ही रहता है।
जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी प्रकार का पारिश्रमिक दे करके फोटो, चित्र, फिल्म वीडियो आदि का निर्माण कराया जाता है, तो फिर उस सन्दर्भ में कापीराइट उस व्यक्ति का ही होता है जो पारिश्रमिक दे करके उसे तैयार कराता है।
जब किसी प्रकार के अनुबन्ध के अन्तर्गत किसी व्यक्ति द्वारा नियोक्ता के लिए तैयार किये गये कृति का अगर किसी अन्य कोई करार नही किया गया है तो फिर उसका स्वामित्व उसी अर्थात् नियोक्ता के पास होता है।
किसी भी प्रकार की सरकारी कृति भले की किसी अन्य द्वारा तैयार किया गया हो, किन्तु किसी प्रकार का और कोई अलग समझौता करार नही हुआ होता है, तो फिर उस स्थिति में सरकार उस कृति का प्रथम स्वामी होती है।
-अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रकाशन में प्रतिप्यिधिकार उन संगठनों के पास ही रहता है।
भारत में कॉपीराइट कानून का अपवाद – कॉपीराइट अधिनियम में कॉल अधिकार लेखक को दिया गया है उसे संदर्भ में उसके कुछ अपवाद भी हैं जिससे कि अन्य लोग उसका एक निश्चित दायरे के अंतर्गत गैर व्यावसायिक तरीके से उपयोग कर सके इसके अंतर्गत यह कहा गया है कि कॉपीराइट अधिनियम 1957 कुछ कार्यों को कॉपीराइट उल्लंघन के दायरे से छूट देता है। भारत में कॉपीराइट अपवादों के प्रति एक अलग दृष्टिकोण का पालन करता है। कापीराइट के सन्दर्भ में भारत में अपनाया गया निष्पक्ष व्यवहार, दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से निम्नलिखित उद्देश्यों तक ही सीमित है। इसे कापीराइट कानून का अपवाद कह सकते हैं।
किसी प्रकार की कृति का अनुसंधान, व्यक्तिगत् अध्ययन, समसामयिक घटनाओं की रिपोर्ट देने के सन्दर्भ में समाचारपत्र, पत्रिका, रेडियो, टीवी, फिल्म फोटो आदि रूप में प्रकाशित रिपोर्ट का उपयोग करना।
-अदालती कार्यवाही के लिए या फिर अदालतों की रिपोर्ट देने के लिए किसी कृति का पुनर्रूत्पादन कर उसे प्रस्तुत करना।
-किसी कानून के अन्तर्गत बनाये गयी या दी गयी प्रमाणित प्रति का पुर्नउत्पादन करना।
-किसी प्रकाशित कृति का किसी यथोचित उद्धरण का लोगों के बीच प्रस्तुति।
किसी प्रकाशित कृति के समीक्षा के दौरान उसके किसी अंष का यथोचित एक सीमा तक उद्धरण देना।
-सरकार द्वारा नियुक्त किसी प्रकार के आयोग समिति परिषद् अथवा किसी अन्य प्रकार की इकाई द्वारा प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट एवं न्यायालय के फैसले आदि का प्रकाशन कापीराइट कानून का उल्लंघन नही है किन्तु जब इस प्रकार के प्रकाशन पर सरकार द्वारा किसी तरह की रोक लगा दी गयी रहती है तो फिर उस स्थिति में ऐसे कार्य इस कानून के उल्लंघन माना जाता है।
-शिक्षण के दौरान शिक्षकों एवं विद्याथियों द्वारा किसी कृति का पुर्नउत्पादन करना या फिर इसे शैक्षणिक दृष्टि से लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना।
-सार्वजनिक भाषणों की रिपोर्ट को प्रस्तुत करना।
किसी पुस्तक के उपलब्ध न होने पर सार्वजनिक प्रस्तुकालयों के प्रभारी या अध्यक्ष द्वारा लोगों के उपयोग हेतु इसकी अधिकाधिक तीन प्रति बना करके पुस्तकालय में रखना।
-विभिन्न समसामयिक विषयों पर किसी व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत लेख यदि उस व्यक्ति द्वारा स्पष्ट तौर पर अपने लिए आरक्षित नही किया गया है तो फिर उस स्थिति में उसका पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन ।
-सरकारी राजपत्र में प्रकाशित किसी कोई विषय एवं उसके साथ दिये गये टिप्पणी आदि का प्रकाशन।
-विधान सभा, विधान परिषद् द्वारा पारित कानून की प्रतिलिपि तैयार करना या फिर उसका प्रकाशन।
कापीराइट में उचित उपयोग की अनुमति दी गयी है। किन्तु उसे स्पष्ट परिभाषित नही किया गया है। इस कारण से जब कोई मामला विवादपूर्ण होता है और वह अदालत में जाता है तो फिर ऐसी स्थिति में न्यायाधीध ही उसके समुचित उपयोग के दावे के बारे में निर्णय देते है। कॉपीराइट अधिनियम में कहीं भी निष्पक्ष व्यवहार शब्द को स्पष्ट तौर पर परिभाषित नहीं किया गया है। निष्पक्ष व्यवहार की अवधारणा पर विभिन्न न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों में चर्चा की गई है। इस विषय पर समय समय पर ऐसे फैसले दिये गये है जो कि आपस में विरोधाभाषी है।
कॉपीराइट उल्लंघन के विरुद्ध उपलब्ध उपचार – कॉपीराइट अधिनियम इस कानून का उल्लंधन होने पर उपचार की व्यवस्था की गयी है। इसमें प्रशासनिक उपचार, नागरिक उपचार और आपराधिक उपचार का प्रावधान शामिल है। कानून के तहत प्रदान किए गए प्रशासनिक उपचारों में सीमा शुल्क अधिकारियों द्वारा उल्लंघनकारी वस्तुओं को जप्त किया जा सकता है। नागरिक उपचार में प्रदान किए गए उपायों में निषेधाज्ञा, हर्जाना और मुनाफे का लेखा-जोखा शामिल हैं। इसी प्रकार से अपराधिक उपचार कानून के तहत प्रदान किए गए हैं । इसमें कॉपीराइट उल्लंघन के खिलाफ प्रदान किए गए उपायों में कारावास या जुर्माना अथवा दोनो प्रकार के सजा दिया जाना शामिल हैं।
अधिकार क्षेत्र – मुकदमा दायर करने का स्थान के सन्दर्भ में कहा गया है कि यदि कोई कार्रवाई का कारण पूरी तरह या आंशिक रूप से उस स्थान पर उत्पन्न हुआ है, जहॉं पर वादी रहता है या व्यवसाय कर रहा है तो ऐसे स्थान पर ही मुकदमा दायर किया जाना चाहिए। कोई भी वादी किसी प्रतिवादी को इस आड़ में दूर स्थान पर नहीं खींच सकता है कि वह वहां भी व्यवसाय करता है।

