पृष्ठभूमि
First Press Commission स्वतंत्रता के बाद भारत में प्रेस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई थी। लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए मीडिया की स्वतंत्रता और जवाबदेही जरूरी थी। सरकार चाहती थी कि प्रेस समाज में सकारात्मक भूमिका निभाए और सरकार पर निगरानी रखे। इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने 23 सितंबर 1952 को प्रथम प्रेस आयोग का गठन किया। यह आयोग प्रेस की स्थिति, उसकी समस्याओं और उसकी जिम्मेदारियों का अध्ययन करने के लिए बनाया गया।
संरचना (Structure)
प्रथम प्रेस आयोग के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस जी.एस. राजाध्यक्ष थे। इसमें डॉ. ज़ाकिर हुसैन, डॉ. वी.के.आर.वी. राव, पी.एच. पटवर्धन, चेलापति राव और आचार्य नरेंद्र देव जैसे प्रमुख सदस्य थे। आयोग ने दो साल से अधिक काम करके 14 जुलाई 1954 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट प्रेस की स्वतंत्रता, सामाजिक उत्तरदायित्व, पत्रकारों की स्थिति और प्रेस उद्योग की संरचना पर केंद्रित थी।
द्वितीय प्रेस आयोग
First Press Commission मुख्य उद्देश्य
प्रथम प्रेस आयोग का सबसे बड़ा उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना था। इसका मकसद था प्रेस को राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक दबाव से मुक्त करना।इस आयोग का मुख्य उद्देश्य भारतीय प्रेस की स्थिति का समग्र अध्ययन करना और उसके विकास, स्वतंत्रता तथा उत्तरदायित्व के बीच संतुलन स्थापित करने के उपाय सुझाना था।
इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे —
- प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बनाते हुए उसकी स्वतंत्रता को संवैधानिक और संस्थागत रूप से सुरक्षित करना।
- भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखना।
- प्रेस के माध्यम से जनमत निर्माण की भूमिका को सुदृढ़ करना।
- पत्रकारों की कार्यस्थितियों, प्रशिक्षण और नैतिक मानकों का मूल्यांकन करना।
- सरकार और प्रेस के संबंधों को पारदर्शी व लोकतांत्रिक बनाना।
प्रथम प्रेस आयोग के दिए गए सिफारिश
आयोग ने प्रेस की जिम्मेदारियों को परिभाषित किया ताकि वह समाज और लोकतंत्र के प्रति अधिक उत्तरदायी बने। आयोग ने समाचार पत्रों की मालिकाना संरचना, विज्ञापन नीति, एकाधिकार और मुनाफाखोरी की जांच की। पत्रकारों की नौकरी की सुरक्षा, वेतनमान, प्रशिक्षण और पेशेवर मानकों पर भी आयोग ने सुझाव दिए। प्रेस और सरकार के संबंधों को संतुलित करने के लिए भी आयोग ने उपाय सुझाए। इसके प्रमुख सिफारिश निम्न हैं
- प्रेस परिषद की स्थापना
Establishment of Press Council of India - समाचार पत्रों के पंजीकरण हेतु रजिस्ट्रार की नियुक्ति (RNI) की सिफारिश
Recommendation for Appointment of Registrar of Newspapers for India (RNI) - पत्रकारों के वेतन व सेवा-शर्तों हेतु विधायी सिफारिश (वर्किंग जर्नलिस्ट अधिनियम)
Legislative Recommendation for Wages and Service Conditions of Journalists (Working Journalists Act) - प्रेस कंसल्टेटिव कमिटी की स्थापना
Formation of Press Consultative Committee - प्राइस-पेज स्केड्यूल लागू करने की सिफारिश
Recommendation to Implement Price-Page Schedule - एकाधिकार विरोधी सिफारिशें
Anti-Monopoly Recommendations - प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI) को सार्वजनिक निगम में बदलने की सिफारिश
Recommendation to Convert PTI into a Public Corporation - पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की सिफारिश
Recommendation for Establishment of Journalism Training Institutes - पीली पत्रकारिता पर रोक लगाने की सिफारिश
Recommendation to Curb Yellow Journalism - आर्थिक पारदर्शिता और निष्पक्ष विज्ञापन नीति की सिफारिश
Recommendation for Financial Transparency and Fair Advertisement Policy - प्रेस आयोग की ऐतिहासिक उपलब्धियाँ
Historical Achievements of the First Press Commission
1. प्रेस परिषद (Press Council) की स्थापना
प्रथम प्रेस आयोग ने कहा कि प्रेस के उच्च मानदंड बनाए रखने के लिए एक स्वायत्त संस्था जरूरी है। यह संस्था प्रेस को नियंत्रित नहीं बल्कि मार्गदर्शन और नियमन करने के लिए होनी चाहिए। यह संस्था गलत पत्रकारिता की आलोचना कर सके और प्रेस की स्वतंत्रता को भी बचा सके। आयोग की इस सिफारिश के आधार पर 1966 में प्रेस परिषद (Press Council of India) की स्थापना हुई। इस परिषद ने पत्रकारिता के नैतिक मानदंड तय किए और प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2. Registrar of Newspapers for India (RNI)
आयोग ने देशभर के समाचार पत्रों का पंजीकरण और डेटा संग्रह करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय की सिफारिश की। इसका उद्देश्य था कि अखबारों का रिकॉर्ड पारदर्शी रहे और फर्जी या काल्पनिक अखबारों पर रोक लगे। इस सिफारिश के आधार पर 1 जुलाई 1956 को RNI की स्थापना हुई। इससे अखबारों के बारे में सही जानकारी मिलनी शुरू हुई और पंजीकरण की प्रक्रिया व्यवस्थित हो गई।
3. Working Journalists Act की अनुशंसा
आयोग ने पत्रकारों के लिए न्यूनतम वेतन, सुरक्षित सेवा शर्तें और अच्छे कामकाजी हालात की सिफारिश की। उसने कहा कि पत्रकारों को श्रमिकों की तरह कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप 1955 में Working Journalists and Other Newspaper Employees Act पारित हुआ। इससे पत्रकारों को वेतन, छुट्टी, सेवा सुरक्षा और अन्य सुविधाएं सुनिश्चित हुईं। First Press Commission
4. प्रेस कंसल्टेटिव कमिटी
आयोग ने सरकार और प्रेस के बीच संवाद स्थापित करने के लिए एक स्थायी समिति गठित करने की सिफारिश की। इससे सरकार और प्रेस के बीच रिश्ते बेहतर बने और पारदर्शिता बढ़ी। इस सिफारिश के बाद 1962 में प्रेस कंसल्टेटिव कमिटी की स्थापना हुई। इसने पत्रकारों को सरकार के निर्णयों पर राय देने का अवसर दिया।
5. प्राइस-पेज स्केड्यूल लागू करना
आयोग ने कहा कि छोटे समाचार पत्रों को बड़े अखबारों से प्रतिस्पर्धा में बचाना जरूरी है। इसके लिए मूल्य और पृष्ठ संख्या के आधार पर विज्ञापन वितरण की व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की। इससे क्षेत्रीय और भाषाई अखबारों को संरक्षण मिला और छोटे अखबारों की आय स्थिर हुई।
6. एकाधिकार विरोधी सिफारिशें
प्रेस आयोग ने कहा कि कुछ मीडिया घरानों के हाथों में प्रेस का नियंत्रण लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। उसने Newspaper Financial Corporation की स्थापना, विदेशी निवेश पर नियंत्रण और स्वदेशीकरण (Indigenisation) की नीति सुझाई। हालांकि यह प्रस्ताव लोकसभा में प्रस्तुत हुआ लेकिन कानूनी रूप से पारित नहीं हो सका। फिर भी इसने आगे के वर्षों में मीडिया नीति को प्रभावित किया। First Press Commission
7. PTI को सार्वजनिक निगम में बदलने की सिफारिश
प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI) जैसी समाचार एजेंसियों की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आयोग ने उसे Public Corporation में बदलने की सिफारिश की। इसका मकसद था कि एजेंसियां किसी निजी या राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करें।
8. पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थान की सिफारिश
आयोग ने पत्रकारों के लिए पेशेवर प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाने की सिफारिश की। उसने राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना का सुझाव दिया। इस सिफारिश के बाद कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों में पत्रकारिता पाठ्यक्रम शुरू हुए। इससे पत्रकारों के कौशल और नैतिकता में सुधार हुआ।
9. Yellow Journalism पर रोक
आयोग ने कहा कि झूठी, सनसनीखेज और गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाती है। उसने आचार संहिता लागू करने की सिफारिश की ताकि इस तरह की पत्रकारिता पर रोक लगे। बाद में प्रेस परिषद के माध्यम से आचार संहिता लागू की गई। इससे पत्रकारिता में जिम्मेदारी बढ़ी।
10. आर्थिक पारदर्शिता और निष्पक्ष विज्ञापन नीति
आयोग ने सरकारी विज्ञापनों के राजनीतिक दुरुपयोग को रोकने के लिए पारदर्शी विज्ञापन नीति की सिफारिश की। इससे सरकार प्रेस पर दबाव नहीं बना सकेगी और विज्ञापन निष्पक्ष रूप से सभी को मिलेंगे। इससे छोटे और क्षेत्रीय अखबारों को भी लाभ हुआ।
प्रेस आयोग की ऐतिहासिक उपलब्धियाँ
प्रथम प्रेस आयोग की कई सिफ़ारिशें बाद में लागू हुईं। 1966 में प्रेस परिषद (PCI) की स्थापना हुई। 1956 में RNI लागू हुआ। 1955 में Working Journalists Act बना। 1962 में Press Consultative Committee बनी। पत्रकारिता शिक्षा को बढ़ावा मिला और सरकार व प्रेस के बीच संवाद की स्थायी व्यवस्था बनी। इन सिफ़ारिशों ने भारतीय प्रेस को नई दिशा दी।
प्रभाव
प्रथम प्रेस आयोग की रिपोर्ट ने भारतीय प्रेस के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाई। इससे प्रेस को संस्थागत ढांचा मिला। पत्रकारों के अधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता, और जनता के प्रति जिम्मेदारी जैसे मुद्दे मजबूत हुए। प्रेस के पंजीकरण, आचार संहिता, विज्ञापन नीति और प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में सुधार हुआ। First Press Commission
निष्कर्ष
भारत का प्रथम प्रेस आयोग प्रेस इतिहास में मील का पत्थर था। इसने पत्रकारिता को पेशेवर दिशा दी और प्रेस की स्वतंत्रता तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन स्थापित किया। आयोग की अनुशंसाओं के कारण भारत में एक लोकतांत्रिक, उत्तरदायी और प्रशिक्षित प्रेस की नींव पड़ी। प्रेस को सरकार पर निगरानी रखने, जनता की समस्याओं को उजागर करने और लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा मिली। First Press Commission
