Framing Theory of Mass Media फ्रेमिंग सिद्धांत
(अर्थ, अवधारणा, विशेषताएँ, गुण-दोष, उदाहरण, और वर्तमान प्रासंगिकता के साथ)
1. प्रस्तावना (Introduction)
समाचार माध्यम हमारे समाज की घटनाओं को केवल प्रस्तुत नहीं करते, बल्कि उन्हें एक विशेष दृष्टिकोण (Perspective) से दिखाते हैं। उदाहरण के लिए — जब किसी समाचार चैनल पर किसानों के आंदोलन की रिपोर्ट दिखाई जाती है, तो एक चैनल उसे “अराजकता” कहता है जबकि दूसरा चैनल उसे “लोकतांत्रिक विरोध” कहता है।
दोनों घटनाएँ एक ही हैं, लेकिन उनका फ्रेम (Frame) अलग है। यही फ्रेमिंग सिद्धांत का सार है। फ्रेमिंग सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि मीडिया केवल यह तय नहीं करता कि कौन-सी खबर महत्वपूर्ण है (जैसा Agenda Setting सिद्धांत कहता है), बल्कि यह भी तय करता है कि उसे कैसे प्रस्तुत किया जाए ताकि दर्शक किसी विशेष मानसिक दिशा में सोचें। आज के दौर में जब हर व्यक्ति सोशल मीडिया के माध्यम से सूचना का उपभोक्ता और उत्पादक दोनों बन गया है, फ्रेमिंग की शक्ति पहले से अधिक प्रभावशाली हो चुकी है।
2. अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition)
‘Frame’ का अर्थ होता है – किसी चीज़ को देखने का ढांचा या नजरिया। जैसे एक तस्वीर का फ्रेम उस तस्वीर की सीमा तय करता है, वैसे ही मीडिया का फ्रेम तय करता है कि हम किसी घटना को किस सीमा में, किस दृष्टि से देखेंगे। फ्रेमिंग का मतलब है किसी सामाजिक या राजनीतिक वास्तविकता के कुछ हिस्सों को प्रमुखता देना, कुछ को नज़रअंदाज़ करना, और इस प्रकार दर्शकों के सामने एक “निर्दिष्ट अर्थ” प्रस्तुत करना। Cultivation theory of media
सरल शब्दों में:
“फ्रेमिंग वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मीडिया किसी मुद्दे या घटना को एक विशेष दृष्टिकोण में रखकर जनता की सोच को प्रभावित करता है।”
प्रमुख परिभाषाएँ:
- Erving Goffman (1974):
“फ्रेम वे मानसिक ढाँचे हैं जिनसे लोग वास्तविकता को समझते और अर्थ देते हैं।” यानी हर व्यक्ति समाज और मीडिया द्वारा निर्मित फ्रेम्स के माध्यम से ही दुनिया को देखता है। - Robert Entman (1993):
“Framing का अर्थ है — किसी वास्तविकता के कुछ अंशों का चयन कर उन्हें इस प्रकार उभारना कि एक विशेष व्याख्या या निष्कर्ष प्रबल हो।”
अर्थात, मीडिया यह नहीं कहता कि आप क्या सोचें, बल्कि यह तय करता है कि आप कैसे सोचें।
3. अवधारणा (Concept of Framing Theory)
फ्रेमिंग सिद्धांत का मूल विचार यह है कि मीडिया वास्तविकता को सीधे नहीं दिखाता, बल्कि वह वास्तविकता को फ्रेम करता है — अर्थात अपने विचारों, नीतियों, भाषा, और दृश्य शैली के माध्यम से उसे एक विशेष रूप देता है। इस प्रक्रिया में समाचार के चयन, शीर्षक (headline), फोटो, रंग, हावभाव, और प्रस्तुति शैली — सब मिलकर दर्शक के मन में एक विशेष अर्थ निर्मित करते हैं। इसीलिए एक ही घटना अलग-अलग चैनलों पर अलग-अलग भावना उत्पन्न कर सकती है।
उदाहरण:
यदि कोई चैनल यह दिखाए — “सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की” तो यह कठोर शासन का संकेत देता है,
लेकिन यदि वही घटना ऐसे कही जाए — “सरकार ने शांति बनाए रखने के लिए कदम उठाए” तो यह सकारात्मक और तर्कसंगत प्रतीत होती है। दोनों वाक्य सत्य हैं, पर “फ्रेम” बदलते ही अर्थ और भावनाएँ बदल जाती हैं — यही इस सिद्धांत की शक्ति है।
4. पृष्ठभूमि (Background and Origin)
फ्रेमिंग सिद्धांत की नींव समाजशास्त्री अर्विंग गॉफमैन (Erving Goffman) ने 1974 में अपनी पुस्तक “Frame Analysis” में रखी। उन्होंने कहा कि लोग वास्तविकता को सीधे नहीं, बल्कि “फ्रेम्स” के माध्यम से देखते हैं — जो समाज, संस्कृति और अनुभवों से निर्मित होते हैं। बाद में मीडिया अध्ययन में इस विचार को विस्तारित किया गया।
- Todd Gitlin (1980) ने दिखाया कि मीडिया कैसे राजनीतिक आंदोलनों (जैसे अमेरिका के छात्र आंदोलनों) को इस तरह फ्रेम करता है कि जनता उन्हें या तो “उग्र” या “देशभक्त” मानती है।
- Robert Entman (1993) ने इस सिद्धांत को औपचारिक रूप दिया और कहा कि “फ्रेमिंग वह चयन प्रक्रिया है जिसके द्वारा मीडिया किसी घटना को खास दिशा में परिभाषित करता है।”
इस प्रकार फ्रेमिंग सिद्धांत एजेंडा सेटिंग सिद्धांत का विस्तार माना जाता है — जहाँ एजेंडा सेटिंग बताता है कि “क्या सोचना है,” वहीं फ्रेमिंग बताता है “कैसे सोचना है।”
5. फ्रेमिंग की प्रक्रिया (Process of Framing Theory of Mass Media )
फ्रेमिंग कई चरणों में होती है, जिन्हें हम निम्न रूप से समझ सकते हैं —
- सूचना चयन (Selection of Information):
मीडिया पहले यह तय करता है कि कौन-सी घटनाएँ कवरेज के योग्य हैं। उदाहरण के लिए, किसी विरोध प्रदर्शन को दिखाया जाए या नहीं — यह पहला फ्रेमिंग चरण है। - प्रस्तुति (Presentation):
फिर तय किया जाता है कि घटना को किस रूप में दिखाया जाएगा — कौन-से शब्द, फोटो या वीडियो इस्तेमाल होंगे। - अर्थ निर्धारण (Interpretation):
फ्रेम के अनुसार समाचार का अर्थ गढ़ा जाता है — “देशद्रोह” या “लोकतंत्र की मांग” जैसी व्याख्या। - मूल्यांकन (Evaluation):
फ्रेम के अनुसार दर्शक निर्णय लेते हैं कि यह घटना सही है या गलत। - दर्शक की प्रतिक्रिया (Audience Response):
अंत में दर्शक उस फ्रेम को आत्मसात कर अपनी राय बनाते हैं।
6. फ्रेमिंग सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएँ (Key Characteristics Framing Theory of Mass Media )
- चयन और बहिष्करण (Selection & Exclusion): मीडिया कुछ तथ्यों को दिखाता है और कुछ को छिपा देता है। यही चयन सार्वजनिक धारणा को गढ़ता है।
- भाषाई निर्माण (Language Framing): शब्दों का चयन अर्थ बदल देता है — “उग्र भीड़” और “जाग्रत नागरिक” दोनों एक ही समूह को अलग-अलग रूप देते हैं।
- प्रमुखता (Salience): मीडिया किसी पहलू को इतना प्रमुख बना देता है कि दर्शक उसी पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- प्रतीकात्मक प्रस्तुति (Symbolic Representation):
फोटो, रंग, संगीत, ग्राफिक और आवाज़ — ये सब फ्रेम को भावनात्मक बनाते हैं। - मानसिक प्रभाव (Cognitive Effect): दर्शक फ्रेम को देखकर वास्तविकता का अर्थ उसी दृष्टिकोण से निकालते हैं।
- पुनरावृत्ति (Repetition): जब एक फ्रेम बार-बार दोहराया जाता है, तो वह समाज की “सामान्य धारणा” बन जाता है।
7. फ्रेमिंग के प्रकार (Types of Framing Theory of Mass Media )
- एपिसोडिक फ्रेम (Episodic Frame): किसी एक घटना को केंद्र में रखता है, जैसे – “आज एक महिला पर अत्याचार हुआ।” यह सहानुभूति उत्पन्न करता है लेकिन समस्या की जड़ों को नहीं दिखाता।
- थीमैटिक फ्रेम (Thematic Frame): घटना को व्यापक सामाजिक संदर्भ में रखता है, जैसे – “देश में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों के पीछे कौन-से सामाजिक कारण हैं?”
- संघर्ष फ्रेम (Conflict Frame): राजनीतिक बहस या टकराव को दिखाने के लिए – जैसे “सरकार बनाम विपक्ष” – का प्रयोग किया जाता है।
- मानवीय रुचि फ्रेम (Human Interest Frame): भावनात्मक प्रस्तुति – जैसे किसी पीड़ित व्यक्ति की व्यक्तिगत कहानी – जिससे दर्शक जुड़ाव महसूस करते हैं।
- आर्थिक परिणाम फ्रेम (Economic Frame): किसी नीति या घटना के आर्थिक प्रभावों पर जोर देना – जैसे “नई नीति से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे या घटेंगे।”
8. फ्रेमिंग सिद्धांत के गुण (Merits / Strengths of Framing Theory of Mass Media )
- मीडिया प्रभाव की गहरी समझ: यह सिद्धांत दिखाता है कि मीडिया सिर्फ सूचना का माध्यम नहीं बल्कि समाज के विचार और धारणा को गढ़ने की शक्ति रखता है।
- राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का विश्लेषण: फ्रेमिंग से समझ आता है कि चुनाव अभियानों में नेता, दल और मीडिया जनता को प्रभावित करने के लिए किस तरह “कथानक” तैयार करते हैं।
- भाषा और छवि की शक्ति: शब्द और छवि दोनों समाज में प्रतीकात्मक अर्थ पैदा करते हैं — यह सिद्धांत इस शक्ति को उजागर करता है।
- मीडिया नैतिकता की चेतावनी: यह सिद्धांत बताता है कि मीडिया को जिम्मेदारी से फ्रेम चुनना चाहिए क्योंकि गलत फ्रेम समाज में भ्रम और विभाजन पैदा कर सकता है।
- अनुसंधान और शिक्षा में उपयोग: यह सिद्धांत पत्रकारिता, जनसंचार, और राजनीतिक विज्ञान के शोध में गहराई से उपयोग किया जाता है।
9. फ्रेमिंग सिद्धांत की सीमाएँ (Demerits / Criticisms of Framing Theory of Mass Media )
- विषय की अस्पष्टता: यह स्पष्ट नहीं किया जा सकता कि कोई फ्रेम जानबूझकर बनाया गया है या अनजाने में।
- दर्शक की विविध व्याख्या: हर दर्शक अपने अनुभव, संस्कृति और विचारधारा के अनुसार फ्रेम को अलग ढंग से समझता है।
- मापन की कठिनाई: यह तय करना मुश्किल है कि किसी फ्रेम ने समाज पर कितना प्रभाव डाला।
- पूर्वाग्रह का खतरा: मीडिया अपने राजनीतिक या व्यावसायिक हित में फ्रेम को पक्षपाती बना सकता है।
- अति-विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति: कुछ आलोचकों के अनुसार, यह सिद्धांत व्यवहारिक पत्रकारिता से अधिक अकादमिक है।
10. उदाहरण (Examples of Framing in Practice) Framing Theory of Mass Media
- राजनीतिक फ्रेम: एक ही नीति को दो अखबार अलग रूप में दिखाते हैं –
- “सरकार ने गरीबों के लिए राहत दी।”
- “सरकार ने करदाताओं पर नया बोझ डाला।”
दोनों में दृष्टिकोण अलग है।
- सामाजिक आंदोलन: मीडिया “किसान आंदोलन” को कभी “देश की रीढ़ का संघर्ष” और कभी “सड़क जाम करने वाला आंदोलन” कहकर फ्रेम करता है।
- अंतरराष्ट्रीय फ्रेमिंग: “अमेरिका ने आतंक के खिलाफ कदम उठाया” बनाम “अमेरिका ने दूसरे देश पर हमला किया।”
- कोविड-19 कवरेज: एक चैनल कहता है “सरकार ने उत्कृष्ट प्रबंधन किया,” दूसरा कहता है “सरकारी लापरवाही से मौतें बढ़ीं।”
- डिजिटल मीडिया: ट्विटर पर ट्रेंड #JusticeForX या #BoycottY स्वयं एक फ्रेम बन जाते हैं जो जनमत को दिशा देते हैं।
11. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता (Present Relevance)
आज जब सूचना का प्रवाह अत्यधिक तेज़ और व्यापक है, फ्रेमिंग सिद्धांत पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
- सोशल मीडिया फ्रेमिंग: आज हर उपयोगकर्ता एक “माइक्रो-फ्रेमर” है। एक पोस्ट या ट्वीट से लाखों लोग प्रभावित होते हैं।
- राजनीतिक ध्रुवीकरण: मीडिया चैनल अलग-अलग विचारधाराओं के फ्रेम में समाचार पेश कर जनता को विभाजित कर देते हैं।
- एल्गोरिदमिक फ्रेमिंग (Algorithmic Framing): आज गूगल, यूट्यूब और इंस्टाग्राम के एल्गोरिद्म यह तय करते हैं कि आपको कौन-सी खबर दिखेगी।
यह नया “डिजिटल फ्रेमिंग युग” है। - ब्रांडिंग और विज्ञापन: कंपनियाँ अपने उत्पादों को सकारात्मक फ्रेम में दिखाती हैं – “सिर्फ साबुन नहीं, आत्मविश्वास की पहचान।”
- मीडिया साक्षरता की आवश्यकता: अब नागरिकों के लिए यह समझना जरूरी है कि मीडिया क्या दिखा रहा है और किस दृष्टिकोण से दिखा रहा है।
12. निष्कर्ष (Conclusion)
फ्रेमिंग सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि मीडिया वास्तविकता को पुनर्निर्मित (reconstruct) करता है — वह घटनाओं का चयन कर उन्हें अर्थ देता है। यह सिद्धांत आज के “पोस्ट-ट्रुथ” युग में अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ शब्द और छवियाँ सत्य से अधिक शक्तिशाली हो चुकी हैं। इसलिए एक जागरूक नागरिक को केवल यह नहीं पूछना चाहिए कि “क्या कहा गया?” बल्कि यह भी सोचना चाहिए कि “किस नजरिए से कहा गया?” फ्रेमिंग सिद्धांत का सार यही है — “मीडिया हमारे विचार नहीं बनाता, लेकिन यह तय करता है कि हम उन्हें किस दिशा में सोचें।” Framing Theory of Mass Media
13. स्रोत (References)
- Goffman, E. (1974). Frame Analysis. Harvard University Press.
- Entman, R. M. (1993). Framing: Toward Clarification of a Fractured Paradigm. Journal of Communication.
- Gitlin, T. (1980). The Whole World Is Watching. University of California Press.
- Scheufele, D. & Tewksbury, D. (2007). Framing, Agenda Setting, and Priming. Journal of Communication.
- McQuail, D. (2010). Mass Communication Theory. Sage Publications.
- IGNOU MJMC Course, Unit on Media Effects (Framing Theory).
- Oxford Internet Institute Reports (2022) – Digital Media and Cognitive Framing.