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      Home Media Study Material Communication Theory & Models

      Individual Difference Theory

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      1 month ago
      in Communication Theory & Models, Media Study Material
      0

      (Individual Difference Theory) व्यक्तिगत भिन्नता सिद्धांत और मीडिया-संचार में इसका महत्व

      1. परिचय (Introduction)

      मानव समाज में कोई भी दो व्यक्ति बिल्कुल समान नहीं होते। हर व्यक्ति की सोच, भावनाएँ, अनुभव, शिक्षा, बुद्धि, और दृष्टिकोण अलग होते हैं। इसी प्राकृतिक विविधता को वैज्ञानिक दृष्टि से समझाने वाला सिद्धांत है — Individual Difference Theory अर्थात व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत। यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुभव, बौद्धिक स्तर, मूल्य-व्यवस्था, और सामाजिक परिवेश के आधार पर किसी भी संदेश या सूचना को अलग ढंग से ग्रहण करता है। संचार अध्ययन में यह सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बताता है कि एक ही मीडिया संदेश सभी लोगों पर समान प्रभाव क्यों नहीं डालता। (Individual Difference Theory)

      2. सिद्धांत का उद्गम और प्रवर्तक (Origin and Proponent)

      “Individual Difference Theory” की उत्पत्ति मनोविज्ञान के क्षेत्र में हुई थी। इसके प्रवर्तक सर फ्रांसिस गॉल्टन (Sir Francis Galton, 1822–1911) माने जाते हैं, जिन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Hereditary Genius” (1869) में यह विचार प्रस्तुत किया कि — “मनुष्य की क्षमताओं और व्यवहार में भिन्नता आनुवंशिक (hereditary) और पर्यावरणीय (environmental) कारणों से होती है।” गॉल्टन ने सबसे पहले मानव बुद्धि और क्षमता को मापने की प्रक्रिया (Psychometrics) विकसित की। उन्होंने कहा कि समाज का विकास इसी विविधता से होता है — यानी यदि सभी समान हों, तो प्रगति असंभव हो। बाद में Edward L. Thorndike, Charles Spearman, और Alfred Binet जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया। थॉर्नडाइक ने इसे शिक्षाशास्त्र से जोड़ते हुए कहा कि हर छात्र की सीखने की शैली और गति अलग होती है। स्पीयरमैन ने बुद्धि के “g factor” की बात की, और बिनेट ने IQ Test बनाकर इन भिन्नताओं को मापन योग्य रूप दिया।

      3. सिद्धांत की मूल अवधारणा (Concept of the Theory) (Individual Difference Theory)

      इस सिद्धांत के अनुसार, हर व्यक्ति अपनी मानसिक और सामाजिक संरचना के आधार पर सूचना को अलग ढंग से ग्रहण और व्याख्या करता है। इसका अर्थ यह है कि यदि दो व्यक्ति एक ही समाचार, भाषण या विज्ञापन देखें, तो वे उसे अपनी दृष्टि से भिन्न रूप में समझेंगे।

      संचार के चार मुख्य घटक होते हैं —
      Source (प्रेषक), Message (संदेश), Channel (माध्यम) और Receiver (प्राप्तकर्ता)।
      इस सिद्धांत में Receiver को सबसे अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि वही अपने अनुभवों, भावनाओं, और मूल्यों के अनुसार संदेश को समझता है। यानी, संदेश का वास्तविक अर्थ प्राप्तकर्ता की व्याख्या से बनता है, न कि केवल प्रेषक की मंशा से।

      4. संचार के क्षेत्र में विकास (Development in Communication Field) (Individual Difference Theory)

      मनोविज्ञान से यह विचार धीरे-धीरे Mass Communication (जनसंचार) के अध्ययन में शामिल हुआ।
      इस दिशा में दो प्रमुख विद्वानों — Harold Lasswell और Joseph Klapper — ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

      (i) Harold Lasswell (1948): उन्होंने प्रसिद्ध संचार मॉडल प्रस्तुत किया —

      “Who says what, in which channel, to whom, and with what effect.”

      यहाँ “to whom” का भाग सीधे “Individual Difference” से जुड़ा है।
      यह बताता है कि संचार का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि संदेश किसे दिया जा रहा है, और वह व्यक्ति उसे कैसे ग्रहण करता है।

      (ii) Joseph Klapper (1960):
      उन्होंने अपनी पुस्तक “The Effects of Mass Communication” में यह कहा कि —

      “Mass media do not directly change attitudes; they reinforce existing attitudes through individual differences.” अर्थात मीडिया का प्रभाव प्रत्यक्ष नहीं होता; यह व्यक्ति की पहले से बनी मान्यताओं को और मज़बूत करता है। यहीं से यह सिद्धांत मीडिया अध्ययन में एक स्थायी अवधारणा के रूप में स्थापित हुआ।

      5. मीडिया-संचार में सिद्धां के मुख्य बिंदु (Key Points in Media and Communication) (Individual Difference Theory)

      (a) Selective Exposure (चयनात्मक संपर्क) लोग उन समाचारों या माध्यमों को ही चुनते हैं जो उनकी सोच या विचारधारा के अनुरूप हों। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति अपने पसंदीदा राजनीतिक दल का समाचार चैनल ही देखना पसंद करता है। (b) Selective Perception (चयनात्मक ग्रहण) हर व्यक्ति वही देखता और समझता है जो उसके अनुभव या मान्यताओं से मेल खाता है। एक ही फिल्म को कोई “देशभक्ति” समझता है तो कोई “राजनीतिक प्रचार।” (c) Selective Retention (चयनात्मक स्मृति) व्यक्ति वही बातें याद रखता है जो उसे उपयुक्त लगती हैं या जिनसे वह सहमत है। (d) Audience Segmentation (दर्शक विभाजन)

      मीडिया संस्थान यह समझते हैं कि हर व्यक्ति अलग है, इसलिए वे दर्शकों को उम्र, लिंग, शिक्षा, रुचि और क्षेत्र के आधार पर विभाजित करते हैं। यह सिद्धांत विज्ञापन, जनसंपर्क, और प्रचार रणनीति में अत्यंत उपयोगी है।

      (e) Message Framing (संदेश संरचना)

      मीडिया संदेश को प्राप्तकर्ता की भाषा, संस्कृति, और शिक्षा के अनुसार ढालना आवश्यक होता है। ग्रामीण दर्शक के लिए स्थानीय बोली और उदाहरणों का उपयोग प्रभावी होता है, जबकि शहरी दर्शक के लिए आधुनिक प्रतीक।

      (f) Differential Media Effects (भिन्न प्रभाव)

      मीडिया संदेशों के प्रभाव समान नहीं होते — एक व्यक्ति पर गहरा असर हो सकता है, जबकि दूसरे पर नगण्य।
      यह निर्भर करता है उसकी शिक्षा, सामाजिक स्थिति, और भावनात्मक स्तर पर।

      6. उदाहरण (Illustrations in Media Context)

      1. राजनीतिक समाचार: किसी प्रधानमंत्री के भाषण को समर्थक “विकास की दृष्टि” के रूप में देखता है, जबकि विरोधी “राजनीतिक स्टंट” मानता है।
      2. विज्ञापन: एक सौंदर्य उत्पाद का विज्ञापन किसी महिला के लिए आत्मविश्वास का प्रतीक बन सकता है, जबकि दूसरी के लिए यह सौंदर्य के कृत्रिम मानकों की आलोचना का विषय हो सकता है।
      3. सिनेमा: एक युद्ध फिल्म किसी के लिए देशभक्ति की प्रेरणा हो सकती है, लेकिन किसी संवेदनशील दर्शक के लिए हिंसा का महिमामंडन।
      4. सोशल मीडिया: किसी सामाजिक मुद्दे पर ट्विटर या फेसबुक पर हज़ारों अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ आती हैं — हर उपयोगकर्ता का दृष्टिकोण उसकी पृष्ठभूमि से निर्मित होता है।

      7. आधुनिक डिजिटल युग में प्रासंगिकता (Relevance in the Digital Age)

      आज के युग में जब संचार माध्यम पूरी तरह डिजिटल और डेटा-आधारित हो गए हैं, यह सिद्धांत और भी प्रासंगिक हो गया है। हर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म अब उपयोगकर्ता की व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर सामग्री दिखाता है।

      उदाहरण: (Individual Difference Theory)

      • Netflix का “Recommended for You” फीचर आपकी पसंद के अनुसार फिल्में सुझाता है।
      • YouTube आपके देखे गए वीडियो के आधार पर अगला वीडियो तय करता है।
      • Google Ads आपके सर्च व्यवहार के अनुसार विज्ञापन दिखाता है।

      यह सब दर्शाता है कि आधुनिक मीडिया ने “Individual Difference Theory” को तकनीकी रूप में लागू कर दिया है।

      8. अन्य संचार सिद्धांतों से संबंध (Relation with Other Theories)

      “Individual Difference Theory” ने कई प्रमुख सिद्धांतों को जन्म दिया या प्रभावित किया —

      • Uses and Gratifications Theory: व्यक्ति अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार मीडिया का उपयोग करता है।
      • Two-Step Flow Theory: सभी लोग सीधे मीडिया से प्रभावित नहीं होते; राय-नेता (Opinion Leaders) के माध्यम से प्रभाव फैलता है।
      • Selective Exposure Theory: व्यक्ति उन्हीं सूचनाओं को चुनता है जो उसके विश्वासों से मेल खाती हैं।
      • Reception Theory: दर्शक संदेश की व्याख्या अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के अनुसार करता है।

      इन सभी सिद्धांतों की जड़ यही है कि हर व्यक्ति का मीडिया अनुभव अलग है।

      9. आलोचनाएँ (Criticism of the Theory)

      यद्यपि यह सिद्धांत यथार्थवादी है, कुछ विद्वानों ने इसकी सीमाएँ भी बताई हैं:

      • यह व्यक्ति पर बहुत अधिक केंद्रित है और सामाजिक संरचना, राजनीति या आर्थिक प्रभावों की उपेक्षा करता है।
      • राष्ट्रीय संकट या आपदा जैसी परिस्थितियों में मीडिया प्रभाव सामूहिक हो सकता है, व्यक्तिगत नहीं।
      • व्यक्ति की आंतरिक मानसिक स्थिति को मापना कठिन है, इसलिए इस सिद्धांत का परीक्षण वैज्ञानिक रूप से सीमित रहता है।

      फिर भी, इन सीमाओं के बावजूद यह सिद्धांत आधुनिक मीडिया व्यवहार को सबसे अधिक यथार्थ रूप से समझाता है।

      10. निष्कर्ष (Conclusion)- “Individual Difference Theory” का प्रारंभ मनोविज्ञान के क्षेत्र में Sir Francis Galton (1869) ने किया था, और इसे संचार अध्ययन में Joseph Klapper (1960) ने विस्तार दिया। इस सिद्धांत ने यह स्थापित किया कि मीडिया प्रभाव समान नहीं बल्कि भिन्न होते हैं, और हर व्यक्ति अपनी मानसिकता, अनुभव, और सांस्कृतिक दृष्टि से संदेशों की व्याख्या करता है। आज के डिजिटल युग में, जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और एल्गोरिद्म आधारित मीडिया हर व्यक्ति को उसकी पसंद के अनुसार सामग्री दिखा रहे हैं, यह सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है।

      यह हमें यह सिखाता है कि प्रभावी संचार केवल सही संदेश देने में नहीं, बल्कि श्रोताओं की विविधता को समझने में निहित है। हर व्यक्ति एक “अलग मीडिया संसार” में जीता है, और संचारक की सफलता इसी में है कि वह उस संसार तक सही भाषा, माध्यम, और संवेदना के साथ पहुँचे।

      उद्धरण योग्य पंक्ति:

      “Individual Difference Theory was originally proposed by Sir Francis Galton (1869) and later developed in communication studies by Joseph Klapper (1960) to explain why media messages affect individuals differently.”

      Standpoint Theory  Bullet theory Cultivation Theory of Communication

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      Dr. Arvind Kumar Singh

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