Method of Interview Analysis Interview Analysis
गुणात्मक शोध (Qualitative Research) में इंटरव्यू एक अत्यंत महत्वपूर्ण डेटा-संग्रह विधि है, क्योंकि इसके माध्यम से शोधकर्ता लोगों के अनुभवों, विचारों, भावनाओं और सामाजिक वास्तविकताओं को सीधे समझ सकता है। लेकिन इंटरव्यू लेना ही शोध का अंतिम उद्देश्य नहीं होता। वास्तविक शोध कार्य तब शुरू होता है, जब इंटरव्यू से प्राप्त सूचनाओं का व्यवस्थित और गहन विश्लेषण किया जाता है। इसी प्रक्रिया को Interview Analysis कहा जाता है। Interview Analysis का उद्देश्य बिखरे हुए मौखिक उत्तरों को अर्थपूर्ण, व्यवस्थित और शोध प्रश्न से जोड़ना होता है। यह प्रक्रिया शोधकर्ता को यह समझने में सहायता करती है कि लोग किसी समस्या को कैसे अनुभव करते हैं, उनके दृष्टिकोण में क्या समानताएँ और भिन्नताएँ हैं, और उनके अनुभव किन व्यापक सामाजिक या नीतिगत मुद्दों की ओर संकेत करते हैं। Interview Analysis को वैज्ञानिक और विश्वसनीय बनाने के लिए इसे कुछ स्पष्ट चरणों में किया जाता है, जैसे—Transcription, Reading, Coding, Categorization, Theme Development और Interpretation। ये सभी चरण मिलकर शोध को गहराई, स्पष्टता और अर्थ प्रदान करते हैं। Method of Interview Analysis
1. Transcription – इंटरव्यू की बातों को लिखित रूप में बदलना – Transcription का मतलब है – इंटरव्यू में जो कुछ बोला गया, उसे शब्द-शब्द लिख लेना। अगर आपने audio recording की है, तो उसे ध्यान से सुनकर पूरा संवाद टाइप किया जाता है। अगर आपने सिर्फ नोट्स लिए हैं, तो घर आकर उन नोट्स को विस्तार से साफ-सुथरे रूप में लिखा जाता है।
Transcription करते समय यह ज़रूरी है कि आप केवल शब्द ही नहीं, बल्कि जहाँ-जहाँ रुकावट, हँसी, गुस्सा, चुप्पी जैसी बातें हैं, उन्हें भी थोड़ा नोट कर लें (जैसे – “हँसते हुए”, “कुछ देर चुप रहकर” आदि)। इससे बाद में समझ आता है कि व्यक्ति किस भावना से बात कर रहा था। उदाहरण: मान लीजिए आपने गाँव की महिलाओं से पानी की समस्या पर इंटरव्यू किया। एक महिला ने कहा: “सुबह 4 बजे उठकर हम 3–4 किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं… (कुछ देर चुप)… बच्चे संभालना भी मुश्किल होता है।”
Transcription में आप इसे ठीक ऐसे ही लिखेंगे, बीच की चुप्पी भी नोट करेंगे। Transcription की खास बात यह है कि यहीं से पूरा analysis शुरू होता है। अगर transcription अधूरा या गलत है, तो बाद का पूरा विश्लेषण भी प्रभावित हो जाएगा। इसलिए इस स्टेप में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, recording को बार-बार सुनकर cross-check करना चाहिए। सरल भाषा में कहें तो – Transcription वह पुल है जो “बोली हुई बात” को “लिखित डाटा” में बदल देता है, ताकि आगे उस पर आराम से काम किया जा सके।
2. Reading & Familiarization – डाटा से अच्छी तरह परिचित होना।
जब transcription पूरा हो जाए, तो अगला कदम है उसे बार-बार पढ़ना। इसे हम familiarization कहते हैं, यानी डाटा से “परिचित” होना। इस चरण में आपका लक्ष्य analysis करना नहीं, बल्कि सिर्फ समझना होता है कि लोग कुल मिलाकर क्या कह रहे हैं, कौन-कौन सी बातें बार-बार आ रही हैं, कौन सी बातें बहुत भावुक हैं। आप पूरा transcript शुरुआत से अंत तक आराम से पढ़ते हैं। पहली बार पढ़ने पर बस मोटा-मोटा अर्थ समझिए। दूसरी या तीसरी बार पढ़ने पर आप पेंसिल से important words को underline कर सकते हैं, margin में छोटे नोट लिख सकते हैं, जैसे – “यहाँ बहुत गुस्सा है”, “यहाँ सरकार से शिकायत है”, “यहाँ डर झलकता है” आदि। उदाहरण: पानी की समस्या वाले इंटरव्यू में आप देख सकते हैं कि लगभग हर महिला “थकान”, “बच्चों की पढ़ाई में रुकावट”, “बीमारियों का डर” जैसी बातें दुहरा रही है। इसे पढ़ते-पढ़ते आपका मन अपने-आप ये सोचने लगता है कि “थकान, समय की कमी, स्वास्थ्य, शिक्षा” – ये सब आगे important points हो सकते हैं।
यह स्टेप बहुत ज़रूरी है क्योंकि अगर आपने डाटा को अच्छी तरह नहीं पढ़ा, तो आप सतही निष्कर्ष निकाल सकते हैं। Familiarization से researcher का दिमाग डाटा की “भाषा, टोन और संदर्भ” को समझने लगता है। साधारण शब्दों में – यह वह चरण है जहाँ आप डाटा के साथ समय बिताते हैं, उसे महसूस करते हैं, ताकि आगे coding करते समय आपके दिमाग में पूरा संदर्भ साफ हो। Method of Interview Analysis
3. Coding – डाटा को छोटे-छोटे अर्थपूर्ण टुकड़ों में बाँटना – Coding वह प्रक्रिया है जिसमें आप transcript की lines या paragraphs को छोटे-छोटे labels देते हैं। ये labels वही शब्द या वाक्यांश होते हैं जो उस हिस्से का मुख्य अर्थ बताते हैं। इन्हें हम codes कहते हैं। Coding करते समय आप पूरे transcript को line-by-line देखते हैं और सोचते हैं – “इस वाक्य का सार क्या है?” फिर उसे एक छोटा नाम दे देते हैं। यह नाम कभी एक शब्द होता है, कभी दो-तीन शब्द। उदाहरण के लिए कोई कहता है:
“पानी लाने में इतना समय लग जाता है कि बच्चों को स्कूल छोड़ने में देर हो जाती है।”
इस पर आप कोड दे सकते हैं: “समय की कमी”, “बच्चों की पढ़ाई पर असर”। Method of Interview Analysis
दूसरा व्यक्ति कहता है: “रात में हम डर के कारण दूर वाले हैंडपंप पर नहीं जा पाते।”
इस पर आप लिख सकते हैं: “सुरक्षा का डर”, “रात में असुरक्षा”।
Coding का फायदा यह होता है कि लम्बे-लम्बे इंटरव्यू को आप छोटे-छोटे अर्थपूर्ण टुकड़ों में बदल देते हैं। बाद में जब आप पूरे डाटा को देखते हैं, तो आसानी से पता चल जाता है कि कौन से codes सबसे ज़्यादा बार आए – जैसे “थकान”, “डर”, “सरकारी लापरवाही”, “महिलाओं पर बोझ” इत्यादि। Coding दो तरह की हो सकती है –
- Open coding: शुरुआत में खुलकर जितने भी codes बन रहे हों, सब बना लेते हैं।
- Focused coding: बाद में सबसे महत्वपूर्ण codes चुन लेते हैं, बाकी merge या हटा देते हैं।
सीधी भाषा में – coding वह काम है जो raw बातें को research language में बदल देता है, ताकि आगे analysis करना आसान हो जाए।
4. Categorization – Codes को बड़े समूह (Categories) में व्यवस्थित करना
जब आपके पास बहुत सारे codes बन जाएँ, तो अगला कदम है उन्हें व्यवस्थित करना। कई बार 30–40 या 100 से ज़्यादा codes बन जाते हैं। इन्हें समझने के लिए हम समान प्रकार के codes को मिलाकर categories बनाते हैं। Category मतलब – एक बड़ा समूह, जिसके नीचे कुछ related codes रखे जाते हैं। उदाहरण: मान लीजिए आपने ये codes बनाए:
- “पानी की कमी”
- “लंबी दूरी चलना”
- “सरकारी टैंकर नहीं आता”
- “हैंडपंप खराब है”
आप इनमें से एक category बना सकते हैं – “जल आपूर्ति की समस्या”। इसी तरह अगर आपके पास ये codes हों:
- “महिलाओं पर ज़्यादा बोझ”
- “बच्चों की पढ़ाई रुकती है”
- “कमाई का समय बर्बाद”
तो आप category बना सकते हैं – “सामाजिक और पारिवारिक प्रभाव”।
Categorization से आपको यह समझ आता है कि डाटा की मुख्य बड़ी–बड़ी दिशाएँ (broad areas) कौन-सी हैं – जैसे “समस्या की प्रकृति”, “प्रभाव”, “सरकार से अपेक्षा”, “समाधान के सुझाव” आदि। यह चरण analysis को और व्यवस्थित बना देता है। अब आप सिर्फ codes की लंबी सूची नहीं देख रहे, बल्कि 4–5 या 6–7 categories देख रहे हैं, जिनमें codes अच्छे से arrange हैं। साधारण भाषा में – Categorization वह प्रक्रिया है जिसमें छोटे-छोटे codes को बड़े बक्सों में रख दिया जाता है, ताकि पूरा सामान (डाटा) साफ-साफ दिखाई दे और बाद में उससे मुख्य themes निकालना आसान हो जाए।
5. Theme Development – डाटा से मुख्य संदेश (Themes) निकालना
अब बारी आती है themes बनाने की। Theme एक ऐसा बड़ा विचार (big idea) है जो किसी category से भी ऊपर होता है और पूरे डाटा का महत्वपूर्ण संदेश व्यक्त करता है। एक theme के अंदर कई categories और codes जुड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए आपके पास ये categories हैं:
- “जल आपूर्ति की समस्या”
- “महिलाओं और बच्चों पर बोझ”
- “सरकारी योजनाओं की विफलता”
इन तीनों को जोड़कर आप एक theme बना सकते हैं –
“जल प्रबंधन की असफलता और उसका सामाजिक असर”
दूसरा theme हो सकता है – “परिवार में महिलाओं की अदृश्य मेहनत और संघर्ष” – अगर कई इंटरव्यू में महिलाएँ अपने काम, थकान, और जिम्मेदारियों की बात कर रही हों।
Themes बनाते समय researcher यह देखता है कि –
- कौन-सी बातें अलग-अलग लोगों ने बार-बार कहीं हैं?
- कौन से विचार आपस में जुड़े हुए लगते हैं?
- किस विचार के पीछे strong भावनाएँ या अनुभव हैं?
Theme development से qualitative research की “कहानी” तैयार होती है। बाद में जब आप रिपोर्ट लिखते हैं, तो प्रत्येक theme एक अलग heading बन जाती है, जिसके अंदर आप उदाहरण, quotes और अपने interpretation लिखते हैं। साधारण शब्दों में – theme वह शीर्षक है जो बताता है कि यह पूरा डाटा हमें क्या कहना चाहता है। Themes research को गहराई भी देते हैं और reader के लिए स्पष्टता भी पैदा करते हैं।
6. Interpretation & Conclusion – Themes से अर्थ निकालना और निष्कर्ष लिखना – आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण चरण है Interpretation यानी themes से अर्थ निकालना। यहाँ researcher सिर्फ “क्या कहा गया” नहीं बताता, बल्कि यह भी समझाता है कि “इसका मतलब क्या है, इससे क्या सीख मिलती है, और यह शोध प्रश्न से कैसे जुड़ता है।”
इस स्टेप में आप हर theme को लेकर सोचते हैं:
- यह theme हमारे research question के किस हिस्से का जवाब दे रही है?
- इससे क्या पता चलता है – कारण, परिणाम, व्यवहार, दृष्टिकोण?
- यह पहले से मौजूद theories या studies से कैसे मिलती/अलग है?
- नीतियों, समाज या व्यवहार में इसके क्या implications हो सकते हैं?
उदाहरण: Theme: “जल प्रबंधन की असफलता और उसका सामाजिक असर”
Interpretation: “इंटरव्यू से स्पष्ट होता है कि सरकारी जल योजनाएँ कागज पर मौजूद हैं, पर ज़मीन पर सही ढंग से लागू नहीं हो रहीं। इस कारण महिलाओं को रोज़ कई घंटे पानी लाने में लगाने पड़ते हैं, जिससे उनकी आर्थिक भागीदारी और बच्चों की शिक्षा दोनों प्रभावित होते हैं। यह दिखाता है कि जल नीति बनाते समय gender के दृष्टिकोण को गंभीरता से शामिल करना ज़रूरी है।”
यहीं आप निष्कर्ष (conclusion) और कभी-कभी सुझाव (recommendations) भी लिखते हैं – जैसे, “गाँव में नज़दीक हैंडपंप, पाइपलाइन, या सामुदायिक जल टंकी बनाने की ज़रूरत है”, या “महिलाओं को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए”।
सीधी भाषा में – Interpretation वह चरण है जहाँ researcher डाटा की कहानी को अर्थ देता है और बताता है कि यह शोध समाज, नीति या सिद्धांत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।
Method of Interview Analysis उपसंहार (Conclusion) —
Interview Analysis के छह चरण—Transcription से लेकर Interpretation तक—गुणात्मक शोध को एक स्पष्ट दिशा और ठोस आधार प्रदान करते हैं। ये चरण शोधकर्ता को केवल यह बताने तक सीमित नहीं रखते कि उत्तरदाताओं ने क्या कहा, बल्कि यह समझने में मदद करते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा और उसका सामाजिक, नीतिगत या सैद्धांतिक अर्थ क्या है। Transcription शोध की नींव रखता है, Reading और Familiarization डेटा से गहरी समझ विकसित करते हैं, Coding और Categorization डेटा को व्यवस्थित बनाते हैं, Theme Development शोध की कहानी तैयार करता है, और Interpretation उस कहानी को अर्थ और निष्कर्ष प्रदान करता है। इन सभी चरणों के माध्यम से Interview Analysis कच्चे मौखिक डेटा को ज्ञान में बदल देता है। यही कारण है कि शिक्षा, समाजशास्त्र, मीडिया अध्ययन, स्वास्थ्य और नीति-आधारित शोधों में Interview Analysis को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। सही ढंग से किया गया Interview Analysis शोध को विश्वसनीय, प्रभावी और समाज के लिए उपयोगी बनाता है।
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