Non-Probability Sampling (अप्रायिकता सैम्पलिंग)
1. अर्थ (Meaning)
Non-Probability Sampling वह सैम्पलिंग विधि है जिसमें जनसंख्या के प्रत्येक सदस्य के चुने जाने की संभावना ज्ञात नहीं होती। इसका मतलब यह है कि शोधकर्ता यह नहीं बता सकता कि किसी विशेष व्यक्ति या वस्तु के चुने जाने की संभावना कितनी है। चयन पूरी तरह शोधकर्ता की सुविधा, उसके अनुभव, स्थिति की आवश्यकता और शोध के उद्देश्य पर निर्भर करता है। इसमें रैंडमनेस नहीं होती, इसलिए हर व्यक्ति को समान अवसर नहीं मिलता।
उदाहरण के लिए, यदि एक शोधकर्ता कॉलेज कैंपस में मौजूद विद्यार्थियों का ही सर्वे कर ले क्योंकि वे आसानी से उपलब्ध हैं, तो यह अप्रायिकता सैम्पलिंग है। यह तब उपयोगी होती है जब समय कम हो, बजट सीमित हो या जनसंख्या तक पहुँच कठिन हो।
Demerits (दोष)
- जनसंख्या का प्रतिनिधित्व सही नहीं होता।
- पक्षपात (Bias) की संभावना बहुत अधिक होती है।
- Sampling Error मापा नहीं जा सकता।
- निष्कर्षों को पूरी जनसंख्या पर लागू नहीं किया जा सकता।
- कम विश्वसनीय और कम वैज्ञानिक परिणाम मिलते हैं।
2. विशेषताएँ (Characteristics of Non-Probability Sampling)
(1) शोधकर्ता के निर्णय पर निर्भर – इस सैम्पलिंग में शोधकर्ता अपने अनुभव और सुविधा के आधार पर नमूना चुनता है। चयन में कोई गणितीय या सांख्यिकीय नियम लागू नहीं होता। उदाहरण: शिक्षक अपनी कक्षा के टॉप 10 छात्रों से ही राय ले।
(2) Sampling Error मापना असंभव- क्योंकि चयन यादृच्छिक नहीं है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि प्राप्त परिणाम वास्तविक जनसंख्या से कितने निकट या कितने दूर हैं। त्रुटि का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।
(3) Bias अधिक – शोधकर्ता की व्यक्तिगत सोच, सुविधा और पसंद–नापसंद चयन को प्रभावित कर सकती है। यह शोध परिणामों को विकृत कर देता है।
(4) कम समय और कम लागत- इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी सरलता है। यह तेज़ और सस्ती होती है। बहुत कम संसाधनों में शोध प्रारंभ किया जा सकता है।
(5) अन्वेषणात्मक शोध में उपयोग-Exploratory Research यानी प्रारंभिक शोध में यह बहुत उपयोगी है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब शोध का उद्देश्य किसी समस्या की सामान्य समझ प्राप्त करना हो।
गैर-प्रायिक नमूना विधियाँ (Non-Probability Sampling) — आसान और व्यवस्थित व्याख्या
Non-Probability Sampling वे विधियाँ हैं जिनमें जनसंख्या के प्रत्येक व्यक्ति के चुने जाने की संभावना निश्चित नहीं होती। शोधकर्ता जिन लोगों तक आसानी से पहुँच सकता है, जिन्हें वह महत्त्वपूर्ण मानता है या जो स्वयं अध्ययन में भाग लेने के इच्छुक होते हैं—उनसे नमूना लिया जाता है। यह विधियाँ सरल, तेज़ और कम खर्चीली होती हैं, इसलिए सामाजिक विज्ञान, मीडिया, मार्केटिंग और प्रारंभिक शोध में इनका खूब प्रयोग होता है। नीचे इन विधियों को एक सहज और क्रमबद्ध प्रवाह में समझाया गया है।
1. सुविधा नमूना विधि (Convenience Sampling)
यह गैर-प्रायिक नमूना लेने की सबसे सरल और सबसे आम विधि है। जैसा नाम से स्पष्ट है, इसमें शोधकर्ता उन्हीं लोगों का चयन करता है जो उसकी सुविधा के अनुसार तुरंत उपलब्ध हों। उदाहरण के लिए, शोधकर्ता कॉलेज कैंपस में घूमें और जो भी छात्र पास में मिल जाए, उसी से सर्वे कर ले। इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बेहद तेज़ और कम लागत वाली है, लेकिन कमी यह है कि इसका परिणाम पूरी जनसंख्या का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर पाता। इसलिए convenience sampling exploratory या प्रारंभिक अध्ययनों में अधिक उपयोग होती है।
उदाहरण: कॉलेज कैंपस में मिल रहे छात्रों का तुरंत सर्वे कर लेना, किसी मॉल में उपलब्ध ग्राहकों से प्रतिक्रिया लेना।
Demerits:
- अत्यधिक पक्षपाती (Highly Biased) नमूना।
- जनसंख्या का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता।
- परिणामों को बड़े समूह पर लागू नहीं किया जा सकता।
केवल प्रारंभिक अनुमान के लिए उपयुक्त।
2. उद्देश्यपूर्ण नमूना विधि (Purposive / Judgmental Sampling)
इस विधि में शोधकर्ता अपने अनुभव, ज्ञान और शोध के उद्देश्य के अनुसार उन व्यक्तियों का चयन करता है जो अध्ययन के लिए सबसे उपयुक्त हों। उदाहरण के लिए, यदि शोध किसी बीमारी पर है, तो शोधकर्ता सीधे डॉक्टरों, नर्सों या रोगियों को चुनेगा। इसमें selection researcher के “judgment” पर आधारित होता है। यह विधि गहराई वाले शोधों जैसे केस स्टडी, फोकस ग्रुप, विशेषज्ञ विश्लेषण आदि में अत्यंत उपयोगी है क्योंकि इसमें गुणात्मक (Qualitative) जानकारी अधिक प्राप्त होती है।
उदाहरण:
- किसी बीमारी पर शोध करते समय केवल विशेषज्ञ डॉक्टरों को शामिल करना।
- शिक्षा नीति पर अध्ययन के लिए विद्यालय प्रिंसिपल्स का चयन करना।
Demerits:
- चयन में शोधकर्ता की पसंद–नापसंद का प्रभाव हो सकता है।
- पक्षपात की संभावना अत्यधिक।
- चयन गलत होने पर शोध के निष्कर्ष गलत हो जाते हैं।
3. कोटा नमूना विधि (Quota Sampling)
Quota Sampling में जनसंख्या को विभिन्न समूहों में बाँट कर प्रत्येक समूह के लिए “quota” निर्धारित किया जाता है—जैसे 50% पुरुष और 50% महिलाएँ। अब शोधकर्ता उस कोटा की संख्या को पूरा करने के लिए उपलब्ध लोगों का चयन करता है। यानि चयन non-random होता है, लेकिन संरचना जनसंख्या की बनावट को दर्शाती है। यह विधि एग्ज़िट पोल, टीवी सर्वे, मार्केट रिसर्च और विज्ञापन अध्ययनों में बहुत प्रचलित है क्योंकि यह तेज़, आसान और सस्ती होती है।
उदाहरण: यदि 100 लोगों का सैम्पल चाहिए और कोटा 50 पुरुष, 50 महिला है, तो शोधकर्ता उपलब्ध पुरुष–महिलाओं को लेकर कोटा पूरा कर लेता है।
Kinds of Research Importance of research research Need of Research Design
Demerits:
- चयन यादृच्छिक नहीं होता, इसलिए बायस रहता है।
- शोधकर्ता कोटा भरने में जल्दबाज़ी कर सकता है।
- Generalization संभव नहीं।
4. स्नोबॉल नमूना विधि (Snowball Sampling)
यह विधि उन स्थितियों में उपयोग की जाती है जहाँ नमूना ढूँढना मुश्किल होता है—जैसे दुर्लभ रोगी, नशे के आदी लोग, अपराधी समूह, LGBTQ+ समुदाय आदि। इसमें एक प्रतिभागी दूसरे प्रतिभागी का परिचय देता है, फिर वह अगला व्यक्ति किसी और को सुझाता है। इस तरह नमूना बढ़ता जाता है, बिल्कुल “बरफ के गोले” की तरह। यह विधि qualitative research और sensitive विषयों में अत्यधिक उपयोगी है।
उदाहरण:
- नशा करने वालों का अध्ययन
- HIV–संक्रमित लोगों का शोध
- विशिष्ट समुदाय जैसे ट्रांसजेंडर समूह
Demerits:
- पूरी तरह गैर-निष्पक्ष और अत्यधिक पक्षपाती।
- एक ही सामाजिक नेटवर्क के लोग शामिल होने से विविधता कम।
संवेदनशील समुदायों के कारण गोपनीयता जोखिम।
5. स्वयं-चयन नमूना (Self-Selection / Voluntary Sampling)
इस विधि में लोग खुद निर्णय लेते हैं कि वे अध्ययन में भाग लेना चाहते हैं या नहीं। ऑनलाइन सर्वे, फीडबैक फॉर्म, सोशल मीडिया पोल और open volunteer surveys इसी श्रेणी में आते हैं। शोधकर्ता केवल विकल्प देता है, और लोग स्वयं शामिल होते हैं। यह तेज़ और कम खर्च वाला तरीका है, लेकिन इसमें bias अधिक होता है क्योंकि केवल इच्छुक लोग शामिल होते हैं, जो जनसंख्या का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।
उदाहरण:
- ऑनलाइन सर्वे जहाँ लोग स्वयं भरते हैं।
- सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए ओपन फॉर्म।
Demerits:
- केवल वही लोग शामिल होते हैं जिन्हें विषय में रुचि है।
- पक्षपात बढ़ जाता है क्योंकि चुप रहने वाले समूह शामिल नहीं होते।
- सैम्पल जनसंख्या का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता।
6. विशेषज्ञ नमूना विधि (Expert Sampling)
जब शोध का विषय बहुत तकनीकी, संवेदनशील या जटिल हो—जैसे क्लाइमेट चेंज, साइबर सुरक्षा, महामारी, अर्थव्यवस्था—तो शोधकर्ता केवल विशेषज्ञों से ही जानकारी लेता है। इसमें वैज्ञानिक, प्रोफेसर, अधिकारी, डॉक्टर और अनुभवी पेशेवर शामिल होते हैं। यह विधि policy-making और evidence-based decisions के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
उदाहरण:
• जलवायु परिवर्तन पर केवल पर्यावरण वैज्ञानिकों से साक्षात्कार लेना।
• साइबर अपराध अध्ययन में केवल साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के विचार लेना।
Demerits:
• आम जनसंख्या का दृष्टिकोण शामिल नहीं होता।
• विशेषज्ञों के व्यक्तिगत विचार पक्षपाती हो सकते हैं।
• विशेषज्ञ उपलब्ध न हों तो अध्ययन अधूरा रह जाता है।
7. विविध नमूना विधि (Heterogeneous / Maximum Variation Sampling)
इस विधि में शोधकर्ता ऐसे लोगों को चुनता है जो एक-दूसरे से पूरी तरह अलग हों। उद्देश्य यह होता है कि अधिक से अधिक दृष्टिकोण (perspectives) एकत्र किए जाएँ। उदाहरण के लिए, किसी सामाजिक मुद्दे पर शोध करते समय शोधकर्ता अमीर, गरीब, पुरुष, महिला, ग्रामीण, शहरी, शिक्षित और अशिक्षित—सभी प्रकार के लोगों को शामिल करता है। इससे विषय की गहराई और विस्तार दोनों समझ में आते हैं।
उदाहरण:
• शिक्षा असमानता के अध्ययन में हर वर्ग: उच्च, मध्यम और निम्न आय वाले परिवारों को शामिल करना।
• किसी नीति के प्रभाव का अध्ययन करते समय ग्रामीण–शहरी, युवा–वृद्ध, पुरुष–महिला सभी वर्गों का नमूना लेना।
Demerits:
• बहुत विविधता होने से डेटा विश्लेषण कठिन हो जाता है।
• विभिन्न समूहों की तुलना हमेशा समान आधार पर नहीं हो सकती।
• नमूना चुनने में समय और संसाधन अधिक लगते हैं।
8. विशिष्ट केस नमूना (Typical Case Sampling)
इसमें researcher उस केस या व्यक्ति का चयन करता है जो जनसंख्या का “सबसे सामान्य या प्रतिनिधि उदाहरण” हो। जैसे कोई स्कूल जिला स्तर पर औसत प्रदर्शन कर रहा हो—तो वह typical case माना जा सकता है। इसका उद्देश्य यह जानना होता है कि सामान्य स्थितियों में चीजें कैसी दिखती हैं।
उदाहरण:
• किसी जिले का वह स्कूल चुनना जिसकी उपलब्धियाँ औसत स्तर पर हों।
• स्वास्थ्य सेवाओं के अध्ययन हेतु वह अस्पताल चुनना जो न बहुत बेहतर हो न बहुत खराब—सिर्फ सामान्य स्तर का।
Demerits:
• अत्यधिक सफल या असफल मामलों की जानकारी छूट जाती है।
• सामान्य केस हमेशा पूरे क्षेत्र की सही तस्वीर न दें।
• इससे गहरी समस्याएँ या विशिष्ट सुधार के अवसर पता नहीं चलते।
9. क्रिटिकल केस नमूना (Critical Case Sampling)
इस विधि में ऐसे केस चुने जाते हैं जो किसी बड़े निर्णय या नीति को प्रभावित कर सकते हों। उदाहरण के लिए, एक ऐसा गाँव जो पूरे जिले के स्वास्थ्य मॉडल का आधार बन सकता हो, या एक ऐसा स्कूल जहाँ कोई शिक्षा नीति अत्यंत सफल या असफल हुई हो। Critical cases से प्राप्त जानकारी व्यापक स्तर पर लागू की जा सकती है।
उदाहरण:
• वह गाँव चुनना जहाँ स्वच्छता अभियान अत्यंत सफल हुआ और जिसे मॉडल गाँव घोषित किया गया।
• वह स्कूल चुनना जहाँ एक नई शिक्षा नीति असाधारण रूप से सफल या असफल रही हो।
Demerits:
• पूरे क्षेत्र के लिए निष्कर्ष सामान्यीकृत करना कठिन हो सकता है।
• एक ही केस पर अत्यधिक निर्भरता से पक्षपात बढ़ सकता है।
• यदि केस गलत चुना गया, तो पूरा अध्ययन अप्रभावी हो जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Non-Probability Sampling उन स्थितियों में अत्यंत उपयोगी है जहाँ समय, संसाधन या जनसंख्या तक पहुँच सीमित हो। यह अन्वेषणात्मक शोध के लिए उपयुक्त है और परिस्थितियों को समझने का प्रारंभिक आधार प्रदान करती है। हालाँकि इसकी सबसे बड़ी कमी इसकी कम विश्वसनीयता, अधिक पक्षपात और परिणामों को पूरी जनसंख्या पर लागू न कर पाने की समस्या है। इसके बावजूद अनेक सामाजिक अनुसंधानों, स्वास्थ्य सर्वेक्षणों और व्यवहार अध्ययन में यह प्रभावी प्रारंभिक साधन के रूप में उपयोग में लाई जाती है।
Probability बनाम Non-Probability Sampling (मुख्य अंतर)
| आधार | Probability Sampling | Non-Probability Sampling |
| चयन की संभावना | ज्ञात | अज्ञात |
| यादृच्छिकता | है | नहीं है |
| विश्वसनीयता | अधिक | कम |
| Sampling Error | मापा जा सकता | नहीं मापा जा सकता |
| Bias | कम | अधिक |
| लागत/समय | अधिक | कम |
| उपयोग | वैज्ञानिक व वर्णनात्मक शोध | प्रारंभिक व अन्वेषणात्मक शोध |