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      Home Media Study Material

      Picture framing

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      2 years ago
      in Media Study Material, TV
      0

      Picture framing or composition is basic aspect of camera shooting .This article discusses various aspects of it.

      पिक्चर फ्रेमिंग Picture framing

      टीवी स्क्रीन पर दिखाए जाने वाले पिक्चर की उचित फ्रेमिंग टीवी वीडियो फिल्म कार्यक्रम निर्माण का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है ।

      पिक्चर फ्रेमिंग किसी दृश्य के विविध घटकों के परस्पर अंतर क्रिया को कहते हैं । यह एक छवि बनाने की एक विधि है। इसमें किसी विषय, यानी, किसी व्यक्ति या वस्तु पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, उन्हें दृश्य के मौजूद अन्य हिस्सों से अलग करके प्रस्तुत किया जाता है।

      इस प्रकार से फ्रेमिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत निर्देशक, जाने अनजाने में दर्शकों में एक दृष्टिकोण का निर्माण करने के लिए कार्य करते हैं । इससे दिए गए स्थिति के तथ्यों को दूसरों द्वारा एक विशेष तरीके से व्याख्या करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

      पिक्चर फ्रेमिंग का महत्व Importance of picture framing

      कैमरे द्वारा गतिशील वस्तु की पर्दे पर फ्रेम करते समय जिन मुख्य बातों को ध्यान में रखा जाता है उसमें से काफी बातें वास्तव में स्थिर अथवा स्टील फोटोग्राफी के पिक्चर फ्रेमिंग से ही लिए गए हैं । इसके साथ ही एक तथ्य यह भी है कि पिक्चर फ्रेमिंग के संदर्भ में बनाए गए नियम का हर प्रकार से करना न तो संभव है न ही ऐसा करना अति आवश्यक है । फिलहाल कैमरे के प्रयोग के दौरान यह नियम एक पथ प्रदर्शक की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इनके प्रयोग से तैयार किया जाने वाला कार्यक्रम अत्यधिक प्रभावी एवं उपयुक्त हो जाता है।


      विभिन्न को दिखाते समय प्रत्येक फ्रेम का सहज एवं स्वाभाविक देखना आवश्यक है। किसी भी दृश्य को विविध प्रकार एवं नजरिये से दिखाया जा सकता है। किन्तु कार्यक्रम के प्रसंग एवं आवश्यकता को ध्यान दिखाए जाने वाले दृश्य को सहज बनाए रखने के लिए अनेक बातों को ध्यान में रखना पड़ता है ।

      पिक्चर फ्रेमिंग के महत्व को हम निम्न प्रकार से बता सकते हैं-

      • यह पिक्चर को सही विन्दु पर रखने में मदद करता है।
      • किसी पिक्चर में क्या एवं कैसे दिखाना है वह इसका निर्धारण करता है।
      • स्क्रीन में पिक्चर को इस प्रकार से प्रस्तुत करना है जिससे कि वह वॉंछित संदेश को सही प्रकार से दर्शकों को देता है। पिक्चर फ्रेमिंग का सन्दर्भ में निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए –


      पिक्चर फ्रेमिंग के संदर्भ में मुख्य बातें

      पिक्चर फ्रेमिंग के संदर्भ में निम्न बातों को ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है

      उचित समन्वय Proper composition in picture framing


      दृश्य में दिखाए जाने वाले बैकग्राउंड में स्थित किसी भी वस्तु के चित्र का व्यक्ति के साथ अनायास समन्वय नहीं होना चाहिए। किसी के कारण अदृश्य पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए बैकग्राउंड में दीवार में दीवार से टंगी तस्वीर को व्यक्ति के सिर के ऊपर दिखा देने पर वह उसके सिर पर बैठे हुए का या किसी अन्य दृश्य के होने का भ्रम पैदा कर सकता है।


      इसी प्रकार खड़े अथवा बैठे व्यक्ति के बगल में दीवार पर यदि तस्वीर लगी वह जो कि उस व्यक्ति के आकार के अनुरूप हो, तो वह तस्वीर दर्शकों की नजर में चुपचाप बैठा हुआ व्यक्ति समझा जा सकता है। इसी प्रकार कोई व्यक्ति बैकग्राउंड में बैठा या खड़ा है एवं बैकग्राउंड में ही कहीं पर गुलदस्ता रखा गया है तो व्यक्ति एवं गुलदस्ता का प्रयोग इस ढंग से नहीं हो जाना चाहिए कि वह व्यक्ति के सिर पर उगा हुआ एक पौधा सदृश्य दिखे।


      रूल आफ थर्ड Rule of Third in picture framing

      पिक्चर फ्रेमिंग के संदर्भ मेंरूल आफ थर्ड एक बहुत ही महत्वपूर्ण नियम है।कई बार इसका पालन करना बहुत ही आवष्यक हो जाता है। इस नियम के अंतर्गत टीवी स्क्रीन को क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर दिशा में 3 बराबर भागों में विभाजित करके दिखाए जाने वाले वस्तु को उन चार बिंदुओं पर लाया जाता है जहां क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर रेखाएं एक दूसरे को काटती है। इस तरह से फ्रेमिंग करने का कार्य अपने आप में एक कठिन कार्य है। किसी भी कैमरा पर्सन के लिए रूल आफ थर्ड का इस्तेमाल हमेषा कर पाना संभव नहीं है। इसी के साथ एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि हर दृश्य के साथ इस प्रकार के नियम को लागू करना संभव नहीं है।

      लीड स्पेस Lead space in picture framing
      लीडस्पेस को नोज रूम एवं टॉप स्पेस भी कहते हैं। इसका संबंध आगे की दिशा में वस्तु के आगे पीछे खाली छोड़े गए स्थान से होता है। इस फ्रेमिंग का उद्देश्य व्यक्ति वस्तु के सामने उसके पीछे की अपेक्षा अधिक स्थान देना होता है । दृश्य फ्रेमिंग में क्षैतिज दिशा में व्यक्ति के आगे की तुलना में पीछे ज्यादा स्थान देने से एक भ्रम वाली स्थिति पैदा हो जाती है।


      डेड सेंटर Dead centre in picture framing


      जब व्यक्ति या वस्तु को टीवी पर्दे पर क्षैतिज रूप में मध्य बिंदु पर पिक्चर कंपोज करते हैं तो उसे डेड सेंटर फ्रेमिंग कहते हैं । किंतु टीवी पर्दे पर इस प्रकार की फ्रेमिंग को एवं नकारात्मक कंपोजिशन के रूप में कहते है । ऐसा माना जाता है कि इस फ्रेमिंग में व्यक्त किये गये दृश्य में व्यक्ति एवं वस्तु की दृष्यात्मक गतिशीलता कम हो जाती है । उसकी जगह पर दृश्य में एक स्थितिता अथवा ठहराव आ जाती है। अतः पिक्चर फ्रेमिंग के दौरान पर्दे पर उसे बिल्कुल मध्य बिंदु के बजाय आवश्यकतानुसार थोड़ा बॉंये अथवा दाएं सेट करना चाहिए।


      सेट पर कलाकार के गतिशील होने की स्थिति में इस बात का भी ध्यान दिया जाता है कि यदि वह कलाकार किसी दिशा में आगे बढ़ रहा है तो उसके पीछे की अपेक्षा सामने वाले भाग में अधिक स्थान हो। ऐसा करने के लिए कैमरा पर्सन को कलाकार के गति के साथ सामंजस्य बैठाकर कैमरे को आवश्यकतानुसार आगे अथवा पीछे किया जाता है। कैमरा की स्थिति को बदलने के लिए जो भी तरीके अपनाए जाएं इस प्रक्रिया के दौरान पूरे पिक्चर के सभी पहलुओं को ध्यान दिया जाता है

      ऐसा आभास होने लगता है कि व्यक्ति के पीछे कुछ हो रहा है या होने वाला है। इससे दर्शकों के मन में एक अनावश्यक कौतूहल पैदा हो जाता है । विषय के संदर्भ की आवश्यकता को ध्यान में रखकर ही व्यक्ति के पीछे क्षैतिज दिशा में ज्यादा जगह किया जाना चाहिए । अन्यथा सामान्य स्थिति में उसके आगे ही ज्यादा जगह दिया जाना चाहिए।

      हेड रूम Head room in picture framing
      व्यक्ति के सिर के ऊपर एवं फ्रेम के नीचे छत के बीच वाले भाग को हेड रूम कहते हैं। टीवी पर्दे पर पिक्चर कंपोजिशन करते समय कई बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। क्रॉपिंग की आशंका के कारण पिक्चर के चारों तरफ समुचित स्थान छोड़ना आवश्यक होता है। किसी भी व्यक्ति के चारों तरफ जगह देखने की हमारी सामान्य आदत बन गई है । इस कारण यह पिक्चर कंपोजिशन के वस्तु के चारों तरफ खाली स्थान न छूटा आना हुआ हो, तो फिर उसे देखने में काफी अटपटा महसूस होता है।


      हेड रूम एवं लीडस्पेस की आवश्यकता Need of head room and lead space in picture framing


      पिक्चर वस्तु की फ्रेमिंग करते समय हेड रूम एवं लीडस्पेस के लिए जगह देना कई दृष्टि से बहुत ही आवश्यक हो जाता है। तकनीकी पहलू से देखें तो संपादन के समय यदि क्रापिंग करने की जरूरत पड़ी तो हेड रूम के बिना संभव नहीं है । सौंदर्य की दृष्टि से भी उचित के जरूर देना आवश्यक हो जाता है इसके अभाव में दिखाए जाने वाले व्यक्ति काफी अटपटा अथवा असुविधाजनक की स्थिति में दिखाई पड़ता है । किंचित अवसर पर वह छत को अपने सिर पर उठाता हुआ प्रतीत होता है। दूसरी तरफ, अधिक हेडरूम देने पर वह जमीन में धॅसता हुआ प्रतीत होता है।


      शरीर का आंशिक भाग दर्शाना Showing part of body in picture framing


      कैमरे द्वारा पिक्चर फ्रेमिंग के दौरान शरीर का आंशिक भाग दिखाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह शरीर के स्वाभाविक जोड़ वाले भाग से न काटा जाये। शरीर के किसी स्वाभाविक जोड़ वाली जगह से काट कर दिखाने पर वह दर्शकों को अत्यधिक अटपटा लग सकता है।


      उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पिक्चर फ्रेमिंग के अंतर्गत शरीर की आंशिक हिस्से को दिखाते समय गला, धड़ , कलाई आदि जैसे जगहों की बजाय कहीं बीच से कटा दिखाया जाना चाहिए । इससे दर्शकों को फ्रेम में दिखाए जाने वाले व्यक्ति के शरीर के किसी भी अंग के अधूरे उनकी गलतफहमी नहीं होती है।

      साइकोलॉजिकल क्लोजर – Psychological closure in picture framing


      पिक्चर फ्रेमिंग में मनोवैज्ञानिक सभी पता अथवा साइकिल आजकल क्लोजर का सिद्धांत का बहुत ही अधिक महत्व है। इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी परिचित वस्तु के आकार को आंशिक रूप में दिखाया जा रहा हो तो हमारा मस्तिष्क अपने ढंग से पूर्ण आकार बना कर देख लेता है । मस्तिष्क के इस गुण के कारण ही टीवी पटल पर वस्तुओं के क्लोजअप दिखाने पर उसके अधूरे या गायब या मिसिंग भाग की कमी उसे असहज नहीं होने देती है।

      इसे भी पढ़ें – टीवी एंकर

      दूसरी तरफ, टीवी पर्दे पर किसी व्यक्ति या वस्तु के पूर्ण आकार को लगातार दिखाते रहने की आवश्यकता नहीं रहती है। पूर्ण आकार दिखाने में सामान्यतया कोई बड़ा दृश्य, वस्तु बैकग्राउंड स्थित में चले जाते हैं । यह स्थिति से बहुत देर तक नहीं बनाया जा सकता है।

      पिक्चर कंपोजिशन में इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि व्यक्ति के चेहरे शरीर के चारों तरफ समुचित स्थान रहे । ऐसा ना होने पर चेहरा टीवी बॉक्स में बहुत जकड़े हुए रूप में दिखता है । हमारे आंख की यह स्वाभाविक प्रकृति होती है कि वह किसी भी व्यक्ति के उसके अगल-बगल वह स्थान के साथ देखती है। यदि फ्रेम में सिर्फ शरीर ही दिखे तो इससे यह आभास मिलता है कि व्यक्ति के शरीर को जकड़ दिया गया है।

      पिक्चर में गहराई Depth in picture
      कैमरा का समुचित उपयोग न होने पर टीवी के परदे पर पिक्चर द्धिआयामी रूप में ही दिखती है किंतु इसे त्रिआयामी अथवा दो आयामी होने के साथ-साथ गहराई का आभास देने के लिए कैमरा पर्सन को कैमरे द्वारा इसे विभिन्न कोनों से दर्शाया जाता है।
      पिक्चर का आयामी दिखाई देना इस दृष्टि से आवश्यक है कि इससे वह अटपटा अथवा समतल या बिल्कुल फ्लैट रूप में नहीं लगता है । पिक्चर में 3डी का आभास देने के लिए कैमरे को विशेष और ऊपर रखने के अतिरिक्त अन्य दूसरे तरीके भी अपनाए जाते हैं।


      दर्शकों को 3डी आकार का एहसास देने के लिए सेट पर होने वाले एक्शन का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। यदि कलाकार एक लाइन में पीछे खड़े होकर बोल रहे हैं तो वह त्रिविमीय दिखाने के लिए उतना प्रभावी नहीं होता है, जितना कि कलाकार द्वारा गतिशील होकर विभिन्न स्थितियों में बोले जाने वाला संवाद होता है।

      https://iceland-photo-tours.com/articles/photography-techniques/ultimate-guide-to-composition-in-photography


      इसी प्रकार कैमरा द्वारा एक ही ढंग के कोण पर कलाकार वस्तु की फ्रेमिंग की जगह उसे विभिन्न एंगिल से करना त्रिविमीय स्वरूप को दिखाने में ज्यादा सहायक होता है ।

      सेट पर दिखाए जाने वाले विभिन्न वस्तुओं के माध्यम से भी दृश्य के त्रिविमीय स्वरूप स्पष्ट किया जाता है । सेट पर जो भी वस्तु रखी हो, उन्हें दुकान पर रखे जाने वाली वस्तुओं की तरह नहीं सजाना चाहिए। अन्यथा वह हास्यास्पद कभी-कभी बोझिल अथवा उबाऊ दृश्य पैदा कर देता है।


      पिक्चर फिल्म के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति सामने आगे की दिशा में आ रहा है अथवा दूर जा रहा है तो दर्शकों को उस व्यक्ति, वस्तु की दूरी एवं दिशा का एहसास दिलाने के लिए संदर्भ बिंदु के रूप में विभिन्न वस्तुओं का स्वाभाविक एवं सहजता के साथ उपयोग किया जाना चाहिए। इसी तरह यदि व्यक्ति एक स्थान पर ही गतिशील है तो उसे स्थिति में भी संदर्भ बिंदु के रूप में किसी एक अथवा कई वस्तु का इस्तेमाल किया जा सकता है।

      निष्कर्ष
      पिक्चर फ्रेमिंग के सन्दर्भ में बनो गये उक्त सभी नियम एक मार्ग दर्शन का कार्य करते है। हर अवसर पर सभी प्रकार के नियम का पालन करना आवश्यक नही है , न ही संभव है। किन्तु जब जहॉ पर इसकी आवश्यकता होती है, उन जगहों पर इसका पालन करने से इसका प्रभाव एवं उपयोगिता बढ़ जाती है।

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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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