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      Home Media Study Material Communication Theory & Models

      Priming Theory of Media मीडिया का प्राइमिंग सिद्धांत

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      1 month ago
      in Communication Theory & Models, Media Study Material
      0

        Priming Theory of Media मीडिया का प्राइमिंग सिद्धांत

      (अर्थ और परिभाषा, मुख्य तत्त्व, महत्व , सीमाएँ / आलोचनाएँ , आज के युग में प्रासंगिकता )

             परिचय (Introduction)  मीडिया समाज में केवल सूचना देने या समाचार प्रसारित करने का कार्य नहीं करता, बल्कि यह लोगों के सोचने, निर्णय लेने और प्रतिक्रिया करने की प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है। मीडिया संदेश हमारी संज्ञानात्मक (cognitive) और मनोवैज्ञानिक (psychological) प्रक्रियाओं को इस तरह सक्रिय करता है कि हम किसी विषय, व्यक्ति या घटना के प्रति एक निश्चित दृष्टिकोण अपनाने लगते हैं। इसी प्रक्रिया को समझाने वाला सिद्धांत है — Priming Theory (प्राइमिंग सिद्धांत)। इस सिद्धांत के अनुसार, मीडिया द्वारा प्रस्तुत की गई सूचनाएँ हमारे मस्तिष्क में कुछ विशेष विचारों, मान्यताओं और भावनाओं को “प्राइम” यानी सक्रिय कर देती हैं, जो आगे चलकर हमारे निर्णय (judgment) और व्यवहार (behavior) को प्रभावित करते हैं।

       अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition)  

       अर्थ (Meaning): ‘Priming’ शब्द का अर्थ है — किसी विचार, अवधारणा या भावना को पूर्व-सक्रिय (pre-activated) करना ताकि बाद में वह निर्णय या प्रतिक्रिया को प्रभावित करे। जब हम मीडिया में कोई खबर, छवि या कहानी देखते हैं, तो वह हमारे भीतर कुछ विचारों या भावनाओं को सक्रिय कर देती है। बाद में जब हम किसी समान विषय से जुड़ी चीज़ का मूल्यांकन करते हैं, तो हमारा मस्तिष्क पहले से सक्रिय उन भावनाओं या विचारों के आधार पर निर्णय लेता है।

       परिभाषा (Definition):   Priming Theory of Media

      1. Iyengar and Kinder (1987) के अनुसार — “Priming refers to the process by which the media influence the criteria by which the public evaluates political leaders or events.”
        (प्राइमिंग वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मीडिया यह तय करता है कि जनता किसी राजनीतिक व्यक्ति या घटना का मूल्यांकन किन मानकों के आधार पर करेगी।)
      2. Scheufele and Tewksbury (2007) के अनुसार — “Priming is the effect of media exposure that makes certain information more accessible in an individual’s memory.”
        (प्राइमिंग वह प्रभाव है जिसके तहत मीडिया के सम्पर्क से व्यक्ति के मन में कुछ सूचनाएँ अधिक सुलभ और प्रभावी हो जाती हैं।)

      संक्षिप्त परिभाषा: प्राइमिंग सिद्धांत के अनुसार, मीडिया किसी मुद्दे, व्यक्ति या घटना को बार-बार प्रस्तुत कर लोगों के मन में कुछ विशेष विचारों को सक्रिय (activate) करता है, जिससे उनके विचार, मूल्यांकन और व्यवहार प्रभावित होते हैं।   Priming Theory of Media

           मुख्य अवधारणा (Main Concept of Priming Theory) प्राइमिंग सिद्धांत का मूल विचार यह है कि मीडिया हमारे सोचने की प्रक्रिया को दिशा देता है। जब मीडिया किसी विशेष मुद्दे पर अधिक समय या ध्यान देता है, तो लोग उसी मुद्दे को सामाजिक या राजनीतिक महत्व का मानने लगते हैं। इस सिद्धांत का गहरा संबंध Agenda Setting Theory और Framing Theory से है। जहाँ एजेंडा सेटिंग यह तय करती है कि “हम किन मुद्दों के बारे में सोचें”, वहीं प्राइमिंग यह तय करती है कि “हम उन मुद्दों के बारे में कैसे सोचें।”

       सिद्धांत के मुख्य तत्त्व (Core Elements):

      1. Exposure (संपर्क): जब व्यक्ति किसी विषय पर मीडिया सामग्री के सम्पर्क में बार-बार आता है।
      2. Activation (सक्रियता): यह सम्पर्क व्यक्ति के मस्तिष्क में कुछ विचारों या भावनाओं को सक्रिय करता है।
      3. Accessibility (सुलभता): सक्रिय विचार स्मृति में अधिक सुलभ हो जाते हैं और आगे किसी निर्णय के समय जल्दी सामने आते हैं।
      4. Judgment (निर्णय): व्यक्ति जब किसी व्यक्ति, दल या घटना का मूल्यांकन करता है, तो वही “प्राइम” विचार निर्णय को प्रभावित करते हैं।

       उदाहरण (Examples):   Priming Theory of Media

      1. राजनीतिक प्राइमिंग: यदि समाचार मीडिया किसी नेता की भ्रष्टाचार-संबंधी खबरें बार-बार दिखाता है, तो जनता के मन में “ईमानदारी” मूल्यांकन का प्रमुख मानक बन जाता है। जनता उसी मानदंड से अन्य नेताओं को भी आंकने लगती है।
      2. सामाजिक मुद्दे: जब मीडिया लगातार अपराध, हिंसा या आतंक से जुड़ी खबरें दिखाता है, तो दर्शकों में भय और असुरक्षा की भावना “प्राइम” हो जाती है।
      3. विज्ञापन में प्राइमिंग: जब किसी ब्रांड का विज्ञापन बार-बार सकारात्मक भावनाओं (जैसे – परिवार, सफलता, खुशी) के साथ दिखाया जाता है, तो उपभोक्ता उस ब्रांड को उन्हीं भावनाओं से जोड़ने लगता है।

       महत्व (Importance of   Priming Theory of Media ) Agenda Building Theory of Media एजेंडा बिल्डिंग सिद्धांत, Agenda setting theory

      1. मीडिया प्रभावों को समझने में उपयोगी: यह सिद्धांत बताता है कि मीडिया न केवल हमें सूचना देता है बल्कि हमारे सोचने के ढाँचे (thinking framework) को भी बदलता है।
      2. राजनीतिक संचार में भूमिका: चुनावों के दौरान मीडिया जिन मुद्दों पर ज़ोर देता है, वही जनता के मतदान निर्णय (voting behavior) को प्रभावित करते हैं।
      3. जनमत निर्माण में सहायक: मीडिया किसी मुद्दे को जितना अधिक प्रमुखता देता है, उतना ही वह मुद्दा जनता की चर्चा और विचार का हिस्सा बन जाता है।
      4. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण: यह सिद्धांत बताता है कि मनुष्य का मस्तिष्क निष्क्रिय नहीं, बल्कि मीडिया अनुभवों से “तैयार” (primed) होता है, जिससे निर्णय स्वतः प्रभावित होते हैं।
      5. विज्ञापन और मार्केटिंग में उपयोग: प्राइमिंग का उपयोग विज्ञापनों में ब्रांड को सकारात्मक भावनाओं या जीवनशैली से जोड़ने के लिए किया जाता है।
      6. शिक्षा और सामाजिक अभियानों में प्रभावी: स्वास्थ्य, स्वच्छता या पर्यावरण से जुड़ी मीडिया मुहिमों में प्राइमिंग का उपयोग करके सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

      सीमाएँ / आलोचनाएँ (Demerits / Criticisms)   Priming Theory of Media Cultivation Theory of Communication Framing Theory of Mass Media फ्रेमिंग सिद्धांत

      1. अल्पकालिक प्रभाव (Short-term effect): कई शोधों से पता चला है कि प्राइमिंग का प्रभाव अस्थायी होता है; कुछ समय बाद स्मृति निष्क्रिय हो जाती है।
      2. अन्य कारकों की अनदेखी: व्यक्ति की शिक्षा, अनुभव, सामाजिक परिवेश जैसे कारक भी विचारों को प्रभावित करते हैं, जिन्हें यह सिद्धांत पर्याप्त रूप से नहीं मानता।
      3. मीडिया प्रभाव का अति-मूल्यांकन: यह मान लेना कि केवल मीडिया ही लोगों की राय बदल देता है, अतिशयोक्ति है। सामाजिक संवाद और व्यक्तिगत अनुभव भी महत्वपूर्ण हैं।
      4. सभी दर्शकों पर समान प्रभाव नहीं: अलग-अलग लोग एक ही मीडिया संदेश को अलग ढंग से ग्रहण करते हैं। प्राइमिंग सिद्धांत इसे सामान्यीकृत रूप में समझाता है।
      5. मापन की कठिनाई: यह जानना कठिन है कि कौन-सी विशेष जानकारी किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में “प्राइम” हुई है और उसका निर्णय पर क्या वास्तविक प्रभाव पड़ा।

      आज के युग में प्रासंगिकता (Relevance Today)

      1. डिजिटल मीडिया में प्राइमिंग का बढ़ता प्रभाव: सोशल मीडिया एल्गोरिद्म हमें बार-बार वही सामग्री दिखाते हैं जो हमारे विचारों से मेल खाती है। यह हमारी सोच को “प्राइम” कर Echo Chamber Effect पैदा करता है।
      2. राजनीतिक ध्रुवीकरण (Political Polarization): ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक पार्टियाँ या समूह अपने समर्थकों के मन में बार-बार एक ही विचार डालकर उन्हें प्राइम करते हैं — जैसे “राष्ट्रवाद”, “भ्रष्टाचार विरोध”, “विकास”, आदि।
      3. विज्ञापन और उपभोक्ता व्यवहार: YouTube या Instagram पर बार-बार दिखने वाले विज्ञापन उपभोक्ता की स्मृति में ब्रांड को प्राइम करते हैं। परिणामस्वरूप खरीद निर्णय प्रभावित होता है।
      4. समाचार चयन में प्राइमिंग: मीडिया संस्थान यह तय करते हैं कि कौन-सा विषय पहले दिखाना है और कौन-सा नहीं। इससे जनता के ध्यान का केंद्र और प्राथमिकताएँ तय होती हैं।
      5. सामाजिक प्राइमिंग: जब मीडिया किसी समुदाय, वर्ग या जेंडर के बारे में बार-बार एक जैसी छवि दिखाता है, तो समाज का दृष्टिकोण उसी दिशा में “प्राइम” होता है — जिससे स्टीरियोटाइपिंग (stereotyping) बढ़ती है।

       निष्कर्ष (Conclusion) प्राइमिंग सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि मीडिया केवल सूचना देने वाला माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी सोचने की प्रक्रिया को सूक्ष्म और मनोवैज्ञानिक रूप से आकार देता है। मीडिया यह तय नहीं करता कि हम “क्या सोचें”, बल्कि यह तय करता है कि “किस दृष्टिकोण से सोचें।” आज जब मीडिया निरंतर डिजिटल, दृश्यात्मक और एल्गोरिद्म-आधारित हो गया है, तब यह सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक और प्रभावशाली है। हालाँकि इसके कुछ सीमाएँ हैं — जैसे प्रभाव का अल्पकालिक होना और व्यक्तिगत विविधताओं की अनदेखी — फिर भी यह सिद्धांत मीडिया मनोविज्ञान और जनसंचार अध्ययन में एक महत्वपूर्ण आधारशिला बना हुआ है।

       संदर्भ (References)

      Iyengar, S., & Kinder, D. R. (1987). News That Matters: Television and American Opinion. University of Chicago Press.

      Scheufele, D. A., & Tewksbury, D. (2007). Framing, Agenda Setting, and Priming: The Evolution of Three Media Effects Models. Journal of Communication, 57(1), 9–20.

      McCombs, M., & Shaw, D. L. (1972). The Agenda-Setting Function of Mass Media. Public Opinion Quarterly, 36(2), 176–187.

      Baran, S. J., & Davis, D. K. (2012). Mass Communication Theory: Foundations, Ferment, and Future. Wadsworth.

      McQuail, D. (2010). McQuail’s Mass Communication Theory. Sage Publications.

      Keval J. Kumar (2018). Mass Communication in India. Jaico Publishing House.

      Bryant, J., & Zillmann, D. (2002). Media Effects: Advances in Theory and Research. Routledge.

      शर्मा, एस. के. (2020). मीडिया प्रभाव सिद्धांत. नई दिल्ली: राजप्रकाशन.

      Tags: media theory
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      Dr. Arvind Kumar Singh

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