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      Home Media Study Material Communication Theory & Models

      Reception Theory of Media मीडिया काअभिग्रहण सिद्धांत

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      1 month ago
      in Communication Theory & Models, Media Study Material
      0

      Reception Theory of Media

       परिचय (Introduction)  मीडिया अध्ययन के इतिहास में लंबे समय तक यह माना जाता था कि संचार की प्रक्रिया “प्रेषक से प्राप्तकर्ता तक संदेश के स्थानांतरण” की एक दिशा वाली प्रक्रिया है। प्रारंभिक सिद्धांतों जैसे Hypodermic Needle Theory (सूई सिद्धांत) या Magic Bullet Theory में दर्शक को निष्क्रिय (passive) माना गया — यानी वह केवल संदेश ग्रहण करता है, उस पर प्रतिक्रिया नहीं देता। परंतु 1970 के दशक के बाद, मीडिया शोध में एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ जिसने दर्शक को “सक्रिय भागीदार (active participant)” के रूप में देखा। इसी दृष्टिकोण से जन्म हुआ —

       Reception Theory या अभिग्रहण का सिद्धांत ।  

      यह सिद्धांत कहता है कि किसी मीडिया संदेश का अर्थ संदेश भेजने वाला नहीं बल्कि संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति स्वयं तय करता है। हर व्यक्ति अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषिक और व्यक्तिगत पृष्ठभूमि के आधार पर संदेश को अलग ढंग से समझता है।

      अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition) Reception Theory of Media मीडिया काअभिग्रहण सिद्धांत

       अर्थ (Meaning): “Reception” का अर्थ है — ग्रहण करना या स्वीकार करना। इस सिद्धांत के अनुसार, मीडिया संदेशों का अर्थ स्थिर नहीं होता; बल्कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि दर्शक उसे कैसे ग्रहण, व्याख्या और अर्थान्वित करते हैं। यानी, मीडिया जो कहता है और दर्शक जो समझता है — दोनों में समानता आवश्यक नहीं।

       मुख्य परिभाषाएँ (Definitions): Reception Theory of Media मीडिया का अभिग्रहण सिद्धांत

      1. Stuart Hall (1980) के अनुसार —

      “The meaning of a media message is not fixed by its sender; rather it is interpreted by audiences within the context of their own social positions.”
      (मीडिया संदेश का अर्थ प्रेषक द्वारा निश्चित नहीं किया जाता, बल्कि दर्शक अपनी सामाजिक स्थिति के संदर्भ में उसकी व्याख्या करते हैं।)

      1. David Morley (1983) के अनुसार —

      “Reception analysis emphasizes how audiences interpret media texts according to their cultural and social backgrounds.”
      (अभिग्रहण विश्लेषण इस बात पर ज़ोर देता है कि दर्शक अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि के अनुसार मीडिया संदेशों की व्याख्या करते हैं।)

      परिभाषा: अभिग्रहण सिद्धांत के अनुसार, मीडिया संदेशों का अर्थ दर्शक स्वयं रचता है।
      यह सिद्धांत दर्शक को सक्रिय मानता है, जो अपने अनुभव, संस्कृति, भाषा और वर्ग के अनुसार मीडिया सामग्री को समझने, स्वीकारने या अस्वीकारने का निर्णय करता है।

      मुख्य अवधारणा (Main Concept of Reception Theory)

      उत्पत्ति और विकास: अभिग्रहण सिद्धांत का विकास ब्रिटिश सांस्कृतिक अध्ययन (British Cultural Studies) के अंतर्गत हुआ। इसकी आधारशिला Stuart Hall के 1973 में प्रकाशित लेख “Encoding/Decoding Model of Communication” से मानी जाती है।

      Encoding/Decoding Model के अनुसार — मीडिया निर्माता (encoder) किसी संदेश को एक विशेष अर्थ के साथ तैयार करता है, लेकिन दर्शक (decoder) उसे अपने दृष्टिकोण से पढ़ता है। इस प्रक्रिया में तीन प्रकार के पाठक या दर्शक होते हैं:

      1. Dominant / Preferred Reading (प्रधान या स्वीकृत व्याख्या): दर्शक वही अर्थ स्वीकार करता है जो निर्माता ने तय किया है। उदाहरण: देशभक्ति फिल्म देखकर दर्शक राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ जाता है।
      2. Negotiated Reading (समझौता आधारित व्याख्या): दर्शक कुछ हद तक मीडिया के अर्थ से सहमत होता है, लेकिन अपनी व्यक्तिगत या सामाजिक स्थिति के अनुसार उसमें संशोधन करता है।
        उदाहरण: फिल्म पसंद आती है, पर उसकी राजनीति से असहमति रखता है।
      3. Oppositional Reading (विरोधी व्याख्या): दर्शक मीडिया संदेश को पूरी तरह अस्वीकार करता है और उसके विपरीत अर्थ ग्रहण करता है। उदाहरण: विज्ञापन में दिखाए “आदर्श सौंदर्य” की परिभाषा को खारिज कर देना।

       मुख्य विचार: Reception Theory of Media मीडिया काअभिग्रहण सिद्धांत

      • मीडिया के संदेश का अर्थ निश्चित या एकमात्र नहीं होता।
      • हर व्यक्ति की सामाजिक पहचान (social identity) — जैसे वर्ग, जाति, लिंग, धर्म, शिक्षा, भाषा आदि — उसकी व्याख्या को प्रभावित करती है।
      • दर्शक निष्क्रिय नहीं बल्कि अर्थ-निर्माता (meaning producer) होता है।

       महत्व (Importance of Reception Theory)

      1. दर्शक की सक्रिय भूमिका को मान्यता: इस सिद्धांत ने मीडिया अध्ययन में पहली बार दर्शक को निष्क्रिय श्रोता नहीं बल्कि सक्रिय व्याख्याकार (active interpreter) के रूप में स्थापित किया।
      1. सांस्कृतिक विविधता की पहचान: यह सिद्धांत बताता है कि अलग-अलग संस्कृतियों और समाजों में एक ही मीडिया संदेश को अलग ढंग से समझा जाता है।
      1. लोकप्रिय संस्कृति (Popular Culture) के अध्ययन में उपयोगी: फिल्मों, धारावाहिकों, विज्ञापनों और संगीत जैसे मनोरंजन माध्यमों को समाज कैसे ग्रहण करता है — यह सिद्धांत उस पर प्रकाश डालता है।
      1. समाज और मीडिया के पारस्परिक संबंध को स्पष्ट करना: यह सिद्धांत दिखाता है कि मीडिया केवल समाज को प्रभावित नहीं करता बल्कि समाज भी मीडिया के अर्थों को पुनः निर्मित करता है।
      1. जनतांत्रिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहन: यह सिद्धांत संचार को एकतरफा प्रक्रिया नहीं बल्कि सहभागिता आधारित संवाद (interactive communication) के रूप में देखता है।
      1. नारीवादी और उपनिवेशोत्तर अध्ययन में उपयोग: महिलाओं और उपनिवेशों के समाजों द्वारा मीडिया संदेशों की व्याख्या कैसे भिन्न होती है — इसका अध्ययन इस सिद्धांत की मदद से किया गया।

       सीमाएँ (Demerits / Criticisms) Reception Theory of Media मीडिया काअभिग्रहण सिद्धांत

      1. अत्यधिक व्यक्तिपरकता (Subjectivity): प्रत्येक व्यक्ति की व्याख्या को समान महत्व देना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि तब किसी संदेश का निश्चित अर्थ नहीं रह जाता।
      2. मीडिया शक्ति की उपेक्षा: यह सिद्धांत यह नहीं बताता कि मीडिया संस्थान या कॉरपोरेट्स कैसे जनता की व्याख्या को प्रभावित करते हैं।
      3. प्रभाव का मापन कठिन: यह जानना मुश्किल है कि दर्शक वास्तव में क्या अर्थ ग्रहण कर रहा है, क्योंकि यह मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है।
      4. सभी संदेश समान नहीं: राजनीतिक या समाचार जैसे संदेशों की व्याख्या मनोरंजन की तुलना में अधिक सीमित हो सकती है, लेकिन सिद्धांत दोनों को समान रूप से देखता है।
      5. अत्यधिक सांस्कृतिक निर्भरता: हर चीज़ को केवल सांस्कृतिक संदर्भों में देखने से आर्थिक या राजनीतिक संरचनाओं की भूमिका कम आंकी जाती है।

       आज के युग में प्रासंगिकता (Relevance in the Modern Era)

      1. डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया में प्रयोग: आज के समय में दर्शक सिर्फ ग्रहणकर्ता नहीं बल्कि सह-निर्माता (co-creator) बन चुका है। YouTube, Instagram, X (Twitter) जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर लोग वीडियो, मीम, और पोस्ट के माध्यम से मीडिया के अर्थों को पुनः गढ़ते हैं — यही आधुनिक “reception” है।

      2. User Comments और Reactions के रूप में व्याख्या: जब कोई फिल्म या विज्ञापन रिलीज़ होती है, तो दर्शक अपने रिव्यू, कमेंट और प्रतिक्रियाओं के जरिए विपरीत या वैकल्पिक अर्थ प्रस्तुत करते हैं।

      3. नारीवादी दृष्टिकोण में प्रयोग: महिलाएँ जब किसी फिल्म में पुरुष-प्रधान दृष्टिकोण को चुनौती देती हैं, तो वे विरोधी व्याख्या (oppositional reading) प्रस्तुत करती हैं।

      4. राजनीतिक और सामाजिक संवाद: मीडिया समाचारों को जिस रूप में प्रस्तुत करता है, जनता उसकी व्याख्या अपनी विचारधारा और अनुभवों के आधार पर करती है — इससे राजनीतिक ध्रुवीकरण और संवाद दोनों उत्पन्न होते हैं।

      5. शिक्षा और संचार अनुसंधान में महत्व: इस सिद्धांत ने शिक्षा, संस्कृति और मीडिया अध्ययन को एक समाजशास्त्रीय और मानवीय दिशा दी है, जहाँ दर्शक भी संवाद का सक्रिय भाग है।

       निष्कर्ष (Conclusion) Reception Theory of Media मीडिया काअभिग्रहण सिद्धांत

      अभिग्रहण सिद्धांत ने मीडिया अध्ययन को एक नई दिशा दी — जहाँ पहले दर्शक को केवल सूचना ग्रहण करने वाला समझा जाता था, वहीं अब उसे अर्थ निर्माता (meaning maker) के रूप में देखा जाने लगा। यह सिद्धांत संचार प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बनाता है, क्योंकि यह मानता है कि अर्थ किसी एक व्यक्ति या संस्था की संपत्ति नहीं है। हर दर्शक, अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर, मीडिया को नए अर्थों से भर देता है।

      आज के डिजिटल और सोशल मीडिया युग में, जब हर व्यक्ति प्रतिक्रिया दे सकता है, कंटेंट बना सकता है और अर्थ को पुनः परिभाषित कर सकता है — तब Reception Theory पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है।

      यह सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि मीडिया को समझने के लिए केवल उसे “देखना” पर्याप्त नहीं, बल्कि यह जानना आवश्यक है कि हम उसे कैसे समझते हैं, क्यों समझते हैं और किस दृष्टि से समझते हैं।

       संदर्भ (References) Reception Theory of Media मीडिया काअभिग्रहण सिद्धांत

      Hall, S. (1980). Encoding/Decoding. In Centre for Contemporary Cultural Studies (Ed.), Culture, Media, Language. Routledge.

      Morley, D. (1983). The Nationwide Audience: Structure and Decoding. British Film Institute.

      Fiske, J. (1987). Television Culture. Methuen.

      McQuail, D. (2010). McQuail’s Mass Communication Theory. Sage Publications.

      Kellner, D. (1995). Media Culture: Cultural Studies, Identity and Politics between the Modern and the Postmodern. Routledge.

      Keval J. Kumar (2018). Mass Communication in India. Jaico Publishing House.

      Livingstone, S. (1998). Audience Research at the Crossroads: The ‘Implied Audience’ in Media Studies. European Journal of Cultural Studies, 1(2), 193–217.

      शर्मा, एस. के. (2020). मीडिया सिद्धांत और प्रभाव अध्ययन. नई दिल्ली: राजप्रकाशन

      Framing Theory of Mass Media फ्रेमिंग सिद्धांत Priming Theory of Media मीडिया का प्राइमिंग सिद्धांत

      Tags: Communication theorymedia theory
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