Social Responsibility Theory of Press सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी ऑफ प्रेस
मीडिया की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के संतुलन का सिद्धांत
1 Introduction मीडिया या प्रेस समाज का चौथा स्तंभ माना जाता है, क्योंकि यह जनता, सरकार और सामाजिक संस्थाओं के बीच संवाद का प्रमुख माध्यम है। परंतु सवाल यह उठता है कि क्या प्रेस को पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए, या उसे समाज और नैतिकता के प्रति जवाबदेह भी होना चाहिए? इसी प्रश्न के उत्तर के रूप में सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी (Social Responsibility Theory) की उत्पत्ति हुई। यह सिद्धांत कहता है कि प्रेस को अपनी स्वतंत्रता का उपयोग समाज के कल्याण और सत्य की खोज के लिए करना चाहिए। अर्थात्, स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी (Freedom with Responsibility) इस सिद्धांत का मूल मंत्र है। यह विचार आधुनिक लोकतंत्रों में प्रेस की भूमिका को परिभाषित करता है — जहाँ प्रेस न तो सरकार का दास है और न ही पूर्ण स्वतंत्र व्यापारी संस्था, बल्कि जनहित की प्रहरी (Watchdog of Public Interest) है।
2. Definition सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी के अनुसार — “Freedom of the press carries with it an obligation to serve society by providing truthful, accurate, fair, and comprehensive information.” “प्रेस की स्वतंत्रता के साथ यह दायित्व भी जुड़ा है कि वह समाज को सत्य, सटीक, निष्पक्ष और व्यापक जानकारी प्रदान करे।” इस सिद्धांत में यह माना गया कि मीडिया को अपने अधिकारों का उपयोग जनता के भले के लिए करना चाहिए, न कि केवल अपने व्यावसायिक लाभ या राजनीतिक हित के लिए।
3. Original Concept – सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी का विकास 20वीं सदी के मध्य में हुआ। इसकी नींव 1947 में अमेरिका की हचिंस कमीशन रिपोर्ट (Hutchins Commission Report) ने रखी। इस कमीशन का गठन अमेरिका के University of Chicago के अध्यक्ष Robert M. Hutchins ने किया था, जिसका उद्देश्य था — “To re-examine the role of the press in a modern democratic society.” रिपोर्ट में कहा गया कि “Freedom of the press is not an end in itself, but a means to serve the people.” अर्थात् प्रेस की स्वतंत्रता जनता की सेवा के लिए है, न कि केवल पूँजी या सत्ता के हितों के लिए। इस सिद्धांत को 1956 में Fred Siebert, Theodore Peterson, और Wilbur Schramm ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Four Theories of the Press” में प्रस्तुत किया, जहाँ इसे लिबर्टेरियन थ्योरी का परिष्कृत रूप (Refined Form of Libertarian Theory) बताया गया।
4. सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएँ / Main Characteristics- सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं —
स्वतंत्रता के साथ उत्तरदायित्व (Freedom with Accountability): प्रेस को स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार है, पर उसे समाज के प्रति जिम्मेदार भी रहना चाहिए। स्वतंत्रता का दुरुपयोग समाज में भ्रम और अविश्वास पैदा कर सकता है।
सत्य और निष्पक्षता की अपेक्षा (Commitment to Truth and Fairness): मीडिया को समाचारों को सही, तथ्यपरक और संतुलित ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। यह न तो किसी विचारधारा का प्रचारक बने, न ही किसी समूह का उपकरण।
जनहित सर्वोपरि (Public Interest Above All): मीडिया का उद्देश्य जनता की समस्याओं, अधिकारों और मुद्दों को उजागर करना होना चाहिए, न कि केवल मनोरंजन या लाभ कमाना।
आत्म-नियमन (Self-Regulation): सरकार के हस्तक्षेप की बजाय मीडिया को स्वयं अपने आचार संहिता (Code of Ethics) के तहत काम करना चाहिए। जैसे — प्रेस काउंसिल, मीडिया ऑम्बड्समैन आदि संस्थाएँ।
विविधता और संतुलन (Pluralism and Balance): मीडिया में सभी वर्गों और विचारों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए ताकि समाज के हर हिस्से की आवाज़ सुनी जा सके।
शिक्षा और जागरूकता की भूमिका (Educational and Informative Role): प्रेस केवल समाचार नहीं, बल्कि जनता को शिक्षित करने, सोच विकसित करने और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का माध्यम है।
5. ऐतिहासिक उदाहरण / Historical Perspective – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया में मीडिया की भूमिका पर गंभीर प्रश्न उठने लगे थे। कई मीडिया संस्थान राजनीतिक और आर्थिक दबावों में काम कर रहे थे, जिसके कारण फेक न्यूज़, एकतरफा रिपोर्टिंग और प्रचारवाद बढ़ गया था। इसी पृष्ठभूमि में हचिंस कमीशन ने कहा कि — “A free and responsible press is essential for democracy.”
भारत में स्वतंत्रता के बाद “प्रेस की सामाजिक जिम्मेदारी” पर भी चर्चा शुरू हुई। 1956 में प्रेस कमीशन (Press Commission of India) ने कहा कि भारतीय पत्रकारिता को स्वतंत्र तो रहना चाहिए, पर उसे समाज की नैतिक जिम्मेदारियाँ निभानी होंगी। इसी सोच के परिणामस्वरूप Press Council of India (PCI) की स्थापना 1966 में की गई।
6. सीमाएँ / Limitations – सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी की कुछ प्रमुख सीमाएँ हैं —
आत्म-नियमन की अस्पष्टता (Vague Self-Regulation): मीडिया का आत्म-नियमन अक्सर केवल सिद्धांत तक सीमित रहता है। व्यावहारिक स्तर पर कई संस्थान नैतिक आचार संहिता का पालन नहीं करते।
व्यावसायिक दबाव (Commercialization of Media): लाभ कमाने की होड़ में समाचार संस्थान सामाजिक जिम्मेदारी भूल जाते हैं। “टीआरपी” और “क्लिक” संस्कृति ने नैतिक पत्रकारिता को कमजोर किया है।
राजनीतिक और कॉर्पोरेट प्रभाव (Political and Corporate Influence): बड़े व्यवसायिक घराने या राजनीतिक शक्तियाँ मीडिया पर नियंत्रण बना लेती हैं, जिससे निष्पक्षता खत्म होती है।
जनमानस की विविधता की अनदेखी (Ignoring Public Diversity): कई बार मीडिया शहरी और शिक्षित वर्ग की समस्याओं को ही महत्व देता है, जबकि ग्रामीण और हाशिए के समूहों की आवाज़ को नज़रअंदाज़ करता है।
जवाबदेही की कमी (Lack of Accountability): यदि प्रेस अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता तो उसके खिलाफ कार्रवाई के स्पष्ट और प्रभावी तंत्र की कमी है।
7. वर्तमान समय में प्रासंगिकता / Relevance Today Social Responsibility Theory of Press
सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी आज पहले से भी अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि मीडिया का प्रभाव अब वैश्विक और डिजिटल दोनों स्तरों पर बढ़ चुका है। आज प्रेस केवल अख़बार या टीवी तक सीमित नहीं, बल्कि सोशल मीडिया, ऑनलाइन पोर्टल्स और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स का भी हिस्सा है। एआई, एल्गोरिद्म और डेटा पत्रकारिता के दौर में जब “फेक न्यूज़” और “भ्रामक प्रचार” समाज को विभाजित कर रहे हैं, तब यह सिद्धांत हमें याद दिलाता है कि मीडिया की असली ताकत उसकी विश्वसनीयता (Credibility) में है, न कि उसकी गति या ग्लैमर में। भारत में प्रेस काउंसिल, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) और डिजिटल मीडिया कोड्स — सभी इसी सोच के विस्तार हैं। सोशल मीडिया पर भी अब जवाबदेही (Accountability) और सत्यापन (Verification) की आवश्यकता महसूस की जा रही है। संक्षेप में, आज के डिजिटल युग में प्रेस को “स्वतंत्र” और “जिम्मेदार” — दोनों रहना होगा। स्वतंत्रता के बिना सत्य की खोज असंभव है, और जिम्मेदारी के बिना स्वतंत्रता खतरनाक।
8. निष्कर्ष / Conclusion – सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी थ्योरी ने पत्रकारिता को एक नैतिक दिशा दी है। इसने यह स्पष्ट किया कि मीडिया केवल समाचार का माध्यम नहीं, बल्कि लोकतंत्र का प्रहरी और समाज का शिक्षक भी है। इस सिद्धांत ने यह संतुलन स्थापित किया कि प्रेस को स्वतंत्र तो रहना चाहिए, लेकिन उसकी स्वतंत्रता का उद्देश्य जनहित होना चाहिए। आज जब पत्रकारिता पर व्यावसायिकता और राजनीतिक प्रभाव के आरोप लग रहे हैं, तब यही सिद्धांत हमें याद दिलाता है कि — “स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी की भावना के साथ कार्य करना है।” मीडिया की साख तभी बनी रहेगी जब वह सत्य, निष्पक्षता, और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएगा। इसी में लोकतंत्र की सच्ची मजबूती छिपी है। Social Responsibility Theory of Press Authoritarian Press Theory Communist Press Theory कम्युनिस्ट प्रेस थ्योरी Libertarian Free Press Theory