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      Home Media Study Material Communication

      Elements of Communication

      by Dr. Arvind Kumar Singh
      3 years ago
      in Communication, Communication Theory & Models
      0

      Elements of communication play a major role in communication effect. This article discusses important elements of communication in a simple manner

      Interpersonal communication

      Intrapersonal communication

      किसी भी संचार कार्य प्रक्रिया में एक से अधिक तत्व शामिल होते है। जब हम संचार के घटक या तत्व की बात करते हैं तो इसका आशय यही है कि जो संचार प्रक्रिया होती है , उसके क्या-क्या घटक हैं अथवा किन किन घटकों से मिलकर के पूरी संचार प्रक्रिया पूरी होती है। ये सभी घटक जब आपस में मिलते हैं, तभी जाकर के कोई संचार प्रक्रिया पूर्ण होती है। हम अपने जीवन में विविध ढंग से संचार करते है। विभिन्न रूपों में जो संचार किया जाता है तो उसमें भिन्न भिन्न संख्या में संचार के तत्व शामिल होते हैं। विभिन्न जगहों पर संचार के तत्व के बारे में जानकारी दी गई है। हालाॅकि उसमें अलग-अलग ढंग की संख्याओं का जिक्र है। किंतु हम यहां पर संचार आरंभ होने से लेकर के संचार पूर्ण होने तक की पूरी प्रक्रिया में शामिल सभी तत्वों की चर्चा कर रहे हैं। इससे आप सभी लोगों को संचार प्रक्रिया के बारे में एक स्पष्ट जानकारी मिल जाएगी।

      Elements of communication संचार के तत्व

      एक संपूर्ण संचार प्रक्रिया के अंतर्गत जो यथासंभव विभिन्न तत्व शामिल हो सकते हैं। उसमें संचार के स्रोत, संदेश, संचार का तौर तरीका, संचार के कोड करने का तरीका, चैनल, संचार के इनकोड करने की प्रक्रिया, संचार को प्राप्त करने वाला संचार ग्राही, संचार का इन्वायरमेंट, संचार के कॉन्टेक्स्ट, संचार में उत्पन्न बाधाएं, संचार के ग्राही द्वारा दिए जाने वाला फीडबैक और संचार का प्रभाव शामिल है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ये सभी तत्व मिल करके कोई संचार को एक पूर्ण रूप देते हैं। कई बार इसमें से कोई घटक बहुत स्पष्ट तौर पर नहीं दिखता है। किंतु संचार की प्रक्रिया में वह शामिल होता है।

      उदाहरण के लिए मेटा मैसेज के प्रति बहुत ध्यान नहीं देते हैं। किंतु कोई संदेश कैसे कहा गया है, वह संचार के प्रभाव तक को निर्धारित करता है। एक ही संदेश एक ही व्यक्ति द्वारा एक ही चैनल से भिन्न-भिन्न तरीके से दिया जा सकता है । हम आगे इसके बारे में और विस्तार से चर्चा करेंगे ।

      Source as a element स्रोत

      जब कोई भी संचार प्रक्रिया आरंभ होती है, तो वह कही से आरंभ होती है। अर्थात जहां से सन्देष प्रेषित किया जाता है, संचार का वह पहला घटक स्रोत कहलाता है। सामान्य तौर पर संचार स्रोत के रूप में व्यक्ति ही होता है। किंतु जैसा कि हमने अन्य व्याख्यान में जिक्र किया है कि वर्तमान में संचार तकनीक आ गये है। इस कारण से सामान्य तौर पर संचार की जो प्रक्रिया होती है, उसमें स्रोत के रूप में मशीन का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसलिए संचार स्रोत के रूप में व्यक्ति, मशीन अथवा किसी अन्य प्रकार की वस्तुएं शामिल हो सकती है। इससे संदेश निकल कर के आगे बढ़ रहा होता है।

      इसी प्रकार संचार स्रोत के रूप में व्यक्ति के स्थान पर कंपनी, संगठन, प्रशासन, राष्ट्र आदि का भी जिक्र होता है। हालाॅकि इन सबमें भी संचार को तैयार करने और प्रेषित करने वाला कोई न कोई व्यक्ति ही रहता है। इसलिए स्रोत की तलाष मे ंहम कहा तक जा रहे हैं उसके अनुसार वह वर्णित होता है।

      unclear source

      कई बार हमें संचार के मूल स्रोत की बहुत स्पष्ट तौर पर पिक्चर नहीं दिखती है। उदाहरण के लिए यदि कोई मूर्ति है, तो जब हम उसे देखते हैं तो मूर्ति के विविध रूप, आकार को देख करके हम प्रभावित होते हैं। उससे हमको जो भी संदेश मिलते हैं, वह मूर्ति को एक वस्तु के रूप में यदि हम माने, तो इस स्थिति में संचार का मूल स्रोत मूर्ति है। किंतु उस मूर्ति को बनाने वाला कोई व्यक्ति हो सकता है। उस स्थिति में उसका मूल स्रोत वह व्यक्ति है, जिसने उस रूप आकार में मूर्ति का निर्माण किया है। यदि उसे कही से कोई प्रेरणा मिली है तो फिर स्रेत के तौर पर वह भी कहा जा सकता है। यही बात चित्र, कविता कहानी पुस्तक आदि के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है। इन सबमें सन्देष को देने वाला कोई न कोई व्यक्ति रहता है। इस तरह कुछ ऐसे भी सन्देष होते है, जिसमें कि मूल स्रोत के सन्दर्भ में बहुत स्पष्टता नही हो सकती है। उदाहरण के लिए यदि किसी कहानी, उपन्यास आदि पर फिल्म आदि कार्यक्रम निर्मित हुए है। उसमें कलाकार द्वारा बोले गये संवाद के सन्दर्भ में दर्शकों के लिए मूल स्रोत के सन्दर्भ में कहानीकार, उपन्यासकार, स्क्रिप्ट लेखक, स्वयं कलाकार एवं निर्देषक आदि को देखा जा सकता है।

      Natural source

      कई बार प्राकृतिक तौर पर कोई वस्तु हो सकती है। यह किसी व्यक्ति द्वारा निर्मित न हो करके प्राकृतिक तौर पर निर्मित हो सकती है। किंतु जब उससे हम संदेश लेते हैं, तो ऐसी स्थिति में वह वस्तु ही संचार का मूल स्रोत कही जा सकती है। उदाहरण के लिए जब हम किसी प्राकृतिक वस्तु ,पेड, नदी, झरना आदि को देख रहे हैं और उससे हम किसी प्रकार का संदेश ले रहे हैं, तो उस स्थिति में वही संचार के स्रोत कहे जाएंगे।

      अब यहां पर यह जानना भी जरूरी है कि सामान्य तौर पर संचार में जो व्यक्ति, स्रोत का कार्य कर रहा होता ह,ै उसे हम प्रेषक, वक्ता के रूप में कह सकते हैं और वह जब किसी भी प्रकार के संदेश को बोलता है, कहता है या किसी अन्य तरीके द्वारा तैयार करके प्रेषित करता है, तो वह संदेश जाता है। फिर रिसीवर उसे सुनता है ,पढ़ता है, देखता है। यदि अन्य रूप में वह दिया गया है तो वह सुॅंघ करके अथवा स्पर्श करके महसूस करता है।

      इस प्रकार से जो व्यक्ति संदेश को प्राप्त करता है, वह भी संदेश को भेजने वाला स्रोत हो सकता है। इस प्रकार से संदेश को देने वाला और संदेश को प्राप्त करने वाला व्यक्ति की भूमिका आपस में बदलती भी रहती है। यह तभी संभव है जब संचार चक्रीय रूप में हो रहा होता है। जब संदेश का स्वरूप रेखीय होता है तो इसमें इस प्रकार की परिवर्तनीय भूमिका नही होती है। अर्थात् संचार का स्रोत एक व्यक्ति एवं प्राप्त कर्ता दूसरा व्यक्ति होता है।

      संदेश – Message Message as Elements of communication

      What is Smell communication

      संचार का दूसरा महत्वपूर्ण घटक संदेश है। यह विभिन्न प्रकार के प्रतीकों का एक समूह होता है। ये सभी प्रतीक ही आपस में मिलकर के एक खास प्रकार के संदेश का निर्माण करते हैं। प्रेषित किए जाने वाला संदेश विविध रूपों में हो सकता है। जैसे कि यह लिखित रूप में भी हो सकता है अथवा कि यह सुनने वाले सामग्री के रूप में हो सकता है। यह किसी दृश्य रूप में हो सकता है। वर्तमान में तकनीकों ने ऐसी सुविधा उपलब्ध करा दी है कि एक से अधिक तौर तरीके को मिला करके भी संदेश का निर्माण किया जाता है। इसलिए लिखित, ऑडियो, वीडियो सभी रूपों को लेकर के आपस में मिल करके भी संदेश तैयार किया जाता है। संदेश विभिन्न तौर तरीके के रूप में हो सकता है। यह सूचना के रूप में हो सकता है। यह किसी प्रकार के निर्देश के रूप में हो सकता है। यह आदेश के रूप में हो सकता है या एक मार्गदर्शन संदेश के रूप में हो सकता है। यह सलाह के रूप में भी हो सकता है।

      इसी प्रकार से यह कहानी, कविता, नाटक, साक्षात्कार आदि रूप में हो सकता है। इसे अन्य किसी अन्य भाव को ले करके भी दिया जा सकता है। तो हम यह कह सकते हैं कि यह उस विषय सामग्री का कंटेंट है, जिसे की रिसीवर तक प्रेषित किया जा सकता है। जो भी संदेश प्रेषित किया जाता है, वह विभिन्न प्रकार के उद्देश्य को ध्यान में रखकर के प्रेषित किया जाता है ।

      इनकोडिंग Encoding as Elements of communication

      जो भी संदेश को कहीं पर प्रेषित किया जाना रहता है, उस संदेश की जो निर्माण की प्रक्रिया होती है, उसे इनकोडिंग कहा जाता है। सन्देष की काडिंग विविध ढंग से की जाती है। इसके अंतर्गत संचार को तैयार करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रतीकों, चिह्नों आदि का उपयोग किया जाता है। यदि देख करके ग्रहण करने के लिए संचार किया जा रहा है, तो उस स्थिति में संचार के जो शब्द हैं या शब्दों का जो समूह है, वह खास तरीके के वाक्यों का निर्माण करने के लिए एकत्र किया जाता है। जब इसे खास तरीके से कोडिंग कर दी जाती है, तभी वह ग्रहण करने योग्य होता है।

      संदेश को तैयार करने के लिए यह एक आवश्यक कार्य है। जैसी मीडिया होती है, उसके अनुसार अलग-अलग तरीके की कोडिंग करनी पड़ती है। प्रिंट माध्यम के लिए अलग ढंग से कोडिंग की जाती है, व ऑडियो माध्यम के लिए अलग तरीके से कोडिग की जाती है। इसी प्रकार से वीडियो माध्यम के लिए अलग ढंग से कोडिंग की जाती है। यदि कोई अन्य माध्यम है तो फिर कोडिंग के लिए दूसरा तरीका अपनाया जाता है। वर्तमान में न्यू मीडिया की उपलब्धता ने किसी भी सन्देष को बहुत ही भिन्न भिन्न तरीके से सन्देष को इनकोड करने की सुविधा प्रदान कर दी है।

      Meta message as Elements of communication मेटा मैसेज

      संचार प्रक्रिया का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक जो कि यह बतलाता है कि कोई संचार कैसे किया गया है, उसके लिखने बोलने या दिखाने का क्या तरीका है तो वे सभी बातें जो कि संचार के संदर्भ में या उसके बारे में संचार करती हैं, उसे हम मेटा मैसेज के रूप में कहते हैं। हम यह कह सकते हैं कि यह संचार विशेषताओं को बतलाता है।

      कोई संदेश प्रभावी रूप में हो सकता है। कोई संदेश इस रूप में नहीं हो सकता है। इस प्रकार मेटा मैसेज से हमें सन्देष के गुणों या विषेषताओं के बारे में जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए यदि यह कहा जाये कि जो संदेश प्रेषित किया गया, वह कैसा रहा, तो उस संदर्भ में जो बातें बताई जाएंगी वह मेटा मैसेज के रूप में होते हैं। यह मूल कन्टेन्ट न हो करके उसके बारे में कही गयी बाते होती है। कई बार किसी संदेश को आरम्भिक बातें मेटा मैसे के तौर पर ही होती है। संदेश के बारे में दिया गया सन्देष मेटा मैसेज होता है।

      Media and channel as Elements of communication माध्यम और चैनल –

      संचार का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक माध्यम या चैनल है। जिस किसी भी मशीन या साधन द्वारा किसी संदेश को इनकोड करके रिसीवर तक भेजा जाता है, वह माध्यम चैनल कहलाता है। जब हम आमने सामने हो करके संवाद करते हैं, उस स्थिति में तो हमारी जो इंद्रिया होती हैं, वही मुख्य माध्यम होती हैं।

      हमारी पांच इंद्रियां हैं जो कि विभिन्न प्रकार के संदेशों को हमें एहसास कराती हैं। इनके माध्यम से हम बाह्य जगत के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। इसमें देखना, सुनना, चखना, सूंघना और स्पष्ट करना शामिल हैं। इसमें से देखने, सुनने की जो प्रक्रिया है, वह संदेश को लेने देने के संदर्भ में विशेष रूप से इस्तेमाल की जाती है। ये माध्यम हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माध्यम होते है। इससे हम संदेशों को पाते है। किंतु बहुत से ऐसे संदर्भ हैं, जहां पर किसी प्रकार के संदेश का हमें सूॅंघ करके अथवा छू करके ही जानकारी सही प्रकार से मिलती है।

      उदाहरण के लिए अगर कहीं कोई वस्तु विशिष्ट गंध की है, तो उसे हम सूॅघ कर के ही प्राप्त करते हैं। इस स्थिति में देखकर के अथवा सुन करके उसके बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं मिल सकती है। किंतु जब कहीं दूर किसी संदेश प्रेषित किया जाता है तो उसमें फिर अन्य प्रकार के उपकरण मशीन का भी समावेश हो जाता है । हम वर्तमान में भिन्न-भिन्न प्रकार के माध्यम में संदेश को संप्रेषित करते है। इस प्रकार से रेडियो, टीवी, समाचारपत्र, इन्टरनेट आदि माध्यम एवं चैनल है। इन सभी चैनलों से सन्देष प्रेषित करने के सन्दर्भ में अपने अपने विषिष्ट तकनीकी एवं कलात्मक तौर तरीके है। इसे ही ध्यान में रख करके सन्देष को देने की आवष्यकता होती है।

      The process of decoding as Elements of communication डिकोडिंग

      जब भी कोई संदेश से गंतव्य स्थल तक रिसीवर के पास जाता है तो उसे डिकोड करने की आवश्यकता होती है। तभी वह अपने मूल संदेश के रूप में समझा जा सकता है। यह सही प्रकार से होना चाहिए। यदि इसमें किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी हुई तो फिर वह संदेश सही रूप में सामने नहीं आता है। फिर कई प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है। डिकोडिंग की यह प्रक्रिया कई स्तरों पर होती है। हर स्तर पर इसे सही रूप में होना आवश्यक है अन्यथा संदेश अपने मूल स्वरूप में नही मिल पाता है। इस प्रकार संदेश दूसरे ढंग का अर्थ प्रेषित करता है। डिकोडिंग की प्रक्रिया विभिन्न प्रकार से की जाती है।

      संदेश ग्राही role of Receiver as Elements of communication

      संदेश ग्राही संदेश को प्राप्त करने वाला व्यक्ति, संगठन आदि होते हैं और वांछित संदेश उस व्यक्ति तक प्रेषित किया गया रहता है। जब भी कोई संदेश से वांछित व्यक्ति तक पहुंचता है तो फिर वह उसे डिकोड करता है। इससे कि वह सही प्रकार से समझ पाता है। संदेश को प्राप्त करने वाली मशीन भी हो सकती है । मशीन को खुद अपने स्तर से संदेश को डिकोड करने की आवश्यकता होती है।

      जब व्यक्ति किसी संदेश को डिकोड करता है, उस समय उसके अपने नजरिया, दृष्टिकोण, उसकी अपनी पृष्ठभूमि, मूल्य, संस्कृति आदि संदेश को डिकोड करने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शायद यही कारण है कि एक संदेश को भी विभिन्न तरीके से रिपोर्ट करके उसका स्पष्ट वर्णन करते हैं। इस संदर्भ में उसकी संचार कुशलता के साथ साथ संचार के प्रति संलिप्तता की भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि वह किसी प्रकार का कोई पूर्वाग्रह रखता है तो उस स्थिति में उसकी झलक डिकोडिंग में भी दिखती है

      पर्यावरण The role of environment in Elements of communication

      हर किसी प्रकार के संचार की अपनी एक खास परिवेष होता है। यह परिवेष का दायरा स्थानीय स्तर से लेकर के व्यापक स्तर तक का हो सकता है । परिवष के अंतर्गत चारों तरफ का वह भौतिक और मनोवैज्ञानिक पहलू शामिल होते है,ं जिसमें कि संचार की बात की जाती है। यह यह परिवेशऔपचारिक या अनौपचारिक रूप में हो सकता है। जब यह संचार बहुत ही फॉर्मल रूप में होता है, उसी स्थिति में काफी पहलुओं को ध्यान में रखना पड़ता है। बहुत तरीके की औपचारिकताओं को पूरा करके इसे किया जाता है। किंतु जब इनफॉर्मल होता है तो उसमें कई तरीके की स्वतंत्रता भी होती हैं।

      इस प्रक्रिया में इसी के साथ यह भी ध्यान रखने योग्य बातें हैं कि भिन्न भिन्न प्रकार के संचार प्रक्रिया में भिन्न-भिन्न प्रकार के परिवेश की आवश्यकता होती है । इससे वह संचार सही तरीके से किया जाता है। इसमें स्थान से लेकर के समय आदि जैसे पहलू प्रमुख हैं। ये संपूर्ण संचार को प्रभावित करते है।

      Positive negative environment

      कई बार संचार का परिवेश बहुत स्पष्ट नहीं होता है । किंतु उस परिवेश के कारण संचार के तौर तरीके प्रभावित होते रहते हैं। जैसे कि अगर कहीं कोई बहुत ही पब्लिक स्थान है, तो वहां पर व्यक्ति हर प्रकार की बात नहीं कर सकता है। उसके लिए खास जगह की आवश्यकता होती है। परिवेश अगर सकारात्मक है, तब संचार भी सकारात्मक और प्रभावी तरीके से होता है। किंतु अगर परिवेश सही नहीं है, तो उस स्थिति में संचार पर भी उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई बार उचित परिवेश न मिलने पर संचार तो किया ही नहीं जा सकता है। इसके बारे में अलग से चर्चा की गई है

      संदर्भ the role of context in Elements of communication
      किसी भी तरह के संचार उसका संदर्भ में बहुत ही मायने रखता है। कोई एक मैसेज किस संदर्भ में कहीं पर प्रेषित किया गया है, यदि इसको ध्यान में नहीं रखा गया तो फिर वह अपने सही अर्थ को नहीं प्रेषित कर पाता है। एक ही संदेश भिन्न-भिन्न प्रकार के कांटेक्स्ट में भिन्न-भिन्न तरीके से अर्थ देता है। यदि उसे सही तरीके से और सही कांटेक्ट में नहीं लिया गया तो फिर वह वांछित संदेश को सही तरीके से प्रेषित करने में सफल नहीं होता है।

      कई बार किसी संदेश को जिस संदर्भ में कहा गया रहता है, उससे परे हटकर के अन्य संदर्भ में परिभाषित किया जाता है अथवा लिया जाता है । इसके कारण से भिन्न भिन्न प्रकार की समस्याएं होती हैं। हमारे समाज में राजनीतिक दलों द्वारा किसी भी प्रकार के बयान को अगर दूसरे संदर्भ में ले करके प्रस्तुत किया जाता है, तो फिर उसका विवाद होता जाता है। कई बार संदर्भ को जानबूझकर भी बदल दिया जाता है । इससे उसका अर्थ बदलकर प्रस्तुत होता है । उसका एक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । यदि संदेश को देने वाला और संदेश को प्राप्त करने वाला प्रेषित किए जाने वाले संदेश को एक ही संदर्भ में करके सही तरीके से समझ रहे हैं, तो फिर संचार प्रभावी और सही तरीके से होता है।

      बाधाएं Noise in Elements of communication

      संचार के रास्ते में विभिन्न प्रकार के बाधाएं भी होती है। ये बाधाएं शुरू से लेकर के आखिर तक विभिन्न रूपों में और विभिन्न चरणों में हो सकती हैं । इसका स्वरूप मनोवैज्ञानिक से लेकर के तकनीकी और या इसमें से किसी भी रूप में हो सकता है । ये एक से अधिक रूप में भी हो सकती हैं । जब यह बाधाएं संचार के रास्ते में आती हैं तो फिर संचार अपने डेस्टिनेशन तक वांछित अर्थ के साथ सही तरीके से नहीं पहुॅंच पाती है । संचार जो में जो संदेश कहे गए रहते हैं, वह शुद्ध तरीके से नहीं पहुंचते हैं। किसी प्रकार की समस्या और अन्य तमाम ऐसे पहलू हैं जो कि एक संदेश में आरंभ से लेकर के आखिरी प्रक्रिया के स्तर तक में अपने नकारात्मक रूप में हो सकते हैं । इस कारण से फिर समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

      kinds of noise

      जब हम बाधा या न्वायज की बात करते हैं तो इसमें तकनीकी तौर पर तरंगों का सही तरीके से न जाना, शारीरिक रूप से किसी भी तरीके की समस्या जैसे देखने सुनने पढ़ने लिखने में इनकोडिंग एवं डिकोडिंग समस्या भी इसमें आती हैं। इसी प्रकार से साइकोलाॅजिकल या मनोवैज्ञानिक तौर पर जो न्वायज होते हैं उसमें पूर्व धारणा, पूर्वाग्रह, पूर्व में ही किए गए निर्णय,किसी बात को सही तरीके से न लेने का पूर्वाग्रह विभिन्न प्रकार के भावनात्मक स्थितियां आदि आते हैं। सीमेंटेड बाधा के अंतर्गत संदेश को प्रेषित करने वाला संदेश को ग्रहण करने वाला भिन्न-भिन्न तौर तरीके सिस्टम में होते हैं। उदाहरण के लिए अलग-अलग सांस्कृतिक परिवेश, भौगोलिक परिवेश आदि के कारण से यह बाधा खड़ी होती है। सही प्रकार से संचार होने के लिए यह आवश्यक है कि किसी भी प्रकार की यें बाधाएं न हो।

      फीड बैक Feedback in Elements of communication

      Feedback as elements of communication

      अच्छे तरीके से संचार तभी संभव है जब कि उसमें संचार को प्राप्त करने वाला व्यक्ति सही तरीके से फीडबैक करें । फीडबैक संचार को प्राप्त करने के पश्चात उसके संदर्भ में दिया गया वह रिस्पांस होता है । इससे संदेश प्रेषित करने वाले प्रेषक को अपने संदेश के बारे में जानकारी मिलती है। इससे संदेश को बनाए रखने में सही तरीके से देने में मदद मिलती है। संदेश संप्रेषण में किसी भी तरीके का समस्या यदि है, तो उसे वह सही करता है। फीडबैक विभिन्न माध्यमों और स्थितियों में अलग अलग तरीके से और अलग-अलग रूपों में और अलग-अलग समय पर होता है । किंतु उसे उसी तरीके से फिर समझ करके संचार प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है।

      उदाहरण के लिए अगर किसी ने वेबसाइट पर किसी प्रकार का कोई पोस्ट किया है, उसमें उम्मीद किया जा रहा है कि लोग तत्काल फीडबैक करें। यदि किसी भी संदेश संप्रेषण में फीडबैक बिल्कुल नहीं है , तो उस स्थिति में सही प्रकार से संचार को बनाए रखने की समस्या होती है । इसमें संदेश प्रेषित करने वाले कोई पता ही नहीं है कि लोग उसे प्राप्त कर रहे हैं अथवा नहीं और दूसरा कि उसे किस रूप में प्राप्त कर रहे हैं।

      how to give feedback

      फीडबैक देने के विभिन्न प्रकार के तौर तरीके भी हैं । जिस माध्यम में जिस तरीके की सुविधा प्रवेश देने के लिए दी गई रहती है, वहां पर उसी माध्यमों का इस्तेमाल किया जाता है। आधुनिक तकनीकों में किसी भी प्रकार के पोस्ट के संदर्भ में टेक्स्ट से लेकर के ऑडियो, वीडियो आदि विभिन्न रूपों में फीडबैक देने की सुविधा रहती है। हर व्यक्ति अपनी अपनी सुविधा और इच्छानुसार एवं अपनी समझ के अनुसार अलग-अलग तरीके से फीडबैक देता है।

      फीडफारवर्ड Feed forward in Elements of communication

      संचार का एक तत्व जो कि सभी जगहों पर होता है। पर इसके बारे में सामान्यतः वर्णन नहीं किया जाता है। इसे फीडफारवर्ड कहते है। जब भी कोई औपचारिक और वास्तविक संचार आरंभ किया जाता है तो कई बार उसके पूर्व ही उसके बारे में संदेश दिया जाता है। यह आने वाले संदेश के बारे में सूचित करता है। यह एक प्रकार से जो संदेश दिया जाता है उसके बारे में संदेश प्राप्त करने वाले को जानकारी देता है।

      फीडफारवर्ड किये जाने वाले संचार का एजेंडा हो सकता है। यह पुस्तक, मैगजीन का कवर पेज हो सकता है। यह विषय सूची हो सकती है। यह खुद अपने आप में एक प्रकार से संदेश है और संचार प्रक्रिया का तत्व है। इसे अलग रूप में देखते हैं। वास्तव संदेश से थोड़ा सा अलग अपने आप में एक प्रकार का संदेश होता है । हर प्रकार के संदेश में फीड फॉरवर्ड होना आवश्यक नहीं है, किंतु अधिकतर संचार प्रक्रिया में दिखता है।

      इस प्रकार से हम देखते है कि एक संचार प्रक्रिया में आरम्भ से ले करके अन्त तक कई तत्व शामिल होता है। सही प्रकार से संचार करने के लिए इन सभी तत्वों को सही रूप में एवं आपस में सही प्रकार से सामांजस्य होना आवश्यक है।

      Tags: channelcommunication elementsdecodingelements of communicationencodingmessagemeta messagereceiverSource
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      Dr. Arvind Kumar Singh

      Dr. Arvind Kumar Singh

      Media Specialist and Writer , UGC NET and JRF, SRF Fellow, Ph.D. in Mass Communication and Journalism subject (Area -Development communication) from BHU in 1997. Experience of Teaching in Various Universities and other academic Institutions including BHU as UGC JRF and SRF fellow, Lucknow university as guest faculty and Allahabad university as visiting fellow. Members of various Media professional organizations. Participation in various national and international Seminar and Conferences. Written several books on electronic and digital media

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