Cinematograph Act (सिनेमेटोग्राफ अधिनियम)
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम –
1. प्रस्तावना – सिनेमेटोग्राफ अधिनियम भारतीय सिनेमा को नियंत्रित और व्यवस्थित करने वाला प्रमुख कानून है। यह अधिनियम फिल्मों की प्रमाणन (Certification), प्रदर्शन (Exhibition) और सेंसरशिप (Censorship) से जुड़ा है।
2. अधिनियम की शुरुआत -यह अधिनियम सबसे पहले 1918 में ब्रिटिश सरकार ने लागू किया था ताकि फिल्मों के प्रदर्शन को नियंत्रित किया जा सके।
3. 1952 का नया अधिनियम-स्वतंत्रता के बाद इसे संशोधित कर सिनेमेटोग्राफ अधिनियम 1952 लाया गया, जो आज भी मुख्य आधार है।
4. उद्देश्य -इसका मुख्य उद्देश्य है –
- समाज में नैतिकता बनाए रखना
- फिल्मों को आयु वर्ग के अनुसार प्रमाणित करना
- अश्लीलता, हिंसा और नफरत फैलाने वाली सामग्री को रोकना
5. फिल्म प्रमाणन (Certification) -फिल्मों को थिएटर में रिलीज़ करने से पहले Central Board of Film Certification (CBFC) से प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है।
6. प्रमाणपत्र के प्रकार -CBFC चार तरह के सर्टिफिकेट देता है –
- U (Universal): सभी आयु के लिए
- UA (Parental Guidance): बच्चों को अभिभावक की अनुमति के साथ
- A (Adult): सिर्फ वयस्कों के लिए
- S (Special): केवल विशेष पेशेवर समूहों के लिए
7. सर्टिफिकेशन बोर्ड -CBFC केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन काम करता है।
8. सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया -निर्माता फिल्म जमा करता है → बोर्ड देखता है → सुझाव देता है → कट/संशोधन के बाद प्रमाणपत्र जारी किया जाता है।
9. फिल्म पर रोक -अगर फिल्म कानून के खिलाफ है या समाज में अशांति फैला सकती है तो बोर्ड उसे रोक सकता है।
10. अपील की व्यवस्था -निर्माता निर्णय से असंतुष्ट हो तो Film Certification Appellate Tribunal (FCAT) में अपील कर सकता है।
11. प्रदर्शन का नियमन -अधिनियम में प्रावधान है कि फिल्में केवल स्वीकृत सिनेमाघरों में और निर्धारित शर्तों के तहत ही दिखाई जा सकती हैं।
12. सेंसरशिप के मानक – बोर्ड यह देखता है कि फिल्म –
- हिंसा न बढ़ाए
- किसी धर्म या जाति की भावनाएँ न भड़काए
- अश्लीलता न फैलाए
- राष्ट्रविरोधी संदेश न दे
13. डिजिटल और OTT प्लेटफ़ॉर्म -हालाँकि अधिनियम मूल रूप से थिएटर फिल्मों के लिए था, लेकिन हाल के संशोधनों से इसका दायरा डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तक भी बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
14. दंड का प्रावधान -बिना प्रमाणपत्र फिल्म दिखाने पर जुर्माना और जेल की सज़ा हो सकती है।
15. बच्चों की सुरक्षा – अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों को अनुपयुक्त सामग्री से बचाया जाए।
16. राज्य सरकार की भूमिका -राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर फिल्मों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध या अनुमति दे सकती हैं।
17. समय-समय पर संशोधन – 1952 के बाद कई बार इसमें संशोधन हुए, जैसे 1984, 2003 और हाल ही में 2021 में प्रस्तावित बदलाव।
18. 2021 का Cinematograph (Amendment) Bill – सरकार ने प्रस्ताव रखा कि केंद्र सरकार को किसी फिल्म का प्रमाणपत्र रद्द करने का अधिकार दिया जाए। इससे विवाद भी हुआ।
19. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिनियम -यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत “यथोचित प्रतिबंधों” का पालन करता है।
20. निष्कर्ष – सिनेमेटोग्राफ अधिनियम भारतीय सिनेमा को कानूनी, सामाजिक और नैतिक दिशा देता है। यह रचनात्मक स्वतंत्रता और समाज की मर्यादा के बीच संतुलन बनाने का प्रयास है।
Cinematograph Act (सिनेमेटोग्राफ अधिनियम)
1. प्रस्तावना
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम भारतीय फिल्म उद्योग का प्रमुख कानूनी आधार है। यह कानून फिल्मों की बनावट, प्रदर्शन और सेंसरशिप से जुड़ा हुआ है। इसका उद्देश्य फिल्मों को सामाजिक मानदंडों के अनुरूप नियंत्रित करना और अनुचित सामग्री से दर्शकों की रक्षा करना है। भारत जैसे विविधताओं वाले देश में यह अधिनियम समाज की सांस्कृतिक और नैतिक एकता को बनाए रखने का साधन है। इस अधिनियम के जरिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि फिल्मों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे, लेकिन वह समाज के शांति, सद्भाव और राष्ट्रीय हित के खिलाफ न जाए।
2. अधिनियम की शुरुआत
भारत में सिनेमा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने 1918 में पहला सिनेमेटोग्राफ अधिनियम लागू किया। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से फिल्मों के प्रदर्शन को नियंत्रित करना और जनता में फैलने वाले संभावित असंतोष को रोकना था। उस समय फिल्मों को लोगों की सोच और भावनाओं पर असर डालने वाला नया माध्यम माना जाता था। इस कारण सरकार ने इसे कानूनी दायरे में लाकर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहा। 1918 का यह अधिनियम आज के विस्तृत कानून की नींव साबित हुआ, जिसने आगे चलकर स्वतंत्र भारत में नए रूप लिए।
3. 1952 का नया अधिनियम
स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने महसूस किया कि ब्रिटिश काल का 1918 का कानून आधुनिक भारत के अनुरूप नहीं है। इसलिए 1952 में सिनेमेटोग्राफ अधिनियम 1952 लाया गया। यह अधिनियम फिल्मों के निर्माण और प्रदर्शन के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश देता है। इसमें फिल्म प्रमाणन (Certification) की व्यवस्था बनाई गई और एक बोर्ड गठित किया गया, जिसे आज Central Board of Film Certification (CBFC) कहा जाता है। इस अधिनियम ने सेंसरशिप को कानूनी आधार दिया और यह सुनिश्चित किया कि फिल्में समाज की सांस्कृतिक व नैतिक परंपराओं के अनुरूप हों।
4. उद्देश्य Cinematograph Act
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य फिल्मों को नियंत्रित और नियमित करना है। यह सुनिश्चित करता है कि फिल्में केवल मनोरंजन का साधन न बनें, बल्कि समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालें। अधिनियम का मकसद है कि फिल्मों में हिंसा, अश्लीलता या धर्म और जाति पर आपत्तिजनक टिप्पणी जैसी बातें न हों। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया कि बच्चों और युवाओं के लिए उपयुक्त सामग्री उपलब्ध हो। इस कानून का एक बड़ा लक्ष्य है फिल्मकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज की नैतिकता के बीच संतुलन स्थापित करना।
5. फिल्म प्रमाणन (Certification)
फिल्मों को आम जनता के सामने प्रदर्शित करने से पहले प्रमाणपत्र (Certificate) लेना अनिवार्य है। यह प्रक्रिया फिल्म की सामग्री का निरीक्षण कर यह तय करती है कि कौन-सा दर्शक वर्ग उसे देख सकता है। प्रमाणन प्रक्रिया का जिम्मा CBFC पर है। बिना प्रमाणपत्र के फिल्म थिएटर या किसी सार्वजनिक मंच पर दिखाई नहीं जा सकती। यह प्रक्रिया एक सुरक्षा कवच की तरह है, जिससे दर्शकों को अनचाही सामग्री से बचाया जा सके। इससे फिल्म निर्माताओं को भी स्पष्ट दिशा मिलती है कि उनकी फिल्म किस वर्ग के दर्शकों तक पहुँच सकती है।
6. प्रमाणपत्र के प्रकार
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम के तहत CBFC चार प्रकार के प्रमाणपत्र जारी करता है। U (Universal) फिल्मों को हर आयु वर्ग देख सकता है। UA (Parental Guidance) फिल्मों में कुछ दृश्य बच्चों के लिए संवेदनशील हो सकते हैं, इसलिए अभिभावक की अनुमति जरूरी होती है। A (Adult) फिल्मों को केवल 18 वर्ष से ऊपर के दर्शक ही देख सकते हैं। वहीं, S (Special) फिल्मों को केवल विशेष पेशेवर वर्ग (जैसे डॉक्टर, सैनिक आदि) देख सकते हैं। इस प्रणाली से सुनिश्चित किया जाता है कि फिल्म की सामग्री उचित दर्शक समूह तक ही पहुँचे और समाज पर नकारात्मक असर न डाले।
7. सर्टिफिकेशन बोर्ड Cinematograph Act
फिल्मों के प्रमाणन की जिम्मेदारी Central Board of Film Certification (CBFC) की होती है। यह बोर्ड सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। बोर्ड में एक अध्यक्ष और कई सदस्य होते हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं। ये सदस्य फिल्म की सामग्री का मूल्यांकन करते हैं और तय करते हैं कि फिल्म किस श्रेणी में आएगी। बोर्ड का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि फिल्में भारतीय समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिक मर्यादाओं के अनुरूप हों। यह व्यवस्था फिल्मकारों और समाज के बीच संतुलन बनाने का कार्य करती है। contempt of court
8. सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया
फिल्म निर्माता अपनी फिल्म को CBFC के पास प्रमाणन के लिए जमा करता है। इसके बाद बोर्ड की समिति फिल्म को ध्यान से देखती है। समिति सुझाव देती है कि फिल्म को बिना बदलाव के प्रमाणित किया जा सकता है या उसमें कुछ संशोधन आवश्यक हैं। यदि फिल्म में अनुचित दृश्य पाए जाते हैं तो उन्हें हटाने या बदलने का निर्देश दिया जाता है। सभी आवश्यक संशोधनों के बाद फिल्म को प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। यह प्रक्रिया फिल्मकारों को मार्गदर्शन देती है और दर्शकों को सुरक्षित और उपयुक्त सामग्री सुनिश्चित करती है।
9. फिल्म पर रोक Cinematograph Act
अधिनियम के अंतर्गत यदि किसी फिल्म की सामग्री समाज में हिंसा, नफरत या अशांति फैला सकती है तो CBFC उसे रोकने का अधिकार रखता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी फिल्म में धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाले दृश्य हैं या राष्ट्रविरोधी संदेश दिया गया है तो बोर्ड उसे प्रमाणित नहीं करता। यह रोक समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए आवश्यक है। हालांकि, इस प्रावधान पर अक्सर बहस होती है कि क्या यह रचनात्मक स्वतंत्रता को सीमित करता है या समाज की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।
10. अपील की व्यवस्था
यदि किसी फिल्म निर्माता को CBFC के निर्णय पर आपत्ति होती है, तो वह Film Certification Appellate Tribunal (FCAT) में अपील कर सकता है। FCAT एक स्वतंत्र निकाय है, जिसका काम फिल्मकार और बोर्ड के बीच निष्पक्ष समाधान निकालना है। यहाँ निर्माता अपनी बात रख सकता है और फिल्म का पुनः मूल्यांकन कराया जा सकता है। यह व्यवस्था न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी फिल्म पर लिया गया निर्णय पूरी तरह से एकतरफा न हो और निर्माता को अपनी बात कहने का पूरा अवसर मिले। Cinematograph Act
11. प्रदर्शन का नियमन Cinematograph Act
अधिनियम यह तय करता है कि फिल्में केवल मान्यता प्राप्त सिनेमाघरों या अधिकृत स्थानों पर ही प्रदर्शित की जा सकती हैं। इसका उद्देश्य यह है कि फिल्में केवल नियंत्रित वातावरण में ही दिखाई जाएँ ताकि बच्चों और समाज को अनुचित सामग्री से बचाया जा सके। इसके अलावा सिनेमाघरों के संचालन, सुरक्षा, टिकट व्यवस्था और ध्वनि नियंत्रण से संबंधित नियम भी अधिनियम में शामिल हैं। इस प्रकार यह कानून सिर्फ फिल्म की सामग्री ही नहीं बल्कि उसके प्रदर्शन के पूरे ढाँचे को भी व्यवस्थित करता है, जिससे समाज में अनुशासन और सुरक्षा बनी रहती है।
12. सेंसरशिप के मानक मानहानि कानून Law of Defamation
CBFC फिल्मों का मूल्यांकन कुछ विशेष मानकों पर करता है। यह देखता है कि फिल्म में अत्यधिक हिंसा, अश्लीलता या अशांति फैलाने वाले दृश्य न हों। किसी धर्म, जाति या समुदाय की भावनाएँ आहत न हों। साथ ही यह भी देखा जाता है कि फिल्म राष्ट्र की एकता और अखंडता के खिलाफ न हो। बच्चों और युवाओं के मानसिक विकास को प्रभावित करने वाली सामग्री भी हटा दी जाती है। ये मानक समाज में सांस्कृतिक संतुलन बनाए रखने और फिल्मों को सकारात्मक माध्यम बनाने के लिए बनाए गए हैं।
13. डिजिटल और OTT प्लेटफ़ॉर्म
मूल रूप से सिनेमेटोग्राफ अधिनियम Cinematograph Act थिएटर फिल्मों के लिए बनाया गया था, लेकिन तकनीक के विकास के साथ OTT और डिजिटल प्लेटफॉर्म भी प्रमुख माध्यम बन गए हैं। हाल के वर्षों में सरकार ने इन प्लेटफॉर्मों पर प्रदर्शित होने वाली फिल्मों और वेब सीरीज़ को भी नियमन के दायरे में लाने की कोशिश की है। इसके लिए अलग से गाइडलाइंस और आचार संहिता जारी की गई। उद्देश्य यह है कि OTT पर भी वही मानक लागू हों जो थिएटर में हैं, ताकि समाज को अनुचित सामग्री से सुरक्षित रखा जा सके।
14. दंड का प्रावधान Cinematograph Act
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम के तहत यदि कोई फिल्म बिना प्रमाणपत्र के प्रदर्शित की जाती है, तो उस पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है। इसमें जुर्माना और जेल दोनों की सज़ा का प्रावधान है। यह दंड इसलिए आवश्यक है ताकि निर्माता और वितरक कानून का पालन करें और समाज के सामने केवल उचित सामग्री ही प्रस्तुत करें। इस सख्ती से यह सुनिश्चित होता है कि फिल्मकार कानून की अनदेखी न करें। साथ ही यह भी कि फिल्म उद्योग में एक अनुशासन और जिम्मेदारी बनी रहे, जिससे दर्शकों को सुरक्षित वातावरण मिले।
15. बच्चों की सुरक्षा
अधिनियम का एक बड़ा उद्देश्य बच्चों और किशोरों को अनुपयुक्त सामग्री से बचाना है। फिल्मों का बच्चों पर गहरा असर होता है, इसलिए CBFC विशेष ध्यान देता है कि बच्चों को हिंसा, नशा या अश्लील दृश्य न दिखें। UA सर्टिफिकेट इसी कारण बनाया गया ताकि बच्चों को फिल्म देखने के लिए अभिभावक की देखरेख मिले। इस प्रकार अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों का मानसिक और नैतिक विकास सुरक्षित रहे और वे सिनेमा से केवल सकारात्मक प्रेरणा ही लें, न कि नकारात्मक प्रभाव।
16. राज्य सरकार की भूमिका
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम केंद्र सरकार के अधीन है, लेकिन राज्यों को भी अधिकार दिए गए हैं। राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में फिल्मों के प्रदर्शन को नियंत्रित कर सकती हैं। यदि कोई फिल्म स्थानीय स्तर पर तनाव या अशांति फैला सकती है, तो राज्य सरकार उसके प्रदर्शन पर रोक लगा सकती है। यह प्रावधान इसलिए है क्योंकि भारत विविध संस्कृतियों और भाषाओं का देश है, जहाँ किसी फिल्म का प्रभाव अलग-अलग राज्यों में अलग हो सकता है। इस प्रकार केंद्र और राज्य दोनों मिलकर फिल्मों का नियमन करते हैं। Cable TV(Regulation) Act, 1995 केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995)
17. समय-समय पर संशोधन Cinematograph Act
1952 के बाद से सिनेमेटोग्राफ अधिनियम में कई संशोधन किए गए। 1984 में पहली बार बड़े बदलाव हुए, जिनमें प्रमाणन की प्रक्रिया और कड़े मानक जोड़े गए। 2003 में कुछ प्रशासनिक सुधार किए गए। हाल ही में 2021 में भी संशोधन का प्रस्ताव आया, जिसमें सरकार को प्रमाणपत्र रद्द करने का अधिकार देने की बात की गई। ये संशोधन समय और समाज की बदलती परिस्थितियों के अनुसार अधिनियम को अद्यतन करने के लिए किए जाते हैं। इस प्रकार अधिनियम स्थिर नहीं है बल्कि निरंतर परिवर्तित होता रहता है।
18. 2021 का Cinematograph Act (Amendment) Bill
सरकार ने 2021 में एक नया संशोधन विधेयक पेश किया। इसमें प्रस्ताव था कि केंद्र सरकार को पहले से प्रमाणित फिल्म का प्रमाणपत्र भी रद्द करने का अधिकार मिले। इसका उद्देश्य था अनुचित फिल्मों पर नियंत्रण रखना, लेकिन फिल्मकारों और कलाकारों ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि इससे रचनात्मक स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी। इस बिल में पायरेसी रोकने और डिजिटल युग के अनुरूप प्रावधान जोड़ने की भी कोशिश की गई। हालांकि इस पर अभी भी चर्चा जारी है और इसका भविष्य तय होना बाकी है।
19. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिनियम
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) इसके साथ यथोचित प्रतिबंध भी लगाता है। सिनेमेटोग्राफ अधिनियम इन्हीं प्रतिबंधों का पालन करता है। यानी फिल्मकार अपनी रचनात्मकता को अभिव्यक्त कर सकते हैं, लेकिन वह राष्ट्रविरोधी, अश्लील, हिंसात्मक या धार्मिक भावनाएँ भड़काने वाली नहीं होनी चाहिए। इस संतुलन के कारण अक्सर विवाद होता है कि सीमा कहाँ तक है। फिर भी यह अधिनियम भारतीय लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच पुल का काम करता है।
20. निष्कर्ष Cinematograph Act
सिनेमेटोग्राफ अधिनियम भारतीय सिनेमा के लिए कानूनी ढांचा और मार्गदर्शक है। यह अधिनियम एक तरफ फिल्मकारों को स्वतंत्रता देता है तो दूसरी तरफ समाज की नैतिकता और सुरक्षा का ध्यान रखता है। समय-समय पर संशोधनों ने इसे और प्रासंगिक बनाया है। हालांकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सेंसरशिप के बीच हमेशा बहस बनी रहती है, फिर भी यह अधिनियम सिनेमा और समाज दोनों के लिए आवश्यक है। निष्कर्षतः, सिनेमेटोग्राफ अधिनियम भारतीय लोकतंत्र में सिनेमा को जिम्मेदार, अनुशासित और समाजोपयोगी माध्यम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। Cinematograph Act