Radio Editing रेडियो सम्पादन
एक बार जब रिकर्डिंग की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो फिर कार्यक्रम निर्माण के अन्तिम चरण में उसे सम्पादित करने की आवश्यकता होती है। कार्यक्रम का सम्पादन में क्या करना है, वह कार्यक्रम के प्रकार एवं उसके उद्देष्य पर निर्भर करता है। यहॉं पर रेडियो सम्पादन कार्य के बारे में चरणबद्ध ढंग से सभी बातें स्पष्ट की गई हैं।
रिकॉर्डिंग सामग्री का संकलन – Radio Editing आडियो सम्पादन में सबसे पहले रिकॉर्ड की गई सभी आडियो फाइलों को इकट्ठा करते है। सम्पादन में संवाद, साउंड इफेक्ट्स और बैकग्राउंड म्यूजिक को अलग-अलग ट्रैक पर लिया जाता है। इन सबको सही नाम एवं क्रम में रखा जाता है। इससे एडिटिंग आसान होती है। इस चरण को सही प्रकार से करने से आगे के काम के लिए स्पष्ट आधार बन जाता है। इससे श्रम एवं और समय बचता है।
रेडियो प्रोडक्शन पर्सन Radio Production Persons
स्क्रिप्ट और ऑडियो का मिलान – इसके बाद रिकॉर्ड किए गए ऑडियो को स्क्रिप्ट के साथ मिलाते हैं। इस दौरान गलत तरीके से लिया गया टेक, गलत उच्चारण या अनावश्यक शोर को चिन्हित करते है। इस चरण में यह भी देखा जाता है कि कौन सा ऑडियो कहाँ इस्तेमाल होना है। इससे कहानी का प्रवाह और पात्रों की आवाज सही क्रम में व्यवस्थित की जा सकती है।
रफ कट तैयार करना – सम्पादन कार्य के आगे के चरण में आडियो के उन भागों को एक सरसरी तौर पर काटा जाता है जो कि अनावश्यक होते है अथवा गलत टेक होते है। इसमें लंबे अंतराल, फालतू शोर और दोहराव को काटा जाता है। इस प्रकार से प्रारंभिक एडिट सामग्री तैयार किया जाता है। यह चरण पूरे नाटक या किसी अन्य कार्यक्रम की एक की शुरुआती झलक देता है और आगे के सुधारों के लिए बेसिक ढांचा तैयार करता है।
संवाद सम्पादन – संवादों को साफ-सुथरा बनाने के लिए उनकी गति, टोन और लंबाई संतुलित की जाती है। जहां जरूरी हो वहां फेड इन-फेड आउट या क्रॉसफेड लगाकर ट्रांजिशन को स्मूद किया जाता है। यह चरण संवादों को सुनने में प्राकृतिक और आकर्षक बनाता है। यह भी पढ़ें Radio recording technique
साउंड सम्पादन में कई प्रकार की सामग्री को इन्सर्ट किया जाता है। इसमें निम्न मुख्य है।
साउंड इफेक्ट्स का समावेश – रिकार्ड किये गये ध्वनि में स्क्रिप्ट के अनुसार साउंड प्रभाव देते हैं। स्क्रिप्ट में निर्धारित स्थानों पर साउंड इफेक्ट्स जोड़े जाते हैं । उदाहरण के लिए जंगल, सड़क, बारिश, दरवाजा खुलना, भीड़ की आवाज आदि ध्वनि प्रभाव हो सकते है। इससे श्रोता को उस दृश्य की सजीवता का एहसास होता है। इसमें दिये जाने वाले इफेक्ट्स का वॉल्यूम और समय भी ध्यान से एडजस्ट किया जाता है । इससे वे संवाद के साथ संतुलित रहते हैं।
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बैकग्राउंड म्यूजिक और ट्रांजिशन – नाटकीयता या भावनात्मक माहौल बनाने के लिए बैकग्राउंड संगीत एक बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व होता है। संगीत का इस्तेमाल कई अन्य प्रकार से भी किया जाता है। दृश्य परिवर्तन के समय हल्का बदलाव संगीत जोड़ देने से कहानी को प्रवाह मिलता है। यह चरण रेडियो ड्रामा को और अधिक प्रभावी बनाता है।
नॉइज कम करना और इक्वलाइजेशन – ऑडियो में मौजूद शोर, हिस या पॉप जैसी अनचाही आवाजों को हटाया जाता है। इक्वलाइजर के माध्यम से अलग-अलग फ्रीक्वेंसी को संतुलित कर संवाद और इफेक्ट्स को साफ करते है और इसे सुनने योग्य बनाया जाता है। यह प्रक्रिया ऑडियो क्वालिटी को बेहतर और स्पष्ट बनाती है।
लेवल बैलेंसिंग – इसके अन्तर्गत संवाद, म्यूजिक और इफेक्ट्स के स्तर (वॉल्यूम) को बराबर किया जाता है। बहुत तेज या धीमी आवाजों को एडजस्ट कर सन्तुलित किया जाता है। इसमें यह भी ध्यान देते है कि किस आवाज को कितने स्तर पर करना है, उसके अनुसार फिर उसे ऐडजस्ट करते हैं। इससे श्रोता को हर तत्व साफ-साफ सुनाई देता है और नाटक का प्रभाव बना रहता है।
फाइनल मिक्स – सभी ट्रैक मिलाकर एक मास्टर ऑडियो तैयार किया जाता है। इस चरण में आवाजों के बीच सही अनुपात, स्टिरियो इफेक्ट्स और समग्र क्वालिटी का ध्यान रखा जाता है। यह अंतिम मिश्रण वह रूप देता है जिसे श्रोता सुनेंगे।
क्वालिटी चेक और टेस्ट लिसनिंग – एक बार फिर आखिर में पूरे नाटक या कार्यक्रम को को सुनकर जॉच करते है कि इसमें कहीं कोई गलती, शोर या असंतुलन तो नहीं है। यदि कहीं पर किसी प्रकार की कोई गलती आती है, तो फिर जरूरत के अनुसार उसमें सुधार करते है। इस चरण में यह सुनिश्चित करते हैं कि अंतिम ऑडियो प्रसारण योग्य और उच्च गुणवत्ता वाला हो। Characteristics of TV
फाइनल आउटपुट तैयार करना – Radio Editing के आखिरी चरण में ऑडियो को तय फॉर्मेट में एक्सपोर्ट किया जाता है। यह फाइल प्रसारण या आर्काइव के लिए तैयार होती है। सभी मेटाडेटा और फाइल नाम सही करके सेव किया जाता है ताकि भविष्य में भी इसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सके। Radio Editing
